Hindi Poem | हिंदी कविता चाँद पर

चाँद

कल रात
मैंने अपने कमरे की खिड़की से
बादल की इक टुकड़ी को
चन्द्रमा का अंगरक्षक बने देखा
ऐसा दृश्य पहले भी कई बार देखा है मैंने
परंतु कल जिज्ञासा वश
उधर से गुज़र रही
एक प्रेतात्मा को रोक कर पूछा
सुनो ! ये चंद्रमा आज़कल पहरेदारों
को साथ लेकर क्यूं निकलता है भ्रमण पर
उसने कहा क्यूं तुम्हें नहीं पता
चंद्रमा की ज़मीन का
सौदा चल रहा है
शायद तभी ये छुप-छुप कर
चल रहा है
मैंने उत्तर पा प्रश्न किया
हां ! सुना तो मैंने भी है कि
चांद पर लोग ज़मीन ख़रीद रहे हैं
लेकिन ये तो बताओ कि
मालिक कौन है चंद्रमा का
जो बेच रहा है जमीन चाँद पर
उसने बहुत तंजिया मुस्कुराहट के साथ कहा
वही है जो ख़ुद का भी मालिक नहीं
और हर चीज़ का मालिक हो जाना चाहता है
‘मानव-मन’
जिसे बस ख़ुद में ख़ुद को ख़ोजना था
लेकिन सब कुछ बाहर खोजता रहता है
हम भी वहीं से यहां पहुंचे हैं
हमने धरती रौंदी थी
तुम चंद्रमा की फिराक़ में हो
उसकी इस बात पर
हम दोनों साथ जोर से हंसें !!
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’

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पूछो चांदनी से

पूछो चांदनी से
मेरा हाल क्या है।
सुना है चांद तुमसे बतियाता है
उन अधेरीं रातों में
जब मैं पास नहीं होती
खूब बातें करते हो तुम दोनों
ये अलग बात है कि जिक्र सिर्फ़ मेरा है
इश्क़ वाले अक्सर
हमसे ही हो जाते हैं
दर्द वाले अक्सर
मिल ही जाते हैं
पूछो चांदनी से
मेरा हाल क्या है।
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’

चांद! गम ना करना

चांद! ज़रा तुम
गम ना करना
बे-सबब आंखें
पुर-नम ना करना।
आज़ महबूब साथ है,
आज़ वस्ल की रात है।
जल्दी मिलेंगें फ़िर से,
कुछ वक्त की बात है।
चांद! ज़रा तुम गम ना करना।
इंतज़ार में आंखें पुर-नम ना करना।”
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’

चाँद शायरी

बेबसी अपनी जगह,
ख़्वाहिशें अपनी जगह।
मुझे चाँद चाहिये।।
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’

रात वस्ल की महबूब से,
चांद तारों से भी परे है।
इश्क़ वालों से जा पूछो,
वो जन्नत से भी परे है।
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’

ये जो ताल्लुक डूबते चांद का है उभरते सूरज से,
कुछ ऐसा ही एहसास, तेरी जुदाई का है ‘मृणाल’।
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’

चाँद ग़जल

चांद क्या तुम्हें भी ‘मृणाल’, आईना मालूम होता है,
उदास हो तुम, तो क्या ये भी उदास मालूम होता है।
चमकता है ये भी पूरी शिद्दत के साथ, उस रात में,
वस्ल ए पहर मेरा, मुक्कमल ये क्यूं मालूम होता है।
भटकती हूं जब भी बैचैन रूह की तरह, मैं छत पर,
वीरान सा फ़लक पर, चांद भी अधुरा मालूम होता है।
कुछ तो बात है दरम्यान, तुम ज़रा पूछ कर बतलाना,
इसके महबूब का मिज़ाज,मेरे महबूब सा मालूम होता है।
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’

इश्क़, इश्क़ होता है, इश्क़ में कुछ बात होती है,
हर मुलाकात इश्क़ में, तज्दीद-ए-मुलाक़ात होती है।
उसके बदन की खुशबू से, महकती है, दरो दीवारें,
चांद लगता है मुतमुईन सा, पूनम की रात होती है।
टकराती हैं मुसलसल, उसकी सांसों से, मेरी सांसें,
मुक्कमल गुफ्तगू होती है, मौन में ही बात होती है।
उसकी नज़रों की तपिश, मेरे रुखसारों का तपना,
लज़्ज़त- ए- वस्ल का सुरूर, बदहाल जात होती है।
उसकी उंगलियों के लम्स से, महताब होता जिस्म,
हर आती जाती सांस, शिद्दत- ए- जज्बात होती है।
उसका चूमना पेशानी को, मेरे अधरो की कपकाहट,
महबूब की बाहों में फकत, तमाम कायनात होती है।”
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’

क्या ख्याल है तुम्हारा ‘मृणाल’, क्या उसे भी हम याद आते रहें हैं,
उसने भी बदली हैं करवटे रातों, हम भी उसको क्या सताते रहे हैं।
उसने भी महसूस की है कभी क्या, ये ख़ामोश इल्तिज़ा हमारी,
बेचैन दिल, बेताब धड़कन, उसमें क्या हम भी शोर मचाते रहे हैं।
वो भी टहलता है क्या, अकसर वहशत भरी रातों को तन्हा छत पर,
उसे भी क्या ये चांद, टिमटिमाते जुगनू, हमारी याद दिलाते रहें हैं।
वो निगाहों से गुफ्तगू, वो वस्ल ए पहर की खुशबू, हाथों का लम्स,
क्या उस पर भी कुछ मंजर कभी, गुज़रे हुए वक्त को दोहराते रहें हैं।
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’

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Parveen Shakir Shayari Nasir Kazmi Shayari