मोहब्बतें

सुनो,
गर तुमको कभी महसूस हों
नफरतें मेरे वुजूद से
तो बेशक करना
चाहें बेहद करना
मगर करना फिर भी मोहब्बतें…
उस वक्त से जो गुज़ारा था
हमने साथ में
जो बातें तुम्हें पसंद थी
तुम उनसे करना मोहब्बतें…

कभी-कभी अपनी जेब से
जैसे निकालते हो कलम
और उसे रखकर भूल जाते हो
किसी मेज पर
ठीक वैसे ही रख दिया करना
उठाकर मेरे हिस्से की नफरतें
फिर फ़क़त करना मोहब्बतें…

उन मौसमों से
जो गवाह हैं हमारे एहसासों के
इस जनवरी के माह से
जो साक्षी है हमारे मिलन की
पहली बात
पहली मुलाकात
जो देखी थी हमने साथ में
वो पहली बरसात
तुम उनसे करना मोहब्बतें…

पहला ख़त जो चुपके से
थमा दिया था
तुमने मेरे हाथों में
मेरे अल्हड़पन से
मेरे बचपने से
उस मासूम वक्त से
जिसमें नहीं था कोई गिला तुम्हें
जिसमें नहीं थी कोई शिकायतें
तुम उनसे करना मोहब्बतें…

वो छज्जे पर रखी दो कुर्सियां
और पैर पसारी मोहब्बतें
वो चाँद देखता हम दोनों को
याद तो होगा तुम्हें
वो फ़लक के सितारे
थे जो हमें हसरतों से निहारतें
मेरे हाथ की बेस्वाद चाय
जिन्हें शौक़ से पिया तुमने
मेरे बनाए पकवान तो
पसंद थे ना तुम्हें
तुम उनसे करना मोहब्बतें…

मेरा ख़ुद ही सवाल करना
तुम्हारे कुछ बोलने से पहले
ख़ुद ही ज़बाब दे कहकहाना
तुम्हें बातों से सताना
पहले ख़ुद ही रूठना
फिर तुम्हें गले से लगाना
वो जिरह वो पागलपन
मेरी गज़ल में ख़ुद को पाकर
बहुत खुश होते थे ना तुम
मेरी उंगलियों की कश्मकश
अपनी हथेलियों की जद्दोजहदें
तुम उनसे करना मोहब्बतें…

मेरी प्रार्थनाओं में तुम रहोगे सदा
तुम भी मेरे हक़ में दुआएं करना
मैं भी चोरी से देख लूंगी
तस्वीरें तुम्हारी
तुम भी ऐसे ही कभी
मेरी रचनाओं को पढ़ लेना
कभी जो वक्त ने किया रहम
फिर आमने सामने हुए हम
तुम बस मुँह ना फेर लेना
अख़्लाक़ का करना मुज़ाहिरा
तुम मोहब्बत होने से करना मोहब्बतें…

महज़ इत्तिफ़ाक़ तो नहीं
हम मिले थे किसी जनवरी में
और जुदा किया इस दिसम्बर ने
तुम इसे उस ख़ुदा की रज़ा मान लेना
जनवरी सपने दिखाती है
और दिसम्बर औक़ात
जनवरी मिलाता है
ज़िंदगी से सपनों से
दिसम्बर धुंधलाता है
ज़िंदगी भी सपने भी
तुम दिसम्बर की कोई सर्द याद
दिल में ना रखना
तुम जनवरी से करना मोहब्बतें…

सुनो,
गर तुमको कभी महसूस हों
नफरतें मेरे वुजूद से
तो बेशक करना
चाहें बेहद करना
मगर फिर भी करना मोहब्बतें !!
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’

मोहब्बतें

यही सोचकर
चुरा लिया था
इक रूमाल
उसका मैंने
मोहब्बतें कहाँ
मुक़म्मल होती हैं
महबूब को तो
बिछड़ ही जाना था…

रखती हूँ
क़ैद में छुपा
हवाओं से
उसकी खुशबू को
इसी के सहारे
मुझे अब
बाक़ी उम्र को
बिताना था !!
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’

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