आज देखा है तुझ को देर के बअ'द, आज का दिन गुज़र न जाए कहीं।

मुझे ये डर है तिरी आरज़ू न मिट जाए, बहुत दिनों से तबीअत मिरी उदास नहीं।

वो कोई दोस्त था अच्छे दिनों का, जो पिछली रात से याद आ रहा है ।

आरज़ू है कि तू यहाँ आए, और फिर उम्र भर न जाए कहीं।

ऐ दोस्त हम ने तर्क-ए-मोहब्बत के बावजूद, महसूस की है तेरी ज़रूरत कभी कभी।

ज़रा सी बात सही तेरा याद आ जाना, ज़रा सी बात बहुत देर तक रुलाती थी।

जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िंदगी ने भर दिए, तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया।

दिल धड़कने का सबब याद आया, वो तिरी याद थी अब याद आया