40+बेवफ़ा शायरी | Bewafa Shayari

बेवफ़ा शायरी: प्यार, इश्क़, मोहब्बत हो और महबूब के बेबफा होने का भ्रम ना हो, ऐसा हो नहीं सकता, मन की उसी स्तिथि को दर्शाते कुछ शेर/शायरी जो हर प्यार करने वाले को अपने साथी पर चरितार्थ होते महसूस होंगे पढ़िए और बताइए कौन सी बेवफ़ा शायरी आपको सबसे उम्दा लगी –

बेवफ़ा शायरी

कुछ नहीं बदला मोहब्बत में यहाँ,
बस बेवफाई आम हो गयी है

ये जफ़ाओं की सज़ा है कि तमाशाई है तू,
ये वफ़ाओं की सज़ा है कि पए-दार हूँ मैं।

तुम जफ़ा पर भी तो नहीं क़ायम,
हम वफ़ा उम्र भर करें क्यूँ-कर ।

वही तो मरकज़ी किरदार है कहानी का,
उसी पे ख़त्म है तासीर बेवफ़ाई की ।

क़ायम है अब भी मेरी वफ़ाओं का सिलसिला,
इक सिलसिला है उन की जफ़ाओं का सिलसिला ।

उमीद उन से वफ़ा की तो ख़ैर क्या कीजे,
जफ़ा भी करते नहीं वो कभी जफ़ा की तरह ।

जो मिला उस ने बेवफ़ाई की,
कुछ अजब रंग है ज़माने का ।

चोट है, ज़ख्म़ हैं, तोहमत है, बेवफाई है,
बचपन के बाद इम्तहान कड़ा होता है।

गिला लिखूँ मैं अगर तेरी बेवफ़ाई का,
लहू में ग़र्क़ सफ़ीना हो आश्नाई का।

ये क्या कि तुम ने जफ़ा से भी हाथ खींच लिया,
मिरी वफ़ाओं का कुछ तो सिला दिया होता।

काम आ सकीं न अपनी वफ़ाएँ तो क्या करें,
उस बेवफ़ा को भूल न जाएँ तो क्या करें।

तुम किसी के भी हो नहीं सकते,
तुम को अपना बना के देख लिया।

उड़ गई यूँ वफ़ा ज़माने से,
कभी गोया किसी में थी ही नहीं।

शायद परिंदो की फितरत से आए थे वो मेरे दिल में,
ज़रा से पंख क्या निकले आशियाना ही बदल लिया !!

वो कहते हैं की मजबूरियाँ है बहुत,
साफ़ लफ़्ज़ों में खुद को बेवफा नहीं कहते

वफ़ा निभा के वो हमें कुछ ना दे सके
पर बहुत कुछ दे गए जब बेवफा हुए

सिखा दी बेवफाई भी तुम्हें ज़ालिम ज़माने ने,
तुम जो भी सीख लेते हो हम ही पे आजमाते हो

तेरी बेवफाई पे लिखूंगा गजलें,
सुना है हूनर को हूनर काटता है

इतनी मुश्किल भी ना थी राह मेरी मोहब्बत की,
कुछ जमाना खिलाफ हुआ कुछ वह बेवफा हुए।

अपने तजुर्बे की आजमाइश की जिद्द थी वरना,
हमको था मालूम कि तुम बेवफा हो जाओगे।

तेरी बेवफाई का सो बार शुक्रिया,
मेरी जान छूटी इश्क से मोहब्बत से।

मुझसे मेरी वफा का सबूत मांग रहे हो,
खुद बेवफा हो कर मुझसे वफा मांग रहे हो।

बातों में तल्खी लहजे में बेवफाई,
लो यह मोहब्बत भी पहुंची अंजाम पर।

शिकायत तुमसे नहीं अपने आप से मुझे,
वो बेवफा थी तो हम आज क्यों लगा बैठे।

तूने ही लगा दिया इल्जाम ए बेवफाई,
अदालत भी तेरी थी गवाह भी तू ही थी।

अब भी तड़प रहा है तू उसकी याद में,
उस बेवफ़ा ने तेरे बाद कितने भुला दिए।

अगर बेवफाओं की एक अलग दुनिया होती,
तो मेरी वाली वहां की रानी होती।

तेरी वफा के तकाज़े बदल गए वरना,
मुझे तो आज भी तुझसे अजीज़ कोई नहीं।

इस दौर में की थी जिससे वफा की उम्मीद,
आखिर को उसी के हाथ का पत्थर लगा मुझे।

मोहब्बत से भरी कोई गजल उन्हें पसंद नहीं,
बेवफाई के हर शेर पे वो दाद दिया करते हैं।

मेरे फ़न को तराशा है सभी के नेक इरादों ने,
किसी की बेवफाई ने किसी के झूठे वादों ने ।

उसकी बेवफाई पे भी फ़िदा होती है जान अपनी,
अगर उस में वफ़ा होती तो क्या होता खुदा जाने।

किसी बेवफा की खातिर ये जूनून कब तक,
जो तुम्हे भूल चूका है उसे तुम भी भूल जाओ।

मिल ही जायेगा कोई न कोई टूट के चाहने वाला,
अब शहर का शहर तो बेवफा हो नहीं सकता।

रोज़ ढलता हुआ सूरज ये कहता है मुझसे,
आज उसे बेवफा हुए एक दिन और बीत गया।

फिर से निकलेंगे तलाश ए जिन्दगी में,
दुआ करना इस बार कोई बेवफा न मिले।

कुछ अलग ही करना है तो वफ़ा करो,
बेवफाई तो सबने की है मज़बूरी के नाम पर।

रुसवा क्यों करते हो तुम इश्क को ऐ दुनिया वालो,
महबूब तुम्हारा बेवफा है तो इश्क का क्या गुनाह।

सिखा दी बेवफाई भी तुम्हें ज़ालिम ज़माने ने,
तुम जो भी सीख लेते हो हम ही पे आजमाते हो

वफ़ा निभा के वो हमें कुछ ना दे सके ,
पर बहुत कुछ दे गए जब बेवफा हुए।

वो कहते हैं की मजबूरियाँ है बहुत,
साफ़ लफ़्ज़ों में खुद को बेवफा नहीं कहते।

कुछ नहीं बदला मोहब्बत में यहाँ,
बस बेवफाई आम हो गयी है।

तेरी बेवफाई पे लिखूंगा गजलें,
सुना है हूनर को हूनर काटता है।

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