18 अष्टादश महा शक्तिपीठ |18 Ashtadasa Shakti Peethas In Hindi

हिन्दू धर्म में पुराणों के अनुसार, भगवान शिव की पत्नी सती देवी के शरीर के अंग के टुकड़े और धारण किये गए आभूषण जिस-जिस स्थान पर गिरे, वहां वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया।

हिन्दू धर्म में, हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, शक्ति का अर्थ है – देवी और शिव का आधा रूप, जिसे शिव-शक्ति भी कहा जाता है और पीठ का अर्थ है – स्थान अर्थात शक्तिपीठ – शक्ति का स्थान। हिन्दू धर्म में ये सभी महाशक्ति पीठ, सिद्ध पीठ, जाग्रत पीठ, शक्ति पीठ, पवित्र और तीर्थ स्थान के रूप में जाने जाते हैं, ये सभी शक्तिपीठ मंदिरों के रूप में स्थित हैं और इनकी पूर्ण श्रद्धा से पूजा और आराधना की जाती है।

शक्तिपीठ क्या है ? शक्तिपीठ की कथा।

पुराणों के अनुसार, देवी सती, भगवान शिव की पत्नी और दक्ष प्रजापति की पत्नी थीं, ब्रह्मा जी ने, दक्ष प्रजापति को अन्य प्रजापतियों के समान अपने मानस पुत्र के रूप में उत्पन्न किया था। शिवपुराण के अनुसार, जब ब्रह्मा जी को भगवान् शिव के विवाह की चिन्ता हुई तो उन्होंने भगवान् विष्णु की स्तुति की और विष्णु जी ने प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी को बताया कि यदि भगवान् शिव का विवाह करवाना है तो देवी शिवा(शक्ति) की आराधना कीजिए। दक्ष प्रजापति से कहिये कि भगवती शिवा की तपस्या करें और उन्हें प्रसन्न करके अपनी पुत्री होने का वरदान माँगे।

कथनानुसार ब्रह्मा जी ने दक्ष प्रजापति से भगवती शिवा की तपस्या करने को कहा और प्रजापति दक्ष ने देवी शिवा की घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिवा (शक्ति) ने उन्हें वरदान दिया कि मैं आपकी पुत्री के रूप में जन्म लूँगी। मैं तो सभी जन्मों में भगवान शिव की दासी हूँ साथ ही उन्होंने दक्ष से यह भी कहा कि जब आपका आदर मेरे प्रति कम हो जाएगा तब उसी समय मैं अपने शरीर को त्याग दूँगी, अपने स्वरूप में लीन हो जाऊँगी तदनुसार भगवती शिवा सती के नाम से दक्ष की पुत्री के रूप में जन्म लेती है और घोर तपस्या करके भगवान् शिव को प्रसन्न करती है तथा भगवान् शिव से उनका विवाह होता है।

कथा कहती है कि ऋषि-मुनियों के एक समूह द्वारा एक यज्ञ का आयोजन किया गया जिसमें सभी देवताओं ऋषि मुनि और स्वयं भगवान विष्णु, भगवान शिव और प्रजापति दक्ष भी आमन्त्रित थे, जब दक्ष प्रजापति यज्ञ में शामिल होने के लिए यज्ञ स्थल पर पहुंचें तो उन्हें सम्मान देने के लिए सभी खड़े हुए लेकिन भगवान विष्णु और भगवान शिव तठस्थ विराजमान रहे, चूंकि भगवान शिव, दक्ष प्रजापति के दामाद थे, दक्ष प्रजापति को ये बात अपमानजनक लगी कि भगवान शिव अपने ससुर के सम्मान में खड़े नहीं हुए।

इसी अपमान का बदला लेने के लिए दक्ष प्रजापति ने हरिद्वार में एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया और उसमें भगवान शिव और अपनी पुत्री देवी सती को छोड़कर, अन्य संपूर्ण ब्रह्मांड के ऋषि मुनि देवता आदि को आमन्त्रित किया, जब देवी सती को नारद मुनि के द्वारा ये बात पता चली तो उन्हें बहुत गुस्सा आया, नारद मुनि बोले – हे देवी, पुत्री को पिता के घर जाने के लिए किसी आमंत्रण की आवश्कता नहीं होती।
देवी सती ने ये बात जाकर भगवान शिव से कही और उनसे साथ चलने का अनुरोध किया।

भगवान शिव ने देवी सती को समझाते हुए कहा – बिना आमंत्रण के कहीं भी जाना अनुचित है। देवी सती ने नारद मुनि जी के शब्द दोहराए- एक पुत्री को पिता के घर जाने के लिए किसी आमंत्रण की आवश्कता नहीं होती। तब भगवान शिव ने कहा – यदि आप जाना चाहती हैं तो अवश्य जायें। यह सुनकर दुःखी मन से देवी सती अपने पिता दक्ष प्रजापति के द्वारा आयोजित यज्ञ स्थल पर पहुंची और अपने पिता से उन्हें ना बुलाने का कारण पूछा। इस पर दक्ष प्रजापति ने अहंकार स्वरूप भगवान शिव के लिए अपमानजनक टिप्पणी की, जिसे सुनकर दक्ष प्रजापति का आदर देवी सती की नज़रों में कम हो गया और उन्होंने यज्ञ के अग्निकुंड में अपने प्राणों की आहूति दे दी।

जैसे ही भगवान शिव को इस दुर्घटना का पता चला, वो क्रोध से भरकर यज्ञ स्थल तक पहुंचें और दक्ष प्रजापति का सर धड़ से अलग कर दिया। भगवान शिव ने अग्निकुंड से देवी सती का पार्थिव शरीर उठाया और भूलोक पर तांडव नृत्य करने लगे जिससे उनकी तीसरी आंख खुल गई। यह देखकर समस्त लोक, संपूर्ण ब्रह्मांड प्रलय के डर से हिल गया और सभी एकत्रित होकर भगवान विष्णु के पास गए और इस प्रलय को रोकने का अनूरोध किया।

भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शरीर को एक ही प्रहार से टुकडों में बांट दिया और घोषणा की कि देवी सती के शरीर का एक- एक अंग का टुकड़ा, धारण वस्त्र और आभूषण देवी सती की शक्ति का प्रतीक और आने वाली मानव जाति के दुखों को हरने वाला शक्तिपीठ बनेगा।
भगवान शिव, देवी सती के पार्वती रूप में पुनः मिलन तक समाधिस्थ रहे।

शक्तिपीठ कितने हैं ?

शक्तिपीठ के संदर्भ में विभिन्न पुराणों एवमधार्मिक ग्रंथों में इनकी सख्यां में मतभेद हैं।

  • तंत्र चूड़ामणि में 52 शक्तिपीठ,
  • देवी भगवती पुराण में 108 शक्तिपीठ,
  • शिवचरित में 51 शक्तिपीठ,
  • कालिकापुराण में 26 शक्तिपीठ,
  • आदिशंकराचार्य द्वारा लिखित ‘अष्टदश शक्तिमहापीठ’ में 18 महाशक्तिपीठों का उल्लेख मिलता है।

शक्तिपीठ कहाँ-कहाँ पर हैं।

108 शक्तिपीठ देश- विदेश में अनेकानेक मंदिरों के रूप में विघमान हैं जिनकी सूची नीचे दी गई है। 51 शक्तिपीठ में से 42 भारत में हैं और 9 विदेशों में, भारतीय उपमहाद्वीप पर स्थित हैं, जिस में बांग्लादेश में 4 शक्तिपीठ,नेपाल में 2 शक्तिपीठ, पाकिस्तान में 1 शक्तिपीठ, श्रीलंका में 1 शक्तिपीठ, तिब्बत में 1 शक्तिपीठ स्थापित हैं और इनमें से 18 महाशक्ति पीठ की बात करें तो भारत में 17 महाशक्तिपीठ और 1 महाशक्तिपीठ श्री लंका में है

18 महाशक्ति पीठ, जगह, अंग।

1- शक्ति- शारदा देवी/ सरस्वती देवी मंदिर

नाम- शारदा शक्तिपीठ
हिस्सा – दाहिना हाथ / कान
स्थान – कश्मीर

2-शक्ति- ज्वालामुखी देवी

नाम- ज्वाला देवी शक्तिपीठ
हिस्सा – सिर का भाग
स्थान – कांगड़ा ( हिमाचल प्रदेश )

3-शक्ति- माँ विशालाक्षी

नाम- विशालाक्षी शक्तिपीठ
हिस्सा – कर्ण/कुण्डल
स्थान – मणिकर्णिका घाट वाराणसी (काशी)

4-शक्ति- माधवेश्वरीदेवी

नाम- अलोपशंकरी देवी शक्तिपीठ
हिस्सा – उंगलियों
स्थान – प्रयाग ( उत्तर प्रदेश )

5-शक्ति- मङ्गलागौरी

नाम- माँ मंगला गौरी शक्तिपीठ
हिस्सा -स्तन का हिस्सा
स्थान – गया ( बिहार )

6-शक्ति- कामाक्षी देवी

नाम- कामाक्षी देवी शक्तिपीठ
हिस्सा -सतह का हिस्सा
स्थान – कांचीपुरम ( तमिलनाडु )

7-शक्ति- स्वर्णकला देवी

नाम- श्रंखला शक्तिपीठ
हिस्सा -उदर भाग
स्थान -पांडुआ ( पश्चिम बंगाल )

8-शक्ति- चामुंडेश्वरी देवी

नाम- चामुंडेश्वरी देवी शक्तिपीठ
हिस्सा -बाल
स्थान – मैसूर ( कर्नाटक )

9-शक्ति- जगुलम्बा देवी

नाम- जगुलम्बा देवी शक्तिपीठ
हिस्सा -ऊपरी दांत
स्थान – आलमपुर ( आंध्र प्रदेश )

10-शक्ति- भ्रामराम्बा देवी

नाम- भ्रामराम्बा देवी शक्तिपीठ
हिस्सा -गर्दन का हिस्सा
स्थान – श्रीशैलम ( आंध्र प्रदेश )

11-शक्ति- अंबाबाई

नाम- अंबाबाई शक्तिपीठ
हिस्सा -आँख
स्थान – कोल्हापुर ( महाराष्ट्र )

12-शक्ति- रेणुका देवी

नाम- रेणुका देवी शक्तिपीठ
हिस्सा -दक्षिण हाथ
स्थान – नांदेड़ ( महाराष्ट्र )

13-शक्ति- देवी हरसिद्धि

नाम- देवी हरसिद्धि शक्तिपीठ
हिस्सा -ऊपरी पेट
स्थान – उज्जैन ( मध्य प्रदेश )

14-शक्ति- पुरुहुतिका देवी

नाम- पुरुहुतिका देवी शक्तिपीठ
हिस्सा -बायां हाथ
स्थान -पीठापुरम ( आंध्र प्रदेश )

15-शक्ति- बिरजा /गिरिजा देवी

नाम- बिरजा /गिरिजा देवी शक्तिपीठ
हिस्सा -नाभि
स्थान – जाजपुर ( उड़ीसा )

16-शक्ति- मणिकाम्बा देवी

नाम- मणिकाम्बा देवी शक्तिपीठ
हिस्सा -बायां गाल
स्थान – द्राक्षरमन ( आंध्र प्रदेश )

17-शक्ति- कामाख्यादेवी

नाम- कामाख्यादेवी शक्तिपीठ
हिस्सा -प्रजनन नलिका
स्थान – गौहाटी ( असम )

18-शक्ति- शंकरीदेवी

नाम- शंकरीदेवी शक्तिपीठ
हिस्सा -ऊसन्धि
स्थान – त्रिंकोमाली ( श्रीलंका )

शक्तिपीठ पर बनी फ़िल्म

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