प्रेम हर किसी के लिए एक अलग अनुभूति है, हर किसी की कहानी भी अलग है बिल्कुल हमारे अंगूठे के निशाँ की तरह, लेकिन प्रेम में एक बात जो सभी के लिए समान है वो है किसी एक व्यक्ति के लिए ह्रदय के धरातल पर प्रेम के अंकुर का फूटना और उसकी जड़ों का सम्पूर्ण ह्रदय में अपना स्वामित्व कर लेना।
हम कहीं भी रहें साथ हों या ना हो वो व्यक्ति हमारे अन्दर से फिर कहीं नहीं जाता और कभी नहीं जाता इसलिए शायद प्रेम को अमर कहा गया है प्रेम पर मेरे द्वारा कुछ लिखी गयीं रचनाएँ जो पुस्तकों में भी अमेंज़ोन और फ्लिप्कार्ट पर उपलब्ध हैं –
तुमसे मिल कर मैंने इस गहरे प्रेम को जाना
प्रेम एक यात्रा है
प्रेम के पल नहीं होते
हर लम्हा तुम ख़ुद प्रेम हो जाते हो
तुमसे मिल कर
मैंने इस गहरे प्रेम को जाना
आटा गूंथते हुए जब
मैंने साथ में प्रेम भी गूंथा
तुम्हारी जरा सी तारीफों से
अपने अन्दर
प्रेम के आकाश को फैलते हुए पाया
तब मैंने गहरे प्रेम को जाना
तुम्हारे कपड़ों पर इस्त्री करते हुए
प्रेम भरे हाथों से सिलवटों को निकाला
तुम्हारी खुशबू जब
मेरे नासापुटों से होकर
ह्रदय के तारों को झंकृत कर उठी
तब मैंने गहरे प्रेम को जाना
तुम्हारी निश्छल हंसी, प्रेम भरी नज़र
मेरे जीवन के कीमती पलों में से हैं
तुम्हारी बातों में कभी
अपने अहम होने का एहसास
मेरे ह्रदय के धरातल तक जा उतरा
तब मैंने गहरे प्रेम को जाना
तुम्हारी आंखों के इशारे से पहले ही
मेरा उस तरफ दौड़ना
प्रेम की अनदेखी डोरी सा लगता है मुझे
मेरे बिना कहे, तुम्हारा समझ जाना
जब धड़कनों को बढ़ा गया
तब मैंने गहरे प्रेम को जाना
अदृश्य दूरभाष की तरह
मेरे मन की स्तिथि को जान
वो तुम्हारा ढाढ़स बंधाना…
मेरा नाम तुमने एक ही ख़ास
अंदाज से जब-जब पुकारा
तब-तब मैंने गहरे प्रेम को जाना !!
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’
दो प्रेमी ह्रदय
टूटता हुआ तारा
और उसे देख
इच्छा और अभिलाषा से
बंद हुईं आँखें
बंधे हुए हाथ
मौन की अभिव्यक्ति
पूर्ण हों जाने का विश्वास…
मुझे प्रेम में समर्पण
और अहंकार के टूट जाने की कहानी
कहते जान पड़ते हैं
दो प्रेमी ह्रदय
प्रेम के वशीभूत
त्याग के फूलों को
चरणों में अर्पित करते
अपने प्रियतम की
प्यास को तर्पित करते
फ़लक छोड़
ना जानें
कितनी बार टूटते हैं
स्वेच्छा और आनंद से
एक-दूसरे के लिए !!
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’
प्रेम का प्रमाण
प्रेम स्वंतत्र है, सिद्ध है
सर्वमान्य है, साक्षी है
किसी प्रेमी या प्रियसी का
तुम्हारी ज़िंदगी में बने रहना
प्रेम का प्रमाण नहीं
तुम्हारे जीवन से चले जाने के बाद भी
उसकी खुशबू का कभी-कभी
पूरी शिद्दत से तुम में उठता महसूस होना
और तुमको बेचैन मृग कर देना
प्रमाण है…
कभी उसकी यादें तुम्हारे
रोम-रोम को रोमांच से सराबोर कर दें
अचानक कभी तुम धीमे से मुस्कुरा दो
भीग जाओ अनदेखी प्रेम की बारिश में
तुम्हारा उस बारिश में तर-बतर हो जाना
प्रमाण है…
ये सोचकर की
उसे नीला रंग तुम पर पसंद था
कभी तुम उसकी याद में
उस रंग को अपने चारों तरफ़ सजा लो
तुम्हारा ख़ुद को उसके रंग में ढाल लेना
प्रमाण है…
उस सितमगर से
हज़ार असहमति के बाद भी
तुम्हारे अन्दर से उसके लिए हमेशा
प्रार्थनाओं का उठना
प्रेम का प्रमाण है !!
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’
प्रेम पथ
फिर यूं भी हुआ था कि
कोई दलील
कोई मिन्नत
कोई हथकंडा काम ना आया उसका
हर लफ़्ज़ बेअसर हो गया, बे-मानी हो गया
मानो पत्थर हो गया था, कहीं कुछ मेरे अन्दर
जिसके इशारे भी समझती थी
उसके अल्फाज़ अनसुने हो गए
जिसके आहट से धड़कनें बढ़ती थीं
उसकी दस्तकें गूंगी हो गईं
नहीं सुन पाती थी, अब मैं उसकी सदाएं
बहरा हो गया था, मेरे जिस्म का एक हिस्सा
वजह कुछ भी हो लेकिन
किसी के साथ होकर
अकेले महसूस होने से
बहुत बेहतर है
उसके बिना, अकेले हो जाना है
किसी ख़ास पल में
यही अकेलापन तुम्हें ले जायेगा
अन्तर्मन से होते हुए
एकांत की यात्रा पर
जहां तुम र्निविरोध उतर जाओगे
निस्वार्थ गहरे प्रेम के धरातल पर
साक्षी बनोगे, अपनी निर्मल आत्मा के
पा जाओगे, उस सूक्ष्म की झलक
हो जाओगे, मोह के बन्धन से मुक्त
प्रेम में से मोह हट जाए
तो वो कुंदन हो जाता है
शायद किसी ने ठीक ही कहा है
मात्र दो ही रास्ते हैं
उस परमात्मा तक जानें के
पहला प्रेम
दूसरा ध्यान !!
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’
प्रेम पथिक
की
राह में,
स्वर्ग से
रमणीक
पड़ाव…
प्रेम का
चर्मोत्कर्ष
दुर्लभ,
भ्रमजाल से
बहते
घाव !!
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’
प्रेम तुमको चुनता है
ये पहाड़
ये वादियां
ये समन्दर
ये नदियां
ये चांद
ये घाटियां
प्रेम इन्हीं में से है
प्रकृति के
अद्वितीय उपहारों में से एक
माध्यम कोई भी हो
प्रेम तुमको चुनता है…
तुम प्रेम को नहीं !!
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’
प्रेम प्रतीक्षा
एक प्रेम ही ऐसी एकमात्र
प्रतीक्षा है
जिसमें प्रेमी ह्रदय
अगले जन्म का वादा कर ले
प्रेम के अलावा
किसी बात के लिए
इंसान अगले जन्म की उम्मीद
ना रखता है ना देता है !!
-मोनिका
स्वतंत्र प्रेम
कहीं किसी स्कूल की डेस्क पर
कभी कहीं गलियों की दीवारों पर
कहीं किसी समंदर की रेत पर
कभी पुरानी किताबों के
पिछले पेज पर
कभी वृक्षों के सीनों पर
कभी मन्नतों पर
कभी कभी कलम से हथेलियों पर
पढ़ें होंगें देखें होंगें
तुमने ‘दो अक्षर साथ’
ये साथ लिखे गए
दो नाम के अक्षर
असल में
दो स्वतंत्र प्रेमियों के
आत्मिक जुड़ाव के
इक होने की निशानी है
ये नाम एक दूसरे के ह्रदय में
स्थापित होने की स्वतंत्र गवाही है
ह्रदय का वो चुनाव जो है
समाज के नियमों से परे
कानून के दायरे से बाहर
रीति रिवाज़ से मुक्त
बंधनों से दूर…
पूर्णतया स्वतंत्र प्रेम
जैसे राधा-कृष्ण !!
-मोनिका
निस्वार्थ प्रेम
इन आंखों ने
अपने दायरों की हदों तक
प्राण और प्रकृति के अनगिनत नज़ारे देखे
भँवरे को फूलों संग देखा फ़लक पर सितारे देखे
चांद के असीम प्रेम की छांव में तारे पैर पसारे देखे
नदियां गुनगुनाती देखीं साथ मचलते किनारे देखे
संबंधों की दुनियां देखी अपनों के संग प्यारे देखे
वक्त के हर रूप को देखा उम्र के रंग सारे देखे
इस जहां में
निस्वार्थ दो स्वंतत्र प्रेमियों के
निर्मल आलिंगन सा विहंगम दृश्य
दूसरा कोई भी नहीं !!
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’
प्रेम तूफ़ानी
सुख दुःख की, क्या है परिभाषा
विविध जगत की देख कहानी…
तुम कहते हो किसको ज्ञानी
मेरी छोड़ो मैं अज्ञानी
पैसा देख- देख मुस्काता
हृदयहीन सा बढ़ता जाता
प्रकृति जिससे चूकी रहती
चूक गया बारिश का पानी…
तुम कहते हो किसको ज्ञानी
मेरी छोड़ो मैं अज्ञानी
बुद्ध की जो तस्वीर लगाता
दीवारों को घर की सजाता
बोधि वृक्ष ना गया देखता
भूल चुका गौतम की कहानी…
तुम कहते हो किसको ज्ञानी
मेरी छोड़ो मैं अज्ञानी
पाप मिटाने गंगा जाता
मन के मैल को धो ना पाता
बैठा कभी ना नदिया किनारे
सुना ना संगीत उनका रूहानी…
तुम कहते हो किसको ज्ञानी
मेरी छोड़ो मैं अज्ञानी
कुंठित मन को करता जाता
रुग्ण वासना से घिर जाता
पहाड़ लिए जीता है अन्दर
लांघे ना पर्वत गुज़री ज़वानी…
तुम कहते हो किसको ज्ञानी
मेरी छोड़ो मैं अज्ञानी
ज़िंदगी को काटता जाता
उत्सव सा ना जीवन मनाता
जकड़न तोड़ी ना मोह-माया की
अनसुनी रह गयी अंतरबानी…
तुम कहते हो किसको ज्ञानी
मेरी छोड़ो मैं अज्ञानी
ह्रदय नमी को खोता जाता
रेगिस्तान सा होता जाता
नहाया नहीं चांद की चांदनी में
कर ना सका प्रेम तूफ़ानी…
तुम कहते हो किसको ज्ञानी
मेरी छोड़ो मैं अज्ञानी !!
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’
मैं ख़ोज रही हूँ अपनी रचना
मैं ख़ोज रही हूँ अपनी रचना
अन्तर्मन के प्यालों में
कभी मौन में कभी सवालों में
घने अंधेरों के उजालों में
मैं ख़ोज रही हूँ अपनी रचना
अम्बर के दुशालों में
कभी ध्यान मे कभी ख़यालों में
निष्ठुर अवज्ञा के बवालों में
मैं ख़ोज रही हूँ अपनी रचना
भक्ति रस के मतवालों में
कभी गीता में कभी वेतालों में
सांख्य कर्म के जंजालों में
मैं ख़ोज रही हूँ अपनी रचना
प्रकृति के मधुशालों में
कभी धरती में कभी पातालों में
चंचल मन के संजालों में
मैं ख़ोज रही हूँ अपनी रचना
प्रेम के त्रितालों में
कभी अवतल में कभी उत्तालों में
अंत:करण के त्रिकालों में !!
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’
प्रेम का बीज
अंधेरों में अंधेरों से,
लिपट कर रहना तुम,
प्रेम का बीज हो
मिट्टी में रोपे जा रहे हो।
तुम्हें टूटना भी होगा अभी
अंकुरण के लिए,
तुम विकास की जमीं तले
सींचें जा रहे हो !!
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’
प्रकृति प्रेम पर कविता
मुंडेरों पे आ बैठते हैं,
प्रेम- पत्र की तलाश में…
परिंदों को कैसे बताऊं,
वो दौर गुज़र गए !!
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’
क्या हुआ गर खुश है वो कभी गैरों के सायों में…
मैंने भंवरों का प्रेम देखा है भांति भांति के फूल से !!
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’
तू कहता है तू पत्थर है तो पत्थर ही सही…
मैं झरना हूं ढूंढ लूंगी प्रेम का रास्ते तुझ में !!
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’
ये बारिशें भी इश्क़ हैं,
जमीनों की तलाश हैं…
कहीं हैं दिल में यादों सी,
कहीं प्रेम के पलाश हैं !!
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’
आख़िर चुन ही लिया
तुमने भी दुनियादारी को…
या यूं कहूं कि प्रेम ने
फ़क़त विरले ही चुने !!
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’
कभी नदियां, कभी झरने, कभी पहाड़ हुई मैं,
कभी दरिया, कभी कश्ती, कभी मझधार हुई मैं।
देख छूकर तेरे प्रेम ने मुझे क्या- क्या बना दिया,
कभी कलियां, कभी खुशबू ,कभी बहार हुई मैं।
शरारती आंखों की तेरे यूं कभी शिकार हुई मैं,
कभी शोला, कभी शबनम, कभी अंगार हुई मैं।
लगाकर महक नाम की तेरे साजो सिंगार हुई मैं,
कभी तितली, कभी भंवरा, कभी गुलज़ार हुई मैं।
तेरी आंखों के जादू से भीग-भीग निसार हुई मैं,
कभी बादल, कभी बारिश तो कभी फुहार हुई मैं।
धुनों की प्रेममय लय संग खुद भी झंकार हुई मैं,
कभी मुरली, कभी झाँझर, कभी सितार हुई मैं !!
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’
वह जीवन धीरे- धीरे मृत हो जाता है
जो यात्राओं से विमुख हो
संगीत से विहीन हो
प्रेम से अनभिज्ञ हो
पढे नहीं
एकांत को ना जिए
और जिसमें स्वयं को जानने की
जिज्ञासा ना जागे !!
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’
मैंने क़हक़हे खोद कर देखें हैं,
मैंने जीवन को उधेड़ कर भी देखा है,
सब कुछ खोखला है….
प्रेम के सिवा !!
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’
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