नीम करोली बाबा को नीम करोरी बाबा के नाम से भी जाना जाता है, और उनके भक्तों द्वारा उन्हें “महाराज-जी” और “बाबा जी” कहा जाता है। बाबा जी की शिक्षाएँ सरल और सार्वभौमिक थीं। वह अक्सर कहते थे, “सब एक” – सब एक है। उन्होंने हमें सिखाया कि “सब से प्रेम करो, सबकी सेवा करो, परमेश्वर को याद करो और सच बोलो“।
नीम करोली बाबा का नाम और जन्म स्थान
बाबा जी का जन्म लक्ष्मी नारायण शर्मा के रूप में हुआ था, यह नाम उन्हें उनके माता-पिता ने दिया था।
माना जाता है कि बाबा नीम करौली का जन्म 1900 के आसपास एक भव्य ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका जन्म भारत के उत्तर प्रदेश में फिरोजाबाद जिले के पास ‘अकबरपुर‘ नामक एक छोटे से गाँव में हुआ था। उनके पिता पंडित दुर्गा प्रसाद शर्मा जो एक बड़े जमींदार थे और उनकी माता एक गृहिणी थीं।
नीम करोली बाबा का जीवन
बहुत कम उम्र में बाबा जी जीवन की सच्चाई के बारे में जानने की उत्सुकता घर कर चुकी थी, मात्र ग्यारह वर्ष की उम्र में अपने माता-पिता की इच्छा के अनुसार बाबा जी की एक संपन्न परिवार की लड़की से शादी हुई, लेकिन बाबा जी जानते थे कि ये वह नहीं है जो जिंदगी से उन्हें चाहिए, उनकी मंजिल कहीं और है जिसकी तलाश में बाबा जी विवाह के तुरंत बाद खुद को सभी सांसारिक मोहों से अलग कर घर-बार का त्याग कर गुजरात राज्य की ओर कदम बढ़ा दिए।
बाबा जी एक लम्बे समय तक गुजरात और पूरे देश में विभिन्न स्थानों पर घूमते रहे, परिणाम स्वरुप बहुत ही कम उम्र में बाबा जी ने अलौकिक ज्ञान प्राप्त कर लिया था। लगभग 10 वर्षों की घोर तपस्या ओर भृमण के बाद बाबा जी को आत्म-ज्ञान की प्राप्ति हुई।
नीम करोली बाबा का परिवार
लगभग 10-15 वर्षों के बाद (यह अनुमानित है और जैसा कि अकबरपुर गाँव के बुजुर्गों द्वारा बताया गया है) उनके पिता को किसी ने सूचित किया कि उसने एक साधु (तपस्वी) को देखा है, जो नीब करोरी गाँव में आया है औऱ उनके बेटे जैसा दिखता है।
उनके पिता तुरंत नीब करोरी गांव में अपने बेटे से मिलने और उसे लेने के लिए दौड़ पड़े। वहाँ वे बाबा जी से मिले और उन्हें घर लौटने का आदेश दिया। बाबा जी ने अपने पिता के निर्देशों का पालन किया और लौट आए। यह दो अलग-अलग प्रकार के जीवन की शुरुआत थी जिसका नेतृत्व बाबा जी ने किया। एक गृहस्थ की और दूसरी संत की। उन्होंने एक गृहस्थ की अपनी जिम्मेदारी के लिए समय समर्पित किया और साथ ही साथ अपने बड़े परिवार यानी बड़े पैमाने पर दुनिया की देखभाल करना जारी रखा।
हालाँकि, गृहस्थ या संत के कर्तव्यों का निर्वहन करते समय उनके जीवन और जीवन शैली में कोई अंतर नहीं था। उनके परिवार में एक गृहस्थ के रूप में उनके दो बेटे और एक बेटी है।
1925 में बाबा को सुपुत्र की प्राप्ति होती है। जिसका नाम अनेग सिंह शर्मा रखा जाता है। इस बीच बाबा का नीबकरोरी में आना-जाना बना रहता है। 1917 से 1935 तक बाबा, नीमकरोरी में तपस्यारत रहे। फिर 1935 में एक भव्य यज्ञ का आयोजन होता है। जिसमें बाबा, अपनी जटाये त्याग देते हैं। उनके धर्म कार्य और ग्रस्त कार्य दोनों साथ-साथ चलते हैं। 1937 में उन्हें, दूसरे पुत्र की प्राप्ति होती है। जिसका नाम धर्म नारायण शर्मा रखा जाता है। वो आजकल वृंदावन आश्रम की देखरेख करते हैं। फिर 1945 में कन्या रत्न की प्राप्ति होती है। जिनका नाम गिरजा देवी रखा जाता है।
![Nibkarori-railway-station](https://www.hindi-mein.in/wp-content/uploads/2022/05/Baba-Neem-Karoli-Nibkarori-Railway-Station.jpg)
नीम करोली रेलवे स्टेशन (नीब करोरी )
एक समय की बात है नीम करोली बाबा टूंडला से फर्रुखाबाद जाने वाली ट्रेन के प्रथम श्रेणी के डिब्बे में यात्रा कर रहे थे, एक अंग्रेजी टिकट निरीक्षक वहां आया और शाल ओढ़े बाबा जी को देखकर गुस्से में उन्हें बेइज्जत करके,रास्ते में ही ट्रेन से उतार दिया। और बाबा जी भी बिना विरोध किए उतर गए और जाकर एक नीम के पेड़ के नीचे बैठ गए।
उन्होंने अपना चिमटा जो की वो साथ रखते थे , वही जमीन में गाड़ दिया। लेकिन उनके ट्रेन से उतरते ही, ट्रेन दोबारा चल नहीं पाई । हर तरह की कोशिशों के बाद भी, ट्रेन अपनी जगह से तस से मस नहीं हो पा रही थी । हर तरीके से चेक करने के बाद भी कोई कमी नज़र नहीं आई, फिर किसी यात्री ने ट्रेन के गार्ड, ड्राइवर व टिकट निरीक्षक से कहा कि एक साधू की बेईज्ज़ती की है, हो न हो ये उसी का परिणाम है, आप लोग उस साधू को वापस बुलाओ शायद ट्रेन चल जाये, मरता क्या न करता, उन्होंने बाबा से क्षमा याचना और विनती की कि वो ट्रेन में पुनः आकर बैठे।
बाबा ने ट्रेन पर बैठने के लिए दो शर्तें रखी। पहली वह कभी भी, किसी साधु-संत को, ऐसे बेइज्जत नहीं करेंगे। इसके बाद, उन्होंने प्रथम श्रेणी का टिकट भी दिखाया। दूसरी इस स्थान पर एक रेलवे स्टेशन का निर्माण हो। यह वक्त ब्रिटिश शासन काल का था। बाबा की यह दोनों चलते मान ली गई। फिर जैसे ही बाबा ट्रेन पर बैठे। ट्रेन चल पड़ी।
ट्रेन रोके जाने की घटना, विश्व प्रसिद्ध हुई। जिसके कारण नीब करोरी बाबा की चर्चा देश-विदेश में होने लगी।
शर्त के अनुसार, वही एक स्टेशन का निर्माण हुआ और उस स्थान का नाम “नीबकरोरी स्टेशन” पड़ा। जो आज भी स्थित है। उनके साथ, उस गांव के काफी लोग गंगा मैया का स्नान करने जा रहे थे। उन्होंने बाबा से आग्रह किया कि वह उनके गांव में आ कर रहे और बाबा ने वहां लौटकर काफी वक़्त बिताया, इस गावं में उनके नाम का एक मंदिर भी है।
फिर बाबा ने गांव वालों से कहकर गुफा बनवाई। बाबा ने अपने हाथों से हनुमान जी की मूर्ति की रचना की। जो आज नीम करोली धाम में मौजूद है। बाबा उस गुफा में अनेकों-अनेकों दिन तक घोर साधना किया करते थे। यहां उनका नाम बाबा नीबकरोरी पड़ा। जो कि बाद में नीम करोली विख्यात हुआ।
नीम करोली बाबा के विभिन्न नाम
जब उन्होंने गुजरात के बवनिया में तपस्या की, तो उन्हें तलैया बाबा के नाम से जाना जाने लगा। जब वे नीबकरोरी गाँव में रहते थे, तो उन्हें स्थानीय ग्रामीणों द्वारा नीबकरोरी बाबा कहा जाता था। ‘नीबकरोरी’ की स्पेलिंग को लेकर काफी कंफ्यूजन है। नीबकरोरी हिंदी के इसी शब्द का ध्वन्यात्मक अनुवाद है।
नीब को कभी-कभी निब के रूप में लिखा जाता है और करोरी को कभी-कभी करौरी के रूप में लिखा जाता है। नीब में ‘ई’ का उच्चारण ‘गति’ के रूप में किया जाता है और करोरी में ‘ओ’ को ‘कच्चे’ में ‘ए’ के रूप में उच्चारित किया जाता है। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि नीब करोरी नाम बाबा जी ने स्वयं लिया था।
उन्होंने कुछ जगहों पर इसी नाम से दस्तखत किए हैं। नीब (शुद्ध हिंदी में – नीव) का अर्थ है नींव और करोरी (शुद्ध हिंदी में – करारी) का अर्थ है मजबूत। तो नीब करोरी का मतलब एक मजबूत नींव है। हालाँकि वर्षों में नीब करोरी का नाम निब करोरी, नीब करौरी जैसे विभिन्न तरीकों से बदल दिया गया और इसने अंततः “नीम करोली” का रूप ले लिया। यह नाम पाश्चात्य भक्तों के बीच लोकप्रिय हुआ और ऐसे ही चलता रहा।
यह सच है कि बाबाजी की इच्छा से ही यह नाम ऐसा रूप धारण करके उनके भक्तों को इतना प्रिय हो गया होगा। लेकिन ‘नीम करोली’ शब्द का अर्थ बहुत अलग है। नीम एक भारतीय वृक्ष है और भारत में करोली एक स्थान है। पश्चिमी भक्त जिन्होंने अंततः हिंदी और देवनागरी लिपि सीखी है, उन्होंने स्वीकार किया है कि अंग्रेजी में वर्तनी वास्तव में नीबकरोरी होनी चाहिए।
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नीम करोली बाबा का स्थान,आश्रम
वैसे तो दुनिया भर में बाबा के हजारों मंदिर और आश्रम हैं परन्तु कैंची धाम जो कि नैनीताल से लगभग २२ किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर स्थित है को बाबा के सबसे प्रमुख मंदिर में से एक माना जाता है।
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कैंची धाम
1962 में नीम करोली बाबा उत्तराखंड में भ्रमण के दौरान कैंची धाम जहाँ आज मंदिर स्थापित है पहुंचे और पूर्णानंद नामक एक वियक्ति से मिले और पहली बार मिलने पर भी उन्होंने उन्हें उनके नाम से पुकारा।
पूर्णानंद इस बात से बहुत आश्चर्यचकित हुए, तब बाबा ने कहा मैं सब जानता हूँ, तू भूल गया है लेकिन याद कर आज से २० साल पहले तू मुझे भुमियाधार में मिला था जब तेरे घर अल्मोड़ा का केस चल रहा था और तूने तो वो घर जीतने का बाद भी उन्हीं को दे दिया इतना सुनकर पुर्नानद उनके पाँव में गिर गये और बोले बाबा मैं धन्य हो गया कि आपने मुझे दोबारा दर्शन दिए उसके बाद बाबा ने पुर्नानद से कहा कि यहाँ मैं मंदिर बनाना चाहता हूँ और बाबा जी सबके साथ नदी पार कर दूसरी ओर जंगल में जाते हैं।
फिर एक स्थान पर रुककर कहते हैं- यह जो पत्थर है, इसे खोदकर हटाओ इसके पीछे गुफा है। पूर्णानंद और गांव वाले सोचते हैं कि हमने तो पूरा जीवन यहां बताया। लेकिन कभी गुफा का आभास नहीं हुआ। ये बाहर से आए, बाबा को इस जगह के बारे में कैसे पता। बाबा जी के कहने पर, खोदाई कर पत्थर हटाया जाता है। वहां एक गुफा मिलती है। बाबा बताते हैं कि गुफा में एक हवन कुंड है। सभी अंदर जाते हैं और बाबा के बताए अनुसार सभी कुछ जस का तस मिलता है।
बाबा जी ने कहा यहाँ बाबा सोमवारी ने तपस्या की है, बाबा बताते हैं कि यह कोई चमत्कार नहीं है। बल्कि यह स्थान हनुमान जी का है। इस स्थान को नदी के जल से, शुद्धिकरण करते हैं। फिर वहां पर हनुमान जी को स्थापित किया गया। तब बाबा बताते हैं कि यह स्थान सोमवारी बाबा की तपोस्थली है। फिर वहां हनुमान जी की स्थापना के साथ ही, बाबा का आना-जाना लगा रहता हैं।
15 जून 1962 में कैंची धाम की स्थापना की जाती है। उस वक्त चौधरी चरण सिंह वन मंत्री थे। वह बाबा को कैंचीधाम के निर्माण के लिए जगह मुहैया करवाते हैं। जिस पर बाबा खुश होकर आशीर्वाद देते हैं। वह एक दिन भारत के प्रधानमंत्री बनेंगे। जबकि चौधरी चरण सिंह की दूर-दूर तक प्रधानमंत्री बनने की कोई संभावना नहीं होती है। (बाद में वे 28 जुलाई 1979 – 14 जनवरी 1980 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे )
उन्होंने 15 जून 1964 के समय हनुमान भगवान की मूर्ति स्थापित की और तभी से यह जगह आने वाले कुछ सालों में कैंची धाम बन गई कैची धाम की ऊंचाई समुद्र तल से 14०० मीटर है यह नैनीताल से 22 किलो मीट दूर स्थित है।
कैंची नाम की वजह यहाँ के दो घुमावदार मोड़ है जिनकी वजह से इस जगह का नाम कैंची रखा गया है क्योंकि ऊंचाई से देखने में यह कैंची के समान दिखाई देते हैं जिस वजह बाबा नीम करोली के मंदिर पर इसका नाम कैंची चीज धाम पड़ गया हर साल १५ जून को यहाँ विशाल भंडारे का आयोजन होता है और यहां एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है इस दिन देश और विदेश से हजारों किलोमीटर की दूरी को तय करके भक्तजन नैनीताल में स्थित इस भव्य मंदिर कैंची धाम में आते हैं।
बाबा नीम करोली कैंची धाम से ही संपूर्ण जगत में विख्यात रहे क्योंकि उन्होंने यहां कई ऐसे दिव्य चमत्कार किए थे, जो चमत्कार कोई दिव्य शक्ति या भगवान ही कर सकते हैं। हम आपको इनमें से कुछ चमत्कारों के बारे में जल्द ही बताएँगे।
अन्य मंदिर/आश्रम सूचि
- Akbarpur Tample- Maharajji’s Birthplace
- Ashram Brindavon (Europe)
- Bhumiadhar Ashram & Hanuman Mandir
- Delhi Ashram
- North Delhi Hanuman Temple
- Hanumangarhi Nainital
- Kakrighat Temple Nainital
- Panki Hanuman Temple Kanpur
- Lucknow Ashram – Hanuman Sethu Mandir
- Nibkarori Ashram
- Rishikesh Ashram
- Shimla – Sankatamocana Hanuman Temple
- Taos Hanuman Temple (USA)
- Vavania Ashram & Hanuman Temple
- Vrindavan Ashram
- Veerapuram Ashram Chennai
- Moradabad Tample
नीम करोली बाबा की समाधी
11 सितम्बर 1973 में बाबा जी ने वृंदावन में अपना शरीर छोड़ने का फैसला किया। नीम करोली बाबा वृंदावन आश्रम उत्तर प्रदेश के मैदानी इलाकों में कृष्ण के पवित्र शहर वृंदावन में स्थित है। पहले मंदिर का उद्घाटन 1967 में हुआ था। यह आश्रम मथुरा रोड से कुछ ही दूरी पर परिक्रमा मार्ग पर है।
इसी आश्रम के भीतर नीम करोली बाबा का महासमाधि मंदिर है। यह हर साल सितंबर में बाबा जी के महासमाधि भंडार का स्थल है। इस आश्रम में हनुमानजी मंदिर, दुर्गा देवी मंदिर, सीता राम मंदिर, शिवाजी युगशाला मंदिर और बाबा जी के महासमाधि मंदिर हैं।
नीम करोली बाबा मंत्र पूजा
बाबा को हनुमान जी का अवतार माना जाता है और बाबा जी अपने जीवन पर्यंत एक ही मंत्र का जाप करते थे वो मंत्र है – “राम-राम” और अपने सभी भक्तों को भी बाबा राम-राम का जाप और हनुमान चालीसा पढने को कहते थे। परंतु बाबा नीव करोरी को समर्पित उनके भक्त श्री प्रभु दयाल शर्मा जी द्वारा रचित एक स्तुति है जिसको विनय चालीसा के रूप में जाना जाता है।
नीम करोली बाबा चालीसा का नाम।
विनय चालीसा
वैसे तो नीव करोरी बाबा को हनुमान जी का अवतार माना जाता है और उनके सभी मंदिरों में, आश्रमों में हनुमान चालीसा का ही पाठ किया जाता है, परंतु बाबा नीव करोरी को समर्पित उनके भक्त श्री प्रभु दयाल शर्मा जी द्वारा रचित एक स्तुति है जिसको विनय चालीसा के रूप में जाना जाता है।
कैंची धाम कब जाए।
कैंची धाम आप पुरे साल में कभी भी जा सकते हैं लेकिन कैंची धाम का 15 जून का स्थापना दिवस है। इस दिन कैंची धाम में विशाल भंडारे का आयोजन होता है और मेला लगता है जिसमें देश- विदेश से भक्त पहुँचते हैं।