चंद्रमा की अनंत प्रेमपूर्ण शीतलता देख
प्राय: इसकी चांदनी में बैठ नहाते हुए
मुझे ये सम्पूर्ण प्रकृति के श्रृंगार में
चरम पर प्रतीत होता है
एक रोज़ इसे फुरसत में देख
मैंने पूछ ही लिया
अपनी शीतलता और प्रकृति में सुंदरतम
आभा मंडल की वजह कहो
चन्द्रमा ने संकेत दिया
नख से शिख तक प्रेम की डोर को एक नज़र देखो
और मैने जाना कि
भूमि की प्यास और प्रेम सागर से
सागर का प्रेम जलधारा से
जलधारा का प्रेम वृक्षों से
वृक्षों का प्रेम पर्वतों से
पर्वतों का प्रेम वर्षा से
वर्षा का प्रेम मेघाें से
मेघों का प्रेम वायु से
वायु का प्रेम आकाश से
आकाश का प्रेम प्रकाश से
प्रकाश का प्रेम रात से
रात का प्रेम तारों से
तारों का प्रेम चंद्रमा से
और चंद्रमा सम्पूर्ण प्रकृति का प्रेम समेटे
शिव के मस्तक पर
विराजमान है
अतः चंद्रमा का
प्रकृति श्रृंगार में विशिष्ट होना स्वाभाविक है !!
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’