अल्लामा इक़बाल के बेहतरीन शेर | Allama Iqbal Shayari In Hindi

अल्लामा इक़बाल जी का पूरा नाम मोहम्मद इक़बाल है, उनका जन्म विभाजन से पहले भारत के सियालकोट, पंजाब में 9 नवम्बर 1877 को हुआ था, उनके दादा हिन्दू कश्मीरी पंडित थे, जो बाद में सियालकोट में रहने लगे।

अल्लामा इक़बाल “सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा” गीत के रचियता हैं, 1904 में उन्होंने इसे लिखा था, 1940 में पंडित रवि शंकर जी ने इसे लयबद्ध किया और ये आज भी हिन्दुस्तान में अनौपचारिक रूप से राष्ट्र गीत की तरह गाया जाता है, अपने गीतों में इक़बाल अविभाजित हिंदुस्तान को एक रहने की प्रेरणा देते थे, इक़बाल प्रसिद्ध दार्शनिक, कवि, शायर और नेता थे उनकी मृत्यु 21 अप्रैल 1938 को लाहौर, पंजाब, भारत में हुई थी।

अल्लामा इक़बाल की शायरी आज के काल में भी सर्वश्रेष्ठ शायरी में आती है।आइये पढ़ते हैं उनके कुछ मशहूर शायरी –

अल्लामा इक़बाल शायरी

ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले,
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है।

दिल सोज़ से ख़ाली है निगाह पाक नहीं है,
फिर इस में अजब क्या कि तू बेबाक नहीं है।

सितारों से आगे जहाँ और भी हैं,
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं।

महीने वस्ल के घड़ियों की सूरत उड़ते जाते हैं,
मगर घड़ियाँ जुदाई की गुज़रती हैं महीनों में।

माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं,
तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख।

तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ,
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ।

तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा,
तिरे सामने आसमाँ और भी हैं।

नशा पिला के गिराना तो सब को आता है,
मज़ा तो तब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी।

हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है,
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा

फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का,
न हो निगाह में शोख़ी तो दिलबरी क्या है।

दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूँ या रब,
क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो।

अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी,
तू अगर मेरा नहीं बनता न बन अपना तो बन।

इल्म में भी सुरूर है लेकिन,
ये वो जन्नत है जिस में हूर नहीं।

अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक़्ल,
लेकिन कभी कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे।

नहीं तेरा नशेमन क़स्र-ए-सुल्तानी के गुम्बद पर,
तू शाहीं है बसेरा कर पहाड़ों की चटानों में।

दिल से जो बात निकलती है असर रखती है,
पर नहीं ताक़त-ए-परवाज़ मगर रखती है।

हया नहीं है ज़माने की आँख में बाक़ी,
ख़ुदा करे कि जवानी तिरी रहे बे-दाग़।

हरम-ए-पाक भी अल्लाह भी क़ुरआन भी एक,
कुछ बड़ी बात थी होते जो मुसलमान भी एक।

ग़ुलामी में न काम आती हैं शमशीरें न तदबीरें,
जो हो ज़ौक़-ए-यक़ीं पैदा तो कट जाती हैं ज़ंजीरें।

ऐ ताइर-ए-लाहूती उस रिज़्क़ से मौत अच्छी,
जिस रिज़्क़ से आती हो परवाज़ में कोताही।

अल्लामा इक़बाल गीत

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा,
हम बुलबुलें हैं इसकी ये गुलिस्तां हमारा।

ग़ुर्बत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में,
समझो वहीं हमें भी, दिल है जहाँ हमारा।

परबत वह सबसे ऊँचा, हमसाया आसमाँ का,
वह संतरी हमारा, वह पासबाँ हमारा।

गोदी में खेलती हैं, इसकी हज़ारों नदियाँ,
गुलशन है जिनके दम से, रश्क-ए-जनाँ हमारा।

ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा, वह दिन हैं याद तुझको,
उतरा तेरे किनारे, जब कारवाँ हमारा।

मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना,
हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोस्तां हमारा।

यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रूमा, सब मिट गए जहाँ से,
अब तक मगर है बाक़ी, नाम-ओ-निशाँ हमारा।

कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी,
सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-ज़माँ हमारा।

‘इक़बाल’ कोई महरम, अपना नहीं जहाँ में,
मालूम क्या किसी को, दर्द-ए-निहाँ हमारा।

अल्लामा इक़बाल ग़जल

तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ,
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ।

सितम हो कि हो वादा-ए-बे-हिजाबी,
कोई बात सब्र-आज़मा चाहता हूँ।

ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को,
कि मैं आप का सामना चाहता हूँ।

ज़रा सा तो दिल हूँ मगर शोख़ इतना,
वही लन-तरानी सुना चाहता हूँ ।

कोई दम का मेहमाँ हूँ ऐ अहल-ए-महफ़िल,
चराग़-ए-सहर हूँ बुझा चाहता हूँ ।

भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी,
बड़ा बे-अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ ।

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