हिन्दी कविता – तू बे-वजह मुस्कुराया कर

हिन्दी कविता

तू बे-वजह मुस्कुराया कर
तू खुशियाँ पास बुलाया कर

गम गुज़र जायेंगें बिना छुए तूझे
तू हँसकर हाथ मिलाया कर
आसमां उतर आयेगा आगोश में तेरे
थोड़ा चाहत से बाहें फैलाया कर
हसरतें दिल में दम तोड़ती अच्छी नहीं
तू खुले दिल से इन्हें जताया कर
तुझमें बारिशें कभी जो बरसें पुरजोर
तू कागज़ की कश्ती तैराया कर


अपनी उम्र पे ना जा बचपना जिंदा रख
बूंद- बूंद में हर मौसम के नहाया कर
अपने दिल पर हाथ रख दिया कर
धड़कनों के संग- संग गुनगुनाया कर
अभिमान किस चीज़ का क्या गुरूर तूझे
हाथ गीली मिट्टी में रोज़ सनाया कर
मासूमियत ज़िंदा रखा कर अंदर अपने
अजनबी को देख मुस्कुराया कर
फुरसतें रख तू अपने आप के लिए भी
तू ख़ुद से रोज़ बतियाया कर


लेकर बैठा कर मन की गुत्थियां
एक- एक करके इनको सुलझाया कर
ख़ुद को देखा कर जी भरकर आईने में
अपने आप पर ही मर मिट जाया कर
अपने अक्स को मचलते देख कभी
खुदा की कारीगरी पे इतराया कर
आती-जाती सांसों की माला के साथ
फूल उसके नाम का सजाया कर

बंद आँखों से देखा कर मंज़र नए-नए
प्यास रुह की तर्पण से बुझाया कर
रूठ जाती हैं खुशियां तो क्या हुआ
प्यार से पुचकारा कर मनाया कर
ज़िंदगी को जिंदादिली से जिया कर
तू इसको झेहन्नुम ना बनाया कर

तू बे-वजह मुस्कुराया कर
तू खुशियाँ पास बुलाया कर…
मिले ना मोहब्बत ज़माने से तुझे
तू ख़ुद मोहब्बत हो जाया कर !!
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’

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