स्त्री पर कविता

स्त्री पर लिखी मेरी कुछ रचनाएँ-

साहसी स्त्रियां

साहसी स्त्रियां
बहुत आकर्षक होती हैं
बहुत दूर से पहचानी जाती हैं
भीड़ से अलग
आज़ाद रूह की तरह
स्वयं में जीती
स्वतंत्र आवाज़ की मालकिन
परतंत्रता को ठुकरा
अपने लिए अपने औजार गढ़ती
समाज की परिभाषा के विपरीत
अपने अस्तित्व को तराशती
निडर निर्भीक निष्पक्ष चुनाव करती
मुश्किलों से लड़ कर
हौसलों से आपका परिचय कराती
चुनौतियों को ललकारती
अपने और आप के लिए जगह बनाती
किसी भी क्षेत्र में
बिना परिचय के पहचानी जाती
जीवन को अर्थ देती
अनोखा व्यक्तित्व साथ लिए
कभी अगर दिखें ऐसी स्त्रियां
तो जानना उनकी कहानियां
जो काग़जों की जगह
लिखीं रहती हैं
उनके बे-खौफ चेहरे पर
आत्मविश्वास से लबरेज
आँखों में !!
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’

पुरूष स्त्री कविता

पुरूष बनाता है मकान
स्त्री घर बनाती है
पुरूष बनाता है सड़कें, इमारतें
पटरियां, रेलगाड़ियां
स्त्री बनाती है पुरूष को इनके निर्माण योग्य
पुरूष पहुंचता है चांद पर
स्त्री पुरूष को ही चांद में देख लेती है
यदि स्त्री पुरूष के कार्य करे
तो पुरूष कभी स्त्री के कार्य संपूर्ण ना कर पाएगा
और यदि पुरुष स्त्री हो जाए तो
जीवन निराधार हो जाएगा
वो मकान को घर नहीं बना सकता
उसमें वो तत्व नहीं
वो स्त्री जितना संवेदनशील नहीं
भावुक नहीं, क्षमावान नहीं
चरित्रवान नहीं

उसमें नहीं इतना धैर्य कि वो नौ महीने
किसी बीज को कोख में रखकर
अपने खून से सींच जन्म दे
प्रसव पीड़ा से गुजरने में बल का कोई काम नहीं
उसके लिए चाहिए सहनशीलता
पुरूष से नहीं उठ सकती
घर से कमाने निकली स्त्री के लिए प्रार्थनाएं
प्रेम में दासी नहीं हो सकता पुरुष
सौंदर्य का प्रतीक हो जाना
असंभव है पुरुष के लिए
वो नहीं कर सकता किसी के नाम से साजो श्रृंगार
वो प्रेम में आंसू नहीं बहा पाता
स्त्री पुरूष जैसे कार्य करने में
असमर्थ है वो नहीं हो सकती
पुरुष जितनी मजबूत
नहीं दे सकती सुरक्षा का सुकून
ना घर को ना देश की सरहद को
स्त्री का युद्धों में भाग लेना सहज नहीं

पुरूष स्वभाव से कठोर है
और स्त्री कोमल
पुरूष तार्किक, वैचारिक और गणितज्ञ है
स्त्री प्रेम, ह्रदय और भाव है
इसी स्त्री पुरूष के समन्वय से
चलता है जीवन चक्र
पुरूष को मानना होगा
कि किसी भी मकान को
घर बना सकना केवल स्त्री सहयोग से सम्भव है
स्त्री को मानना होगा
कि पुरूष जीवन का आधार
उसके बिना जीवन संभव है ना नया जन्म
दोनों में भिन्नताएं हैं
असमनताएं नहीं
दोनों में से किसी एक को श्रेष्ठ मानना निरर्थक है
बुद्धि और ह्रदय का समन्वय के बिना
सुंदर जीवन की कल्पना कपोल है
पुरूष बनाता है मकान
स्त्री उसे घर बनाती है !!
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’

लड़कियां

स्त्री पर कविता

मैंने करीब से देखीं हैं वो लड़कियां
जिनके गाँव में खंभों तक रोशनी तो पहुंचीं
लेकिन शिक्षा की रोशनी से
उन्हें वंचित रखा गया
हाथ में पुस्तकों की जगह
उन्हें थमाया गया चौका लीपने का काम
हया और मासूमियत से गुंथी
अपनी उम्र से ज्यादा बड़ी दिखती वो लडकियां
यौवन के आगमन से पहले ही
जिनका बचपन विदा हो गया
लाद दिया गया इनके नाज़ुक कंधों पर
दुप्पटों का बोझ
घूरती आँखों ने जिन्हें
उम्र से पहले जवान कर दिया

मैंने करीब से देखीं हैं वो लडकियां
जिनकी आँखों का पत्थर पन
किसी कब्र सा दिखता है
हज़ारों टूटे बिखरे अरमान ले जो
उठाती रहीं जिम्मेदारियों की गठरी
ढोती रहीं एक हाथ से
गायों की सानी का बोझ
दूसरे हाथ से गोल रोटियों की थाप
इतनी आँखों को गौर से पढ़ा है मैंने
कि दूर से देख सकती हूं
उनमें सपनों की सेज है या अर्थी
वो कमसिन कुछ तोले सोने में ब्याह कर गईं
लौट कर आई तो
किसी परिपक्व औरत सी लगीं मुझे
वो औरतें जो गज भर घूंघट में
पनघट से पानी ले जाती
गांव की पगडंडियों से गुजरती
बात करते करते छलका जाती हैं

आँखों से भी पानी
उनके ह्रदय के कोरे कागज़ पे
ना मायका लिख सका प्रेम की अनुभूति
ना ये ससुराल में उनका नसीब बना
गोबर से सने हाथों से
उपले पाथते हुए
अपने टूटे अस्तित्व को भी
चूल्हे में जला देने की उनकी मंशा
मैंने करीब से देखीं है
चूल्हे में फुकनी से फूँक मारती
झोंकती अपना अल्हड़पन
धुंए से आँखों के पोरों पर जमा पानी
उनके ह्रदय पर जमी
टूटे बर्तन पे माँजन की राख सा लगा मुझे
सुहागिन के श्रृंगार के पीछे झाँकता विधवापन
चूड़ियों की खनखनाहट के पीछे का रूदन

मैंने देखी हैं
दिन भर जानवरों की तरह मेहनत करती
रात को परमेश्वर को जानवर होते देखती
वो जो प्रसव पीड़ा की कठीन परीक्षा से
बिना रोए गुज़र गईं
और फफक पड़ी लड़की के जन्म पर
इस मातम की गूंज ने
उसके होने के विलाप ने
छीन लिया पहली खुशी का हक़
मैंने हैरानी से पढ़ा उन आंखों को
वो मां रोई थी एक और पुजारिन को जन्म देकर
अपनी मां की तरह उसे भी
इस लड़की को बताना था
सिखाना था…
पति परमेश्वर है
तुम पुजारिन बनना !!
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’

संघर्ष करती महिलाएँ

संघर्ष करती महिलाएँ
ईश्वरीय शक्ति से निर्मित
इस प्रकृति की
सुंदरतम रचनाओं में से एक है
देवियों की झलकियों सी सुदृढ़
कर्मशील, विश्वास की प्रतिमूर्ति
अन्याय के विरुद्ध बिगुल फूँकती
योद्धा की तरह कर्मभूमि पर लड़ती

नैतिकता और मानवीय अधिकारों को
शेरनी की भांति
गीदड़ों के मुख से छीनती
पुरूष प्रधान समाज में
कुंठित मानसिकता के
शिकार लोगों से घिरी
साजिशों के जाल को भेदती
अपना अस्तित्व मनवाती
दंभ के नाम पर हो रहे
आडंबर, पाखंड को नकारती
संघर्ष करती
आगे बढ़ती महिलाएँ
इस संसार की
सुंदरतम रचनाओं में से एक है !!
-मोनिका

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