भारतीय दर्शन : आस्तिक षड्दर्शन | नास्तिक दर्शन

भारतीय दर्शन विश्व के प्राचीनतम और समृद्ध दार्शनिक परंपराओं में से एक है। यह केवल धार्मिक या आध्यात्मिक दृष्टि तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें ज्ञान, तर्क, विज्ञान, नैतिकता और आत्मा के गूढ़ रहस्यों पर भी गहन विचार किया गया है। भारतीय दर्शन को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया जाता है:

आस्तिक (वैदिक) दर्शन – जो वेदों की प्रमाणिकता को स्वीकार करता है।

नास्तिक (अवैदिक) दर्शन – जो वेदों की प्रमाणिकता को अस्वीकार करता है।

Table of Contents

आस्तिक (वैदिक) दर्शन

दर्शनप्रवर्तकप्रमुख सिद्धांत
सांख्य दर्शनमहर्षि कपिलप्रकृति (प्रकृति) और आत्मा (पुरुष) के द्वैतवाद पर आधारित
योग दर्शनमहर्षि पतंजलिध्यान और आत्मसंयम के माध्यम से मोक्ष प्राप्ति का मार्ग
न्याय दर्शनमहर्षि गौतमतर्क, प्रमाण और युक्ति पर बल
वैशेषिक दर्शनमहर्षि कणादपरमाणु सिद्धांत और पदार्थ की प्रकृति
पूर्व मीमांसामहर्षि जैमिनिवेदों के कर्मकांड और अनुष्ठानों पर आधारित
उत्तर मीमांसा (वेदांत)महर्षि बादरायण व्यासब्रह्म और आत्मा के अद्वैतवाद पर बल

नास्तिक (अवैदिक) दर्शन

दर्शनप्रवर्तकप्रमुख सिद्धांत
चार्वाक दर्शन (लोकायत)चार्वाकभौतिकवादी दृष्टिकोण, केवल प्रत्यक्ष अनुभव को सत्य मानता
बौद्ध दर्शनमहात्मा बुद्धअहिंसा, निर्वाण, चतुर्वार्य सत्य
जैन दर्शनमहावीर स्वामीअनेकांतवाद, अहिंसा, कर्म सिद्धांत

आस्तिक (वैदिक) दर्शन षड्दर्शन (छः भारतीय दर्शन)

  1. न्याय दर्शन (गौतम मुनि)
  2. वैशेषिक दर्शन (कणाद मुनि)
  3. सांख्य दर्शन (कपिल मुनि)
  4. योग दर्शन (पतंजलि मुनि)
  5. पूर्व मीमांसा (जैमिनि मुनि)
  6. वेदांत या उत्तर मीमांसा (बादरायण / व्यास मुनि)

1. न्याय दर्शन (गौतम मुनि)

न्याय दर्शन भारतीय तर्कशास्त्र (Logic) और प्रमाण शास्त्र का आधारभूत दर्शन है। इसकी स्थापना महर्षि गौतम ने की थी। इस दर्शन का मुख्य उद्देश्य सत्य का ज्ञान प्राप्त करने के लिए तर्क, विवेचना और प्रमाणों का प्रयोग करना है।

मुख्य सिद्धांत:

  • ज्ञान प्राप्ति के साधन (प्रमाण) चार होते हैं: प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और शब्द।
  • आत्मा, शरीर, इंद्रियाँ, मन, कर्म, पुनर्जन्म और मुक्ति की अवधारणा।
  • मोक्ष प्राप्त करने के लिए सत्य का ज्ञान आवश्यक है।

प्रभाव:

न्याय दर्शन ने भारतीय न्यायशास्त्र और तर्कशास्त्र को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।


2. वैशेषिक दर्शन (कणाद मुनि)

वैशेषिक दर्शन भौतिक जगत के तत्वों और पदार्थों का विश्लेषण करने वाला दर्शन है। इसकी स्थापना महर्षि कणाद ने की थी। इस दर्शन में भौतिक और आध्यात्मिक विश्व के सूक्ष्म तत्वों पर विचार किया गया है।

मुख्य सिद्धांत:

  • जगत परमाणुओं (Atoms) से बना है, जो अविनाशी हैं।
  • छह द्रव्य (पदार्थ) होते हैं: द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय।
  • ईश्वर की सत्ता को स्वीकार करता है।

प्रभाव:

वैशेषिक दर्शन ने भौतिकी और पदार्थ विज्ञान (Physics) के क्षेत्र में योगदान दिया है। यह आधुनिक परमाणु सिद्धांत (Atomic Theory) से मिलता-जुलता है।


3. सांख्य दर्शन (कपिल मुनि)

सांख्य दर्शन भारत का प्राचीनतम दार्शनिक विचार है, जिसकी स्थापना महर्षि कपिल ने की थी। यह द्वैतवादी दर्शन है, जिसमें प्रकृति और पुरुष के सिद्धांत पर बल दिया गया है।

मुख्य सिद्धांत:

  • जगत दो तत्वों से बना है: पुरुष (चेतन) और प्रकृति (अचेतन)।
  • प्रकृति के तीन गुण होते हैं: सत्व, रजस और तमस।
  • जीवात्मा (पुरुष) का बंधन प्रकृति से अज्ञानवश होता है, और ज्ञान से वह मुक्त हो सकता है।

प्रभाव:

सांख्य दर्शन ने योग और वेदांत पर गहरा प्रभाव डाला है। इसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण मनोविज्ञान और चेतना अध्ययन से मेल खाता है।


4. योग दर्शन (पतंजलि मुनि)

योग दर्शन महर्षि पतंजलि द्वारा प्रणीत है। यह मानसिक और आत्मिक विकास के लिए ध्यान और साधना का मार्ग सुझाता है।

मुख्य सिद्धांत:

  • अष्टांग योग (आठ अंग) – यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, और समाधि।
  • मन और इंद्रियों का संयम मोक्ष प्राप्ति में सहायक होता है।
  • समाधि ही अंतिम अवस्था है, जिससे आत्मा ब्रह्म से एकाकार हो जाती है।

प्रभाव:

योग आज वैश्विक रूप से प्रसिद्ध हो चुका है। इसका महत्व स्वास्थ्य, मानसिक शांति और आत्मिक उन्नति में महत्वपूर्ण है।


5. पूर्व मीमांसा (जैमिनि मुनि)

पूर्व मीमांसा या केवल “मीमांसा” का अर्थ है ‘विचार’। इसकी स्थापना महर्षि जैमिनि ने की थी। यह मुख्य रूप से वेदों के कर्मकांड और यज्ञ पर आधारित है।

मुख्य सिद्धांत:

  • वेद अपौरुषेय हैं (मनुष्यों द्वारा रचित नहीं, बल्कि दिव्य ज्ञान हैं)।
  • यज्ञ और कर्मकांड मोक्ष प्राप्ति के साधन हैं।
  • आत्मा का अस्तित्व स्वीकार करता है, लेकिन ईश्वर का कोई विशेष उल्लेख नहीं है।

प्रभाव:

पूर्व मीमांसा ने हिंदू धार्मिक अनुष्ठानों और वैदिक कर्मकांडों को प्रभावित किया।


6. वेदांत (उत्तर मीमांसा) – (बादरायण / व्यास मुनि)

वेदांत दर्शन महर्षि व्यास (बादरायण) द्वारा प्रणीत ब्रह्मसूत्रों पर आधारित है। यह उपनिषदों के ज्ञान का सार है।

मुख्य सिद्धांत:

  • ब्रह्म (परम तत्व) ही इस संसार का मूल कारण है।
  • आत्मा और ब्रह्म एक हैं (अद्वैत वेदांत), आत्मा और ब्रह्म भिन्न हैं (द्वैत वेदांत)।
  • भक्ति, ज्ञान और ध्यान द्वारा मोक्ष प्राप्ति संभव है।

वेदांत के प्रमुख मत:

  1. अद्वैत वेदांत (आदि शंकराचार्य) – आत्मा और ब्रह्म एक ही हैं।
  2. विशिष्टाद्वैत वेदांत (रामानुजाचार्य) – आत्मा और ब्रह्म अलग होते हुए भी जुड़ सकते हैं।
  3. द्वैत वेदांत (माध्वाचार्य) – आत्मा और ब्रह्म पूर्ण रूप से भिन्न हैं।

प्रभाव:

वेदांत भारतीय आध्यात्मिकता का मूल आधार है। यह भक्ति, ज्ञान, और आत्म-अनुभूति पर बल देता है।

षड्दर्शन भारतीय दार्शनिक परंपरा के आधारभूत स्तंभ हैं। ये केवल सिद्धांत ही नहीं बल्कि जीवन के व्यवहारिक मार्ग भी प्रदान करते हैं। न्याय और वैशेषिक दर्शन तर्क और पदार्थ विज्ञान को समझाते हैं, सांख्य और योग दर्शन आत्मा और साधना का ज्ञान कराते हैं, जबकि मीमांसा और वेदांत वेदों के गूढ़ रहस्यों को उजागर करते हैं।

इन दर्शनों का अध्ययन भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता को समझने के लिए आवश्यक है। ये दर्शाते हैं कि आत्मज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति ही जीवन का अंतिम लक्ष्य है।

नास्तिक (अवैदिक) दर्शन

भारतीय दर्शन में वे प्रणालियाँ जो वेदों को प्रमाण नहीं मानतीं, नास्तिक दर्शन कहलाती हैं। प्रमुख नास्तिक दर्शनों में चार्वाक, बौद्ध, और जैन दर्शन आते हैं। ये दर्शनों ने आत्मा, ईश्वर और मोक्ष को भिन्न दृष्टिकोणों से देखा है।

1. चार्वाक दर्शन (लोकायत)

चार्वाक दर्शन भौतिकवादी दृष्टिकोण को मानता है। इसका मूल सिद्धांत “प्रत्यक्ष प्रमाण ही सत्य है” पर आधारित है।

  • आत्मा और पुनर्जन्म को अस्वीकार करता है।
  • ईश्वर के अस्तित्व को नकारता है।
  • मोक्ष को एक भ्रम मानता है और जीवन का एकमात्र लक्ष्य सुख को प्राप्त करना बताता है।

2. बौद्ध दर्शन

गौतम बुद्ध द्वारा प्रतिपादित इस दर्शन में आत्मा के स्थायी अस्तित्व को नकार दिया गया है और इसे “अनात्मवाद” कहा गया है।

  • ईश्वर के अस्तित्व पर कोई चर्चा नहीं करता।
  • पुनर्जन्म को स्वीकार करता है लेकिन आत्मा को नहीं मानता।
  • मोक्ष (निर्वाण) को दुःख से मुक्ति के रूप में देखता है।

3. जैन दर्शन

महावीर द्वारा प्रतिपादित जैन दर्शन आत्मा के अस्तित्व को मानता है लेकिन ईश्वर के अस्तित्व को नहीं।

  • आत्मा को शाश्वत और स्वतंत्र मानता है।
  • पुनर्जन्म को स्वीकार करता है।
  • मोक्ष को कर्मों से मुक्ति के रूप में देखता है।

विभिन्न भारतीय दर्शनों की तुलना

दर्शनआत्माईश्वरमोक्षपुनर्जन्मज्ञान का स्रोत
न्याय दर्शनआत्मा स्वतंत्र और अविनाशी हैईश्वर सृष्टि का कर्ता हैमोक्ष जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति हैपुनर्जन्म मान्य हैप्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द
वैशेषिक दर्शनआत्मा स्वतंत्र हैईश्वर सृष्टि का कारण हैमोक्ष दुखों की समाप्ति हैपुनर्जन्म मान्य हैप्रत्यक्ष और अनुमान
सांख्य दर्शनपुरुष (आत्मा) और प्रकृति स्वतंत्र हैंईश्वर का उल्लेख नहींमोक्ष प्रकृति से अलग होने में हैपुनर्जन्म मान्य हैप्रत्यक्ष, अनुमान, शब्द
योग दर्शनआत्मा शुद्ध और स्वतंत्र हैईश्वर सर्वोच्च पुरुष हैमोक्ष कैवल्य की प्राप्ति हैपुनर्जन्म मान्य हैप्रत्यक्ष, अनुमान, शब्द
मीमांसा दर्शनआत्मा कर्मों के अधीन हैईश्वर का प्रत्यक्ष वर्णन नहींमोक्ष कर्मकांडों के पालन से प्राप्त होता हैपुनर्जन्म मान्य हैप्रत्यक्ष, अनुमान, शब्द
वेदांत दर्शनआत्मा ब्रह्म का अंश हैईश्वर ब्रह्म हैमोक्ष आत्मा और ब्रह्म के एकत्व की अनुभूति हैपुनर्जन्म मान्य हैप्रत्यक्ष, अनुमान, शब्द
चार्वाक दर्शन (लोकायत)आत्मा नहीं, केवल शरीर ही सत्य हैईश्वर का कोई अस्तित्व नहींमोक्ष एक कल्पना मात्र हैपुनर्जन्म अस्वीकारप्रत्यक्ष प्रमाण ही अंतिम सत्य
बौद्ध दर्शनआत्मा का कोई स्थायी अस्तित्व नहीं (अनात्मवाद)ईश्वर का कोई उल्लेख नहींनिर्वाण दुःख की समाप्ति हैपुनर्जन्म मान्य, परंतु आत्मा पुनर्जन्म नहीं लेतीप्रत्यक्ष, अनुमान, आगम
जैन दर्शनआत्मा स्वतंत्र और अनंत हैईश्वर की संकल्पना नहीं, केवल सिद्ध आत्माएँमोक्ष कर्मों से मुक्ति हैपुनर्जन्म मान्य हैप्रत्यक्ष, अनुमान, आगम

इस तालिका और विस्तार से दी गई जानकारी से स्पष्ट होता है कि भारतीय दर्शन विभिन्न विचारधाराओं का संगम है। जहाँ एक ओर आस्तिक दर्शन आत्मा, पुनर्जन्म और ईश्वर को मानते हैं, वहीं नास्तिक दर्शन इन्हें तर्क और अनुभव के आधार पर अस्वीकार करते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि भारतीय ज्ञान परंपरा में तर्क और विमर्श का महत्वपूर्ण स्थान है।

भारतीय ज्ञान परंपरा और वेद

भारत विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक है, जिसकी जड़ों में एक समृद्ध और अद्वितीय ज्ञान परंपरा समाहित है। यह परंपरा केवल भौतिक विज्ञान और आध्यात्मिकता तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें दर्शन, गणित, ज्योतिष, चिकित्सा, वास्तुकला, व्याकरण, संगीत, नाट्यशास्त्र और समाजशास्त्र जैसी अनेक विधाओं का समावेश है। भारतीय ज्ञान परंपरा के मूल में वेदों का विशेष स्थान है। वेद न केवल धार्मिक ग्रंथ हैं, बल्कि वेदों में संकलित ज्ञान वैज्ञानिक, दार्शनिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

वेदों का परिचय

वेद संस्कृत भाषा में लिखे गए प्राचीनतम ग्रंथ हैं, जिन्हें श्रुति साहित्य भी कहा जाता है। वेदों की रचना ऋषियों द्वारा की गई, जिन्होंने अपने गहन ध्यान और अनुभव से इन ज्ञान स्रोतों को संकलित किया। वेदों को “अपौरुषेय” अर्थात् किसी मनुष्य द्वारा रचित नहीं माना जाता, बल्कि उन्हें दिव्य ज्ञान का स्रोत समझा जाता है।

वेदों का वर्गीकरण

भारतीय ज्ञान परंपरा में चार वेदों का उल्लेख मिलता है:

  1. ऋग्वेद – यह सबसे प्राचीन वेद है, जिसमें देवताओं की स्तुतियाँ, यज्ञों के महत्त्व और ब्रह्मांड की उत्पत्ति पर प्रकाश डाला गया है। इसमें 1028 सूक्त हैं, जो विभिन्न देवताओं को समर्पित हैं।
  2. यजुर्वेद – यह वेद मुख्यतः यज्ञों और कर्मकांडों से संबंधित है। इसमें विभिन्न यज्ञों में उपयोग किए जाने वाले मंत्र और प्रक्रियाएँ वर्णित हैं।
  3. सामवेद – इसे संगीत का मूल स्रोत माना जाता है। सामवेद में ऋग्वेद के कुछ मंत्रों को लयबद्ध तरीके से प्रस्तुत किया गया है, जिससे यह वेद संगीत और भक्ति का आधार बनता है।
  4. अथर्ववेद – इस वेद में तंत्र, मंत्र, चिकित्सा, जादू-टोना और ग्रह-नक्षत्रों की जानकारी दी गई है। यह वेद समाज की दैनिक आवश्यकताओं से जुड़ा है।

वेदों से विकसित शाखाएँ

वेदों के अध्ययन और विश्लेषण से अनेक ग्रंथ विकसित हुए, जिन्हें वेदांग और उपवेद कहा जाता है।

वेदांग

वेदों के अध्ययन को सुगम बनाने के लिए छह वेदांगों का विकास हुआ:

  1. शिक्षा – उच्चारण और स्वरविज्ञान
  2. कल्प – यज्ञ और अनुष्ठानों की विधियाँ
  3. व्याकरण – संस्कृत भाषा के नियम (जैसे पाणिनि का अष्टाध्यायी)
  4. निरुक्त – शब्दों और उनके अर्थ का ज्ञान
  5. छंद – छंदशास्त्र, जिसमें वैदिक छंदों का विश्लेषण है
  6. ज्योतिष – खगोलीय घटनाओं और कालगणना का अध्ययन

उपवेद

वेदों से चार उपवेद विकसित हुए:

  1. आयुर्वेद (ऋग्वेद से) – चिकित्सा और स्वास्थ्य विज्ञान
  2. धनुर्वेद (यजुर्वेद से) – युद्ध और अस्त्र-शस्त्र विज्ञान
  3. गांधर्ववेद (सामवेद से) – संगीत और नृत्य
  4. अर्थवेद (अथर्ववेद से) – राजनीति, अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र

वेदों में विज्ञान

वेदों में निहित ज्ञान केवल आध्यात्मिक ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक भी है। ऋग्वेद और यजुर्वेद में खगोलशास्त्र, गणित और चिकित्सा के कई महत्वपूर्ण सिद्धांत मिलते हैं। अथर्ववेद में मानव शरीर, हृदय, नाड़ियों और रोगों के उपचार की विस्तृत जानकारी दी गई है।

गणित और खगोलशास्त्र

  • दशमलव पद्धति और शून्य की अवधारणा
  • पाइथागोरस प्रमेय का उल्लेख
  • ग्रहों की गति और खगोलीय गणना

चिकित्सा और आयुर्वेद

  • शरीर में तीन दोष (वात, पित्त, कफ)
  • औषधीय पौधों और जड़ी-बूटियों का ज्ञान
  • सर्जरी और हड्डी रोग (सुश्रुत संहिता)

वेदों का समाज पर प्रभाव

वेदों ने भारतीय समाज और संस्कृति को गहरे रूप से प्रभावित किया है। वैदिक शिक्षा प्रणाली गुरु-शिष्य परंपरा पर आधारित थी, जिसमें नैतिकता, अनुशासन और आत्म-संयम पर विशेष ध्यान दिया जाता था। वैदिक समाज में स्त्रियों को भी शिक्षा प्राप्त करने की स्वतंत्रता थी, और कई स्त्रियाँ वेदों की ऋषिकाएँ बनीं।

भारतीय ज्ञान परंपरा और वेद केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि विज्ञान, कला, दर्शन और समाजशास्त्र का एक अनमोल भंडार हैं। वेदों में निहित ज्ञान आज भी प्रासंगिक है और आधुनिक विज्ञान को समृद्ध करने में सहायक सिद्ध हो सकता है। यदि इस ज्ञान का समुचित अध्ययन और अनुसरण किया जाए, तो यह संपूर्ण मानवता के लिए कल्याणकारी सिद्ध होगा।


भारतीय दर्शन के प्रमुख शब्द और उनकी परिभाषाएँ

1.दर्शन (Philosophy)

दर्शन शब्द ‘दृश्’ धातु से बना है, जिसका अर्थ है देखना या निरीक्षण करना। भारतीय परंपरा में दर्शन सत्य की खोज और आत्मा, ब्रह्मांड, ईश्वर, मोक्ष आदि पर विचार करने वाली प्रणाली को कहा जाता है।

2. आत्मा (Atman)

आत्मा का अर्थ वह शाश्वत चेतन तत्व है, जो शरीर से परे है। विभिन्न दर्शनों में आत्मा को भिन्न रूपों में देखा गया है।

  • वेदांत: आत्मा ब्रह्म का अंश है।
  • जैन दर्शन: आत्मा स्वतंत्र और शाश्वत है।
  • बौद्ध दर्शन: आत्मा का कोई स्थायी अस्तित्व नहीं है (अनात्मवाद)।

3. ब्रह्म (Brahman)

ब्रह्म का अर्थ है परमसत्ता, जो अद्वितीय, अनंत और अनिर्वचनीय है। उपनिषदों में इसे ‘सत्-चित्-आनंद’ रूप में बताया गया है।

4. मोक्ष (Moksha)

मोक्ष का अर्थ जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति है। विभिन्न दर्शनों में इसके अलग-अलग दृष्टिकोण हैं:

  • वेदांत: ब्रह्म और आत्मा के एकत्व की अनुभूति।
  • जैन दर्शन: कर्मों से मुक्ति।
  • बौद्ध दर्शन: निर्वाण, अर्थात् दुःखों की समाप्ति।

5. कर्म (Karma)

कर्म का अर्थ है क्रियाएँ और उनके परिणाम। यह सिद्धांत कहता है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्मों के अनुसार फल भोगता है।

6. पुनर्जन्म (Rebirth)

पुनर्जन्म का अर्थ आत्मा का नए शरीर में जन्म लेना है। वेदांत, जैन और बौद्ध दर्शन इसे स्वीकार करते हैं, जबकि चार्वाक दर्शन इसे अस्वीकार करता है।

7. ईश्वर (God)

ईश्वर का अर्थ सृष्टि का कारण और परमसत्ता है। कुछ दर्शन इसे मानते हैं, तो कुछ नकारते हैं:

  • वेदांत: ईश्वर ब्रह्म ही है।
  • योग: ईश्वर सर्वोच्च पुरुष है।
  • चार्वाक: ईश्वर का कोई अस्तित्व नहीं।

8. अद्वैत (Advaita)

अद्वैत का अर्थ है द्वैत का अभाव। वेदांत में इसका अर्थ आत्मा और ब्रह्म का अभिन्न होना है।

9. द्वैत (Dvaita)

द्वैत का अर्थ है आत्मा और ब्रह्म का भिन्न-भिन्न होना। यह सिद्धांत माधवाचार्य द्वारा प्रतिपादित है।

10. न्याय (Nyaya)

न्याय दर्शन तर्क और प्रमाण पर आधारित है। यह सत्य को प्रमाणों के माध्यम से जानने की प्रणाली है।

11. वैशेषिक (Vaisheshika)

वैशेषिक दर्शन पदार्थ और परमाणु पर आधारित है। यह दर्शन सृष्टि को मूलभूत द्रव्यों में विभाजित करता है।

12. सांख्य (Samkhya)

सांख्य दर्शन प्रकृति और पुरुष के द्वैत पर आधारित है। इसमें सृष्टि की उत्पत्ति 25 तत्त्वों से मानी जाती है।

13. योग (Yoga)

योग का अर्थ चित्त की वृत्तियों का निरोध है। योग दर्शन पतंजलि द्वारा प्रतिपादित है और इसमें समाधि को मोक्ष का मार्ग बताया गया है।

14. मीमांसा (Mimamsa)

मीमांसा वेदों की व्याख्या पर आधारित दर्शन है। यह दो भागों में विभाजित है:

  • पूर्व मीमांसा: कर्मकांड पर आधारित।
  • उत्तर मीमांसा (वेदांत): ब्रह्मज्ञान पर आधारित।

15. चार्वाक (Charvaka/Lokayata)

चार्वाक दर्शन भौतिकवाद पर आधारित है। इसमें केवल प्रत्यक्ष प्रमाण को ही सत्य माना गया है और आत्मा, पुनर्जन्म, मोक्ष आदि को नकार दिया गया है।

16. निर्वाण (Nirvana)

निर्वाण का अर्थ है समस्त इच्छाओं और दुःखों का अंत। यह बौद्ध और जैन दर्शनों में मोक्ष का पर्यायवाची है।

17. अहिंसा (Ahimsa)

अहिंसा का अर्थ है किसी भी जीव को कष्ट न देना। जैन और बौद्ध दर्शन में इसका विशेष महत्व है।

18. अनेकांतवाद (Anekantavada)

जैन दर्शन में अनेकांतवाद का अर्थ है कि सत्य को एक दृष्टिकोण से नहीं देखा जा सकता।

19. प्रतीत्यसमुत्पाद (Pratityasamutpada)

बौद्ध दर्शन का सिद्धांत, जो कहता है कि सभी घटनाएँ कारण-कार्य के नियम से उत्पन्न होती हैं।

20. प्रमाण (Pramana)

प्रमाण का अर्थ है सत्य को जानने का साधन। भारतीय दर्शन में मुख्यतः चार प्रमाण माने गए हैं:

  • प्रत्यक्ष (Direct perception)
  • अनुमान (Inference)
  • उपमान (Comparison)
  • शब्द (Testimony)

21. पुरुषार्थ (Purushartha)

पुरुषार्थ का अर्थ जीवन के चार लक्ष्य हैं:

  • धर्म (कर्तव्य)
  • अर्थ (धन)
  • काम (इच्छाएँ)
  • मोक्ष (मुक्ति)

22. विवेक (Viveka)

विवेक का अर्थ सत्य और असत्य में भेद करने की शक्ति है। यह वेदांत दर्शन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

23. वैराग्य (Vairagya)

वैराग्य का अर्थ सांसारिक वस्तुओं से विरक्ति है। योग और वेदांत में इसे मोक्ष प्राप्ति का मार्ग बताया गया है।

24. श्रद्धा (Shraddha)

श्रद्धा का अर्थ है किसी सत्य को विश्वासपूर्वक स्वीकार करना। यह भक्ति मार्ग का एक महत्वपूर्ण तत्व है।

25. भक्ति (Bhakti)

भक्ति का अर्थ ईश्वर के प्रति प्रेमपूर्ण समर्पण है। भक्ति योग में इसे मोक्ष प्राप्ति का सर्वोत्तम साधन माना गया है।

26. आर्य सत्य (Arya Satya)

बौद्ध दर्शन में चार आर्य सत्य बताए गए हैं:

  1. दुःख (संसार दुखमय है)
  2. दुःख समुदय (दुःख का कारण तृष्णा है)
  3. दुःख निरोध (दुःख का अंत संभव है)
  4. दुःख निरोध मार्ग (आष्टांगिक मार्ग इसका उपाय है)

27. आष्टांगिक मार्ग (Ashtangika Marga)

बौद्ध धर्म में मोक्ष प्राप्ति के लिए आठ अंगों वाला मार्ग बताया गया है:

  1. सम्यक दृष्टि
  2. सम्यक संकल्प
  3. सम्यक वाणी
  4. सम्यक कर्म
  5. सम्यक आजीविका
  6. सम्यक प्रयास
  7. सम्यक स्मृति
  8. सम्यक समाधि

28. सिद्ध (Siddha)

जैन दर्शन में सिद्ध वे आत्माएँ हैं जो मोक्ष प्राप्त कर चुकी हैं और कर्मों से मुक्त हो गई हैं।

29. बंधन (Bandhana)

बंधन का अर्थ आत्मा का संसार में बंधे रहना है। यह पुनर्जन्म और कर्म सिद्धांत से जुड़ा हुआ है।

30. जीव (Jiva)

जीव का अर्थ आत्मा है, जो विभिन्न योनियों में जन्म लेता है और मोक्ष प्राप्त कर सकता है।

यह सूची भारतीय दर्शन के प्रमुख शब्दों और उनकी परिभाषाओं का एक संक्षिप्त संकलन है। यदि आपको किसी अन्य शब्द की जानकारी चाहिए तो कृपया बताइए!


भारतीय दर्शन की विशेषताएँ

  • समग्रता – भारतीय दर्शन केवल तर्क पर आधारित नहीं है, बल्कि जीवन जीने की विधि भी बताता है।
  • आध्यात्मिकता – आत्मा, मोक्ष और पुनर्जन्म पर गहन विचार किया गया है।
  • तर्क और अनुभव – न्याय और वैशेषिक दर्शन में तर्क को प्रमुखता दी गई है।
  • विविधता – अद्वैत, द्वैत, विशिष्टाद्वैत आदि विचारधाराएँ विद्यमान हैं।
  • व्यवहारिकता – यह केवल चिंतन का विषय नहीं, बल्कि व्यावहारिक जीवन का मार्गदर्शन करता है।

भारतीय दर्शन न केवल प्राचीन भारत की बौद्धिक समृद्धि को दर्शाता है, बल्कि आज भी इसके सिद्धांत प्रासंगिक हैं। आत्मा, मोक्ष, पुनर्जन्म, कर्म और ईश्वर जैसी अवधारणाएँ भारतीय दर्शन को अद्वितीय बनाती हैं। यह दर्शन जीवन को गहराई से समझने का प्रयास करता है और मानवता को एक सकारात्मक दिशा प्रदान करता है।

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