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एक ऐसा व्यतित्व जो युगों-युगों कभी एक बार धरती पर जन्म लेता है, “रजनीश ओशो” ऐसे ही एक व्यक्तित्व के मालिक थे।

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जो अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में एक विविदास्पद और रहस्यमयी आध्यात्मिक गुरु के रूप में जाने गये।

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11 दिसंबर, 1931: ओशो का जन्म मध्य भारत के मध्य प्रदेश राज्य के एक छोटे से गांव कुछवाड़ा में हुआ था।

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21 मार्च, 1953: जबलपुर के डी.एन.जैन कॉलेज में दर्शनशास्त्र में पढ़ाई के दौरान इक्कीस साल की उम्र में प्रबुद्ध हो गए।

21 मार्च, 1953: जबलपुर के डी.एन.जैन कॉलेज में दर्शनशास्त्र में पढ़ाई के दौरान इक्कीस साल की उम्र में प्रबुद्ध हो गए।

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1956: ओशो ने सागर विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में प्रथम श्रेणी सम्मान के साथ एम.ए. प्राप्त किया।

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वह अपनी स्नातक कक्षा में अखिल भारतीय वाद-विवाद चैंपियन और स्वर्ण पदक विजेता हैं।

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1957-1966 विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और लोक वक्ता

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1957: ओशो को रायपुर के संस्कृत कॉलेज में प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया।

1958: उन्हें जबलपुर विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र का प्रोफेसर नियुक्त किया गया, जहाँ उन्होंने 1966 तक पढ़ाया।

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1966: नौ साल के अध्यापन के बाद, उन्होंने खुद को पूरी तरह से मानव चेतना के उत्थान के लिए समर्पित करने के लिए विश्वविद्यालय छोड़ दिया। नियमित रूप से, वह भारत के प्रमुख शहरों के खुले मैदानों में 20,000 से 50,000 की सभाओं को संबोधित करना शुरू करते हैं। वह साल में चार बार दस दिवसीय गहन ध्यान शिविर आयोजित करना शुरू करते हैं।