"रात यूँ दिल में तिरी खोई हुई याद आई, जैसे वीराने में चुपके से बहार आ जाए"

"और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा, राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा"।

"दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है, लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है"।

"बे-दम हुए बीमार दवा क्यूँ नहीं देते, तुम अच्छे मसीहा हो शिफ़ा क्यूँ नहीं देते"।

"न जाने किस लिए उम्मीद-वार बैठा हूँ, इक ऐसी राह पे जो तेरी रहगुज़र भी नहीं"।

"गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले, चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले"।

"दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के, वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के"।

"इक फ़ुर्सत-ए-गुनाह मिली वो भी चार दिन, देखे हैं हम ने हौसले परवरदिगार के"।

"तुम आए हो न शब-ए-इंतिज़ार गुज़री है, तलाश में है सहर बार बार गुज़री है"।

"कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब, आज तुम याद बे-हिसाब आए"।

"जानता है कि वो न आएँगे, फिर भी मसरूफ़-ए-इंतिज़ार है दिल"।

"न गुल खिले हैं न उन से मिले न मय पी है, अजीब रंग में अब के बहार गुज़री है"।