“हम को मालूम है, जन्नत की हक़ीक़त लेकिन, दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है”

“काबा किस मुँह से जाओगे 'ग़ालिब', शर्म तुम को मगर नहीं आती”

“इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया, वर्ना हम भी आदमी थे काम के”

“वो आए घर में हमारे ख़ुदा की क़ुदरत है, कभी हम उन को कभी अपने घर को देखते हैं”

“इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा, लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं”

“मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का, उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले”

“इश्क़ से तबीअत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया, दर्द की दवा पाई दर्द-ए-बे-दवा पाया”

“कब वो सुनता है कहानी मेरी, और फिर वो भी ज़बानी मेरी”

“हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले, बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले”

“उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़, वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है”

“ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता”

“मेरी क़िस्मत में ग़म गर इतना था, दिल भी या-रब कई दिए होते”