कुछ साल पहले मेरी ज़िंदगी जैसे थमी हुई थी। बाहर से सब ठीक लगता था — नौकरी थी, परिवार था, ज़िम्मेदारियाँ निभा रहा था। लेकिन अंदर ही अंदर मैं खाली था। तनाव, उलझनें, और एक अजीब-सी बेचैनी मुझे लगातार घेरे रहती थी। तभी किसी ने मुझे “चक्र ध्यान” के बारे में बताया।
शुरुआत में तो ये सब मुझे बहुत जटिल लगा — सात चक्र, ऊर्जा, बीज मंत्र… लेकिन जैसे-जैसे मैंने इसमें खुद को समर्पित किया, मेरी ज़िंदगी में जो बदलाव आए, वो शब्दों से परे हैं। आज मैं उन्हीं सात चक्रों की अपनी यात्रा और अनुभव आपसे बाँट रहा हूँ।
भारतीय योग दर्शन और तंत्र परंपरा में सात चक्र (Seven Chakras) को शरीर के सूक्ष्म ऊर्जा केंद्र माना गया है। यह चक्र मानव शरीर में ऊर्जा के बहाव और संतुलन को नियंत्रित करते हैं। अगर ये चक्र संतुलित होते हैं तो शरीर, मन और आत्मा में समरसता बनी रहती है। लेकिन जब ये अवरुद्ध या असंतुलित होते हैं, तब व्यक्ति शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक परेशानियों का अनुभव करता है।
इस लेख में –
- सात चक्र कौन-कौन से हैं?
- हर चक्र का स्थान, रंग, मंत्र और गुण क्या है?
- इन चक्रों को संतुलित कैसे करें?
- सात चक्र ध्यान और साधना के लाभ
सात चक्रों की सूची
- मूलाधार चक्र (Root Chakra)
- स्वाधिष्ठान चक्र (Sacral Chakra)
- मणिपुर चक्र (Solar Plexus Chakra)
- अनाहत चक्र (Heart Chakra)
- विशुद्धि चक्र (Throat Chakra)
- आज्ञा चक्र (Third Eye Chakra)
- सहस्रार चक्र (Crown Chakra)
अब इन सभी चक्रों को एक-एक करके विस्तार से समझते हैं।
1. मूलाधार चक्र (Muladhara Chakra)
पहला कदम था मूलाधार चक्र को समझना। यह चक्र रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से में होता है और सुरक्षा व अस्तित्व से जुड़ा है।
जब मैंने इस पर ध्यान करना शुरू किया, तब मुझे अपने डर और असुरक्षाओं का सामना करना पड़ा — जैसे नौकरी खोने का डर, अस्थिर भविष्य की चिंता, पारिवारिक जिम्मेदारियाँ।
हर दिन “लं” मंत्र का जप करते हुए जब ज़मीन पर बैठकर ध्यान करता, तो मुझे लगता जैसे मैं धरती से जुड़ रहा हूँ। कुछ ही हफ्तों में मन में स्थिरता आने लगी। मुझे समझ आया कि मजबूत नींव के बिना कुछ नहीं टिकता।
- स्थान: रीढ़ की हड्डी का सबसे निचला भाग (गुदा के पास)
- रंग: लाल
- बीज मंत्र: लं (LAM)
- तत्व: पृथ्वी (Earth)
- सम्बन्धित अंग: रीढ़, टांगें, पांव
कार्य: मूलाधार चक्र जीवन की नींव है। यह सुरक्षा, अस्तित्व और स्थायित्व से जुड़ा हुआ है। जब यह संतुलित होता है तो व्यक्ति आत्मविश्वासी, स्थिर और सुरक्षित महसूस करता है।
असंतुलन के लक्षण:
- भय, असुरक्षा, पैसों की चिंता
- कब्ज, थकान, अनिद्रा
संतुलन के उपाय:
- ग्राउंडिंग मेडिटेशन
- लाल रंग पहनना
- “लं” मंत्र का जाप
2. स्वाधिष्ठान चक्र (Svadhishthana Chakra)
इसके बाद आया स्वाधिष्ठान चक्र, जो नाभि के नीचे स्थित होता है और भावनाओं, रचनात्मकता और कामना से जुड़ा है।
पहले मुझे अपनी भावनाओं को दबाने की आदत थी। रोना कमज़ोरी लगता था और अपनी इच्छाओं को गलत मानता था। लेकिन “वं” मंत्र के साथ ध्यान करने पर मैंने खुद को खोलना शुरू किया।
मुझे पहली बार ये समझ आया कि इच्छाएँ बुरी नहीं होतीं, और भावनाएँ हमारी ऊर्जा हैं — उन्हें बहने देना ज़रूरी है। मैंने लिखना शुरू किया, चित्र बनाना शुरू किया — और आत्मा जैसे साँस लेने लगी।
- स्थान: नाभि के नीचे, जननेंद्रियों के पास
- रंग: नारंगी
- बीज मंत्र: वं (VAM)
- तत्व: जल (Water)
- सम्बन्धित अंग: प्रजनन अंग, मूत्राशय
कार्य: यह चक्र रचनात्मकता, कामना, आनंद और भावनाओं को नियंत्रित करता है।
असंतुलन के लक्षण:
- यौन विकार, भावनात्मक अस्थिरता
- शर्म, अपराधबोध, रचनात्मकता में कमी
संतुलन के उपाय:
- नृत्य, स्वच्छंद अभिव्यक्ति
- नारंगी रंग के वस्त्र या आहार
- जल के साथ ध्यान
3. मणिपुर चक्र (Manipura Chakra)
नाभि के आसपास स्थित मणिपुर चक्र मेरे लिए एक क्रांतिकारी अनुभव रहा।
यह चक्र आत्मबल और निर्णय शक्ति का केंद्र है। जब मैंने इस चक्र पर ध्यान देना शुरू किया, तो अहसास हुआ कि मेरे कई निर्णय दूसरों की राय पर आधारित थे।
“रं” मंत्र के साथ सूर्य की ओर मुख करके ध्यान करना और पीले रंग का ध्यान करना मेरे अंदर एक नई ऊर्जा भर देता था। कुछ ही महीनों में मैंने अपने करियर को लेकर ज़रूरी फैसले लिए और खुद पर भरोसा करना सीखा।
- स्थान: नाभि और सीने के बीच
- रंग: पीला
- बीज मंत्र: रं (RAM)
- तत्व: अग्नि (Fire)
- सम्बन्धित अंग: यकृत, पाचन तंत्र
कार्य: मणिपुर चक्र आत्मबल, इच्छा शक्ति और आत्मविश्वास का केंद्र है।
असंतुलन के लक्षण:
- गुस्सा, निराशा, आत्म-संदेह
- पाचन समस्या, गैस
संतुलन के उपाय:
- सूर्य नमस्कार, योगासनों का अभ्यास
- “रं” मंत्र का जाप
- दीप जलाना, धूप-प्रकाश में बैठना
4. अनाहत चक्र (Anahata Chakra)
अनाहत चक्र, जो हमारे ह्रदय के केंद्र में होता है, सबसे भावुक अनुभव रहा।
मेरे भीतर बहुत-सी अनकही बातें, पुराने रिश्तों की टीस, और क्षमा न कर पाने का बोझ था। “यं” मंत्र का जाप और गहरी साँसों के साथ ह्रदय पर ध्यान करते हुए, धीरे-धीरे मैंने इन भावनाओं को बाहर निकलने दिया।
मैंने खुद को और दूसरों को माफ़ करना सीखा। हरे रंग की रोशनी की कल्पना करते हुए जब ध्यान करता, तो ऐसा लगता जैसे कोई घाव भर रहा हो।
- स्थान: ह्रदय के केंद्र में
- रंग: हरा
- बीज मंत्र: यं (YAM)
- तत्व: वायु (Air)
- सम्बन्धित अंग: ह्रदय, फेफड़े, हाथ
कार्य: यह चक्र प्रेम, करुणा, क्षमा और संबंधों का केंद्र है।
असंतुलन के लक्षण:
- भावनात्मक दर्द, नफरत, अलगाव
- अस्थमा, उच्च रक्तचाप
संतुलन के उपाय:
- हृदय खोलने वाले आसन (जैसे भुजंगासन)
- ग्रीन टी, हरा आहार
- माफ़ करना, सेवा करना
5. विशुद्धि चक्र (Vishuddha Chakra)
विशुद्धि चक्र गले में होता है, और यह आत्म-अभिव्यक्ति से जुड़ा है।
मुझे लंबे समय तक अपनी बात कहने में झिझक होती थी — खासकर जब मुझे असहमति जतानी होती। “हं” मंत्र और नीली रोशनी के साथ जब मैंने इस चक्र पर ध्यान देना शुरू किया, तो धीरे-धीरे मेरी आवाज़ में आत्मविश्वास आया।
अब मैं खुलकर अपनी बात रख पाता हूँ — न तो ज़्यादा, न ही कम। बस, सच और दिल से।
- स्थान: गला
- रंग: नीला
- बीज मंत्र: हं (HAM)
- तत्व: आकाश (Ether)
- सम्बन्धित अंग: गला, स्वरयंत्र, थायरॉइड
कार्य: यह चक्र संचार, आत्म-अभिव्यक्ति और सत्य से जुड़ा है।
असंतुलन के लक्षण:
- झिझक, झूठ बोलना, गले की समस्या
- थायरॉइड असंतुलन
संतुलन के उपाय:
- गाना गाना, लिखना
- नीले रंग का उपयोग
- मौन व्रत, सत्य बोलने की साधना
6. आज्ञा चक्र (Ajna Chakra)
भौहों के बीच का आज्ञा चक्र, जिसे “तीसरी आँख” भी कहा जाता है, मेरे लिए बेहद रहस्यमयी था।
ध्यान के दौरान इस स्थान पर हल्का कंपन महसूस होता था। “ओम्” मंत्र का उच्चारण करते हुए, मैंने अपने अंदर के विचारों और भ्रमों को स्पष्ट होते देखा।
अब जब भी कोई बड़ा निर्णय लेना होता है, मैं पहले ध्यान करता हूँ। मेरा अंतर्ज्ञान अब बहुत सशक्त हो गया है।
- स्थान: दोनों भौहों के बीच (तीसरी आँख)
- रंग: बैंगनी या नीला
- बीज मंत्र: ओं (OM)
- तत्व: मन/प्रकाश
- सम्बन्धित अंग: मस्तिष्क, आंखें, पीनियल ग्रंथि
कार्य: यह चक्र अंतर्ज्ञान, कल्पना और निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करता है।
असंतुलन के लक्षण:
- भ्रम, दृष्टि दोष, नींद की समस्या
- निर्णय लेने में कठिनाई
संतुलन के उपाय:
- त्राटक ध्यान, एकाग्रता अभ्यास
- ओं मंत्र का उच्चारण
- नीला-बैंगनी रंग का ध्यान
7. सहस्रार चक्र (Sahasrara Chakra)
अंत में आया सहस्रार चक्र, जो सिर के ठीक ऊपर होता है। इसे ब्रह्म से जुड़ने का केंद्र माना जाता है।
यह चक्र शब्दों से परे है। इसमें न कोई रंग है, न ही मंत्र। बस मौन है।
जब मैं इस पर ध्यान करता हूँ, तो ऐसा लगता है जैसे सारा अस्तित्व मेरे भीतर समाया हो। कोई इच्छा नहीं, कोई डर नहीं — बस एक शांति, एक गहराई।
इसी अवस्था में मैंने जाना कि हम सिर्फ शरीर या विचार नहीं हैं, हम ऊर्जा हैं।
- स्थान: सिर के ऊपर, सिरमौर
- रंग: बैंगनी या सफेद
- बीज मंत्र: मौन / ब्रह्म ध्वनि
- तत्व: ब्रह्म / चेतना
- सम्बन्धित अंग: मस्तिष्क, पीनियल ग्रंथि
कार्य: यह चक्र आत्मज्ञान, ब्रह्म चेतना और परम सत्य से जुड़ा है।
असंतुलन के लक्षण:
- आध्यात्मिक भ्रम, अलगाव
- सिरदर्द, न्यूरोलॉजिकल समस्या
संतुलन के उपाय:
- मौन ध्यान, ध्यान योग
- ध्यान मुद्रा में बैठना
- आभार और समर्पण की भावना

चक्र ध्यान कैसे करें? 🧘♀️ चक्र ध्यान करने की विधि:
1. स्थान और मुद्रा चुनें:
- शांत, स्वच्छ और ऊर्जा से भरपूर स्थान चुनें।
- पद्मासन या सुखासन में सीधे बैठें, रीढ़ सीधी रखें।
2. श्वास पर ध्यान दें:
- आँखें बंद करके गहरी, धीमी और सजग श्वास लें।
- मन को वर्तमान में केंद्रित करें।
3. एक-एक चक्र पर ध्यान केंद्रित करें:
- नीचे से ऊपर तक क्रमशः हर चक्र पर 2-5 मिनट ध्यान करें।
- हर चक्र के लिए उसका रंग, मंत्र और स्थान को ध्यान में लाएँ।
4. मंत्र जप और कल्पना करें:
चक्र | स्थान | रंग | बीज मंत्र |
मूलाधार | रीढ़ के निचले भाग | लाल | लं (Lam) |
स्वाधिष्ठान | नाभि के नीचे | नारंगी | वं (Vam) |
मणिपुर | नाभि के ऊपर | पीला | रं (Ram) |
अनाहत | हृदय | हरा | यं (Yam) |
विशुद्धि | गला | नीला | हम (Ham) |
आज्ञा | भौहों के बीच | बैंगनी | ॐ (Om) |
सहस्रार | सिर के ऊपर | श्वेत/सुनहरा | मौन / ओम् |
- हर चक्र पर ध्यान करते समय उसके रंग की चमकदार रोशनी की कल्पना करें।
- बीज मंत्र का मानसिक उच्चारण करें।
5. ऊर्जा की अनुभूति करें:
- जैसे–जैसे ऊपर के चक्रों की ओर बढ़ें, ऊर्जा का प्रवाह अनुभव करें।
- सहस्रार तक पहुँचकर मौन में स्थिर हो जाएं।
6. समापन:
- धीरे–धीरे श्वास को सामान्य करें।
- आभार प्रकट करें और धीरे–धीरे आँखें खोलें।
⏳ समय:
- शुरुआती लोग: प्रतिदिन 15–20 मिनट से शुरू करें।
- अभ्यासियों के लिए: 30–60 मिनट या उससे अधिक अपनी क्षमता अनुसार तक गहराई से ध्यान करें।
सात चक्रों को संतुलित करने के लाभ
- मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार
- भावनात्मक स्थिरता और सकारात्मक सोच
- आध्यात्मिक उन्नति और आत्मज्ञान
- रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि
- रिश्तों और आत्मविश्वास में सुधार
सात चक्रों की समझ और साधना केवल एक योगिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि सम्पूर्ण जीवन शैली में संतुलन और समरसता लाने का साधन है। यदि आप नियमित रूप से चक्र ध्यान करें और जीवन में सकारात्मकता बनाए रखें, तो न केवल मानसिक शांति मिलेगी, बल्कि आप आध्यात्मिक ऊंचाइयों तक भी पहुँच सकते हैं।
भारतीय परंपरा में चक्रों की अवधारणा
भारत में चक्र (विशेषतः योग और तंत्र परंपरा में वर्णित सूक्ष्म ऊर्जा केंद्रों) का उल्लेख कई प्राचीन ग्रंथों, परंपराओं और दर्शनों में मिलता है। इन चक्रों की अवधारणा मुख्यतः तंत्र, योग, आयुर्वेद, और सांख्य-दार्शनिक ग्रंथों से जुड़ी हुई है। नीचे उनके प्रमुख उल्लेख और संदर्भ दिए जा रहे हैं:
🔱 1. उपनिषदों में चक्र
कुछ उपनिषदों — विशेषकर योग उपनिषदों — में चक्रों का वर्णन मिलता है:
- योगतत्त्व उपनिषद
- शांडिल्य उपनिषद
- ध्यानबिंदू उपनिषद
- हंस उपनिषद
- अमरौपनिषद
इन ग्रंथों में शरीर के अंदर ऊर्जा के केंद्र, प्राणों की गति, कुंडलिनी जागरण और चक्रों की भूमिका पर प्रकाश डाला गया है।
🕉️ 2. तंत्र ग्रंथों में चक्र
तंत्र साहित्य में चक्रों की सबसे अधिक और विशद चर्चा मिलती है। इनमें:
- शिव संहिता
- गोरक्ष शतक
- हठयोग प्रदीपिका (स्वामी स्वात्माराम द्वारा रचित)
- कुलार्णव तंत्र
- शक्तिपथ ग्रंथ आदि।
उदाहरण:
हठयोग प्रदीपिका के चौथे अध्याय में चक्रों, कुंडलिनी, नाड़ी और ध्यान की विधियों का विशद विवरण है।
🌼 3. नाथ परंपरा
नाथ योगियों — विशेषतः गोरखनाथ — की परंपरा में चक्रों का महत्वपूर्ण स्थान है। यहाँ इन्हें साधना की विभिन्न अवस्थाओं के रूप में देखा जाता है, जहाँ कुंडलिनी शक्ति चढ़ती है।
🧘 4. आयुर्वेद और शरीर तंत्र
- आयुर्वेद में ‘नाड़ी’, ‘मार्ग’, और ‘मर्म बिंदु’ जैसे अवधारणाएं हैं जो चक्रों से संबंधित मानी जाती हैं।
- चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में चक्र शब्द कम मिलता है, लेकिन शरीर के ऊर्जा बिंदुओं और उनके प्रभावों की चर्चा है।
📿 5. शैव और शक्त परंपरा
- कश्मीरी शैवदर्शन और श्रीविद्या परंपरा (त्रिपुरा रहस्य, सौन्दर्य लहरी आदि) में चक्रों को देवी की शक्तियों के रूप में देखा जाता है।
- सप्तचक्र को सप्तशक्ति पीठों से भी जोड़ा जाता है।
📚 6. भागवत, गीता और पुराणों में
- श्रीमद्भागवत और शिव पुराण में चक्र शब्द अक्सर “चक्र” (जैसे सुदर्शन चक्र) के रूप में आता है, लेकिन ध्यान या ऊर्जा चक्रों का संदर्भ भी कहीं-कहीं मिलता है, विशेष रूप से ध्यान की विधियों के संदर्भ में।
- भगवद्गीता (अध्याय 5 और 6 में) चक्र का उल्लेख जीवनचक्र, यज्ञचक्र और ध्यान संबंधी संदर्भों में करती है।
🛕 7. मंदिरों और वास्तुशास्त्र में
- कुछ मंदिरों की संरचना को सप्तचक्र रूपी मंडलों में निर्मित किया गया है।
- श्रीचक्र या श्रीयंत्र — तंत्र साधना का महत्वपूर्ण चक्र — मंदिर स्थापत्य, विशेषकर ललिता उपासना में मिलता है (जैसे कामाक्षी मंदिर, कांचीपुरम)।
भारत में चक्रों का उल्लेख विशेष रूप से निम्न परंपराओं में मिलता है:
परंपरा | स्रोत |
योग | हठयोग प्रदीपिका, शिव संहिता |
तंत्र | कुलार्णव तंत्र, श्रीविद्या |
उपनिषद | योगतत्त्व उपनिषद, ध्यानबिंदू |
नाथ योग | गोरखनाथ साहित्य |
आयुर्वेद | नाड़ी व मर्मशास्त्र |
वास्तु और मंदिर शास्त्र | श्रीचक्र, मंडल परंपरा |
सात चक्रों का अच्छा स्वास्थ्य और संतुलन आत्मा, शरीर, और मानसिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण होता है। योग, ध्यान, और आध्यात्मिक अभ्यास इन चक्रों को संतुलित करने में मदद कर सकते हैं और आत्मा की उन्नति को प्राप्त करने में मदद कर सकते हैं।