ध्यान का अर्थ है – विचारों का ठहर जाना / शून्य हो जाना
ध्यान एक आध्यात्मिक अभ्यास है जिसमें मानसिक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करने का काम किया जाता है ताकि आप अपने मन को शांत और साकारात्मक रूप से एक केंद्रित ध्यान में ले सकें। यह ध्यान का मुख्य उद्देश्य होता है कि व्यक्ति अपने मन को अपनी विचारशक्ति के साथ नियंत्रित कर सके, जिससे मानसिक शांति, स्वस्थि, और आत्मा के साथ संवाद की स्थिति में पहुँच सके।
क्या आपने कभी अनुभव किया है कि हमारे दिमाग में लगातार मन और विचारों का एक उपद्रव चल रहा है, एक के बाद एक विचार, ये विचार भूतकाल (जो बीत गया) और भविष्यकाल (आने वाला) में उलझा रहता है, सभी जानते हैं कि भूतकाल से अपराधबोध के विचार और भविष्य के बारे में सोचने से उम्मीद के विचार पैदा होते हैं, इन्हीं विचारों के साथ-साथ में मन की चंचलता, इन दोनों से हमारा जीवन निर्मित होता है।
ध्यान से मन शांत होता है और विचारों की गति धीमी हो जाती है और मन एकाग्र होता है। मनुष्य का बाहरी जगत से विरक्त होकर किसी एक विशेष कार्य में लीन हो जाना, डूब जाना भी ध्यान है। कार्य में किसी का इतना लिप्त होना कि उसे किसी भी बात जैसे समय, मौसम, आवाज़, या किसी अन्य गतिविधि एवं अन्य शारीरिक इन्द्रियों का बोध न रहे, इस अवस्था को ध्यान कहते हैं।
ध्यान इन्हीं विचारों में स्थिरता लाता है और जैसे-जैसे आप ध्यान को अपने जीवन में बढ़ावा देते जाते हैं, वैसे-वैसे आपका जीवन बेहतर और आपके जीवन की हर क्रिया सरल हो जाती है, आप बड़ी से बड़ी परेशानी में भी सहज रह पाते हैं, आपका आत्मविश्वास बढ़कर कई गुना हो जाता है और आप उदासी, तनाव और चिंताओं से मुक्त होकर, वर्तमान के पलों को जीना सीख जाते हैं
ध्यान का प्राथमिक ध्येय अकेले अपने आप को आत्मसाक्षात्कार करने की प्रक्रिया में ले जाना होता है, जिसमें व्यक्ति अपने विचारों को अवलोकन करता है, उन्हें समझता है और उनके बारे में गहरा ज्ञान प्राप्त करता है। ध्यान के द्वारा व्यक्ति अपने अंतरात्मा के साथ मिलकर उसके साथ एकात्मा अनुभव करता है और जीवन को और अधिक उद्घाटना और सजीव तरीके से जीने की क्षमता विकसित करता है।
ध्यान के विभिन्न प्रकार और तकनीकें हो सकती हैं, और यह विभिन्न धार्मिक और आध्यात्मिक परंपराओं में प्रयुक्त होता है, जैसे कि हिन्दू धर्म, बौद्ध धर्म, और योगा। इन प्रक्रियाओं में ध्यान को अलग-अलग तरीकों से अभ्यास किया जाता है, लेकिन उद्देश्य सभी में एक ही होता है – मानसिक शांति, आंतरिक सुख, और आत्मा के साथ संवाद का अनुभव करना।
ध्यान, मन और विचारों को विश्राम प्रदान करता है जो किसी भी तरह के जीवन को उत्सव बनाने में सक्षम है, अगर आप नहीं भी जानते तभी भी आप ध्यान करते रहे हैं, याद कीजिये कभी किसी पल आप किसी चीज़ में इतना खो गये हों कि आप सब कुछ भूल गये हों, सब विचार छुट गये हों और आप वही पल हो गये हों जो वर्तमान में घट रहा है यही ध्यान में होता है आप एकाग्रता में होते हैं, वर्तमान में होते हैं और विचारों के अनावश्यक जाल से बाहर होते हैं।
जैसे कोई कवि कभी ख़ुद कविता हो जाता है, जैसे कोई मूर्तिकार ख़ुद मूर्ति हो जाता है, सृजन की अवस्था भी कई बार आपको ध्यान की अवस्था में ले जाने में सक्षम है जो कि आपको सुखद आनंद की स्तिथि में ले जाता है।
मैंने पहले विपश्यना ध्यान और श्री श्री रवि शंकर जी की संस्था आर्ट ऑफ़ लिविंग के ध्यान के लेख में अपने अनुभव आप लोगों के साथ साझा किये। आज़ ध्यान को गहराई से जानने के लिए ध्यान के इतिहास, लाभ, विधि और मोक्ष से पहले हम मानव मन, इन्द्रियां, प्रकृति आदि जो भी ध्यान में सहयोगी हैं उस को जान लें।
मन क्या है
मन एक व्यक्ति की मानसिक और भावनात्मक धारणा, जागरूकता, और चिन्तन की प्रक्रिया को सूचित करने वाला महत्वपूर्ण मानव अंग है। यह भौतिक रूप में नहीं पाया जा सकता है, लेकिन यह मानव अंग की मानसिक और भावनात्मक स्वरूप को सूचित करता है।
मन की कुछ मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित होती हैं:
- चिंतन (Thinking): मन चिंतन की प्रक्रिया को संचालित करता है, जिसमें विचार और ध्यान की प्रक्रियाएँ होती हैं।
- भावनाएँ (Emotions): मन भावनाओं को संचालित करता है, जैसे कि खुशी, दुख, उत्साह, भय, और गुस्सा।
- निर्णय (Decision-Making): मन निर्णय लेने की प्रक्रिया को सहायक रूप से संचालित करता है, और व्यक्ति को विभिन्न विकल्पों के बीच से चयन करने में मदद करता है।
- स्मरण (Memory): मन स्मृति और याददाश्त की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है, जिससे व्यक्ति के पास अपने अनुभवों और ज्ञान की यादें होती हैं।
- आत्म-संवाद (Self-Talk): मन व्यक्ति के अंदरी आत्मा के साथ संवाद करता है, और अपने विचारों, भावनाओं, और भ्रांतियों को प्रकट करने में मदद करता है।
- क्रियाएँ (Actions): मन व्यक्ति के कार्यों को संचालित करता है और व्यक्ति के द्वारा की जाने वाली क्रियाओं के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है।
जैसा कि आपने पढ़ा मन मानव के जीवन को संचालित करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण अंग है, यह आपकी मानसिक शक्ति को दर्शाता है, आपने सुना होगा – मन चंगा तो कठौती में गंगा अर्थात यदि आपका मन मजबूत है और शांत है तो आप किसी भी बाहरी स्तिथि में बिना विचलित हुए समता में बने रहते हैं।
मन, ध्यान, मेडिटेशन, और मानसिक स्वास्थ्य के साथ जुड़ा हुआ है, और इसके संवाद को साकारात्मक और सात्त्विक बनाने के लिए ध्यान और आध्यात्मिक अभ्यास का महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
इन्द्रियाँ क्या हैं
“इन्द्रियाँ” (Senses) शब्द संस्कृत में से आया है और मानव शरीर में पांच प्रमुख इन्द्रियों को दर्शाता है, जिनके माध्यम से हम बाहरी जगत को अनुभव करते हैं। ये पांच प्रमुख इन्द्रियाँ होती हैं:-
- वाक् (श्रवण इंद्रिय): यह इंद्रिय श्रवण या सुनने की क्रिया को संचालित करती है। हमारे कान इस इंद्रिय का हिस्सा होते हैं, जिनके माध्यम से हम आवाज़ को सुनते हैं।
- त्वक् (स्पर्श इंद्रिय): यह इंद्रिय स्पर्श या छूने की क्रिया को संचालित करती है। हमारी त्वचा इस इंद्रिय का हिस्सा होती है, जिसके माध्यम से हम वस्तुओं को छू सकते हैं और उनकी छूआछूत को महसूस कर सकते हैं।
- चक्षु (दृष्टि इंद्रिय): यह इंद्रिय दृश्य या देखने की क्रिया को संचालित करती है। हमारी आँखें इस इंद्रिय का हिस्सा होती हैं, जिसके माध्यम से हम वातावरण में होने वाले वस्तुओं को देख सकते हैं।
- रसना (रसना इंद्रिय): यह इंद्रिय रसना या चखने की क्रिया को संचालित करती है। हमारी जीभ इस इंद्रिय का हिस्सा होती है, जिसके माध्यम से हम आहार की रसायनिक गुणवत्ता को महसूस करते हैं।
- नासिका (गन्ध इंद्रिय): यह इंद्रिय गंध या सूँघने की क्रिया को संचालित करती है। हमारी नाक इस इंद्रिय का हिस्सा होती है, जिसके माध्यम से हम वातावरण में होने वाले खुशबू को प्राप्त कर सकते हैं।
इन्द्रियाँ मानव जीवन में बहुत महत्वपूर्ण होती हैं, क्योंकि वे हमें बाहरी जगत का अनुभव करने में मदद करती हैं। इन इन्द्रियों का मन से सीधा सम्बन्ध है क्युकिं इन्द्रियां मन की गुलाम होती हैं ये बाहरी वातावरण से ग्रहण करने के साथ साथ मन के इशारों पर भौतिक जगत के भिन्न अच्छे-बुरे (मन की दशा के अनुसार ) रसपान को लालायित हो कर पाने की इच्छा को चलती हैं।
जैसे कभी हम मन के कहने पर अच्छा संगीत सुनते हैं कभी बहुत उदास, कभी अनचाहा शोर और कभी शांत वातावरण चुनते हैं ऐसे ही बाकि चार इन्द्रियाँ त्वचा से स्पर्श, वायु, द्वारा, किसी व्यक्ति विशेष अथवा वस्तु का स्पर्श, आँखों से हम देखते हैं जो भी हमारे आस पास घटित हो रहा है या मन के हिसाब से जो देखना चाहते हैं किसी का मन ही उसकी पसंद न पसंद को इंगित करता है जीभ से हम स्वाद लेते हैं व्यजनों का वो भी मन के हिसाब से व्यक्ति विशेष के मन की पसंद पर आधारित है।
ध्यान में ये किस प्रकार सहायक हैं –
हम, ब्रम्हांड और इस जगत की हर चीज़ ३ भागों में विभाजित है, ये ईश्वर की अलौकिक मतलब अति अद्भुत त्रिगुणमयी शक्ति है जिससे पूरा संसार बना है और घिरा है, जिसके तीन गुण हैं- सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण।
सारी सृष्टि में यही तीन गुण हैं-
- तमोगुण- तमस मतलब अवरोधक शक्ति,
- रजोगुण- रजस मतलब गति की शक्ति,
- सतोगुण- सत्व मतलब संतुलन की शक्ति,
और जीवन का अंतिम विश्लेषण भी तीन शक्तियों पर टूटता है, इसलिए इन तीन शक्तियों को हमने अलग-अलग नाम दिए हैं- ब्रह्मा, विष्णु, महेश, ब्रह्मा विधाता, विष्णु संचालक और महेश संहारक।
ये गुण तीन मूल तत्व हैं जो सभी पदार्थों को बनाते हैं, सभी भौतिक दुनिया में भी तीन तत्व होते हैं बहुत सी अलग-अलग चीजें हैं जो हम दुनिया के बारे में जानते हैं…..यदि हम शुरू करते हैं समय के साथ तो भूतकाल, वर्तमान और भविष्य समय के तीन मूल तत्व हैं…. यदि हम तापमान को देखें तो- सब कुछ या तो बहुत गर्म है, बहुत ठंडा है या सिर्फ सही तापमान मध्यम है…. यहां तक कि प्राचीन ब्रह्मांड विज्ञान में भी हम कहेंगे कि- हमारे पास स्वर्ग, नरक और मोक्ष है
अगर हम अपने जीवन के बारे में सोचते हैं तो जीवन क्या है तो ये भी तीन अवस्थाओं में है- जिसमें जन्म, जीवन और मरना शामिल है, भारतीय परंपरा में हम तीन शरीरों के बारे में बात करते हैं- जो दृश्यमान है मतलब स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर (वह जो सूक्ष्म रूप से छिपा हुआ है) और कारण शरीर वह जो हमारे भीतर बहुत गहराई से समाया हुआ है- नींद की तीन अवस्थायें- जागृत, स्वप्न और सुषुप्ति
सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण प्रत्येक मनुष्य में अलग अलग मात्रा में होते हैं, ये मनुष्य स्वयं अपनी प्रवृति जान कर पता लगा सकता है
ये अनुवांशिक भी हो सकता है और पूरी तरह इस पर निर्भर है आप किस तरह के वातावरण में रह रहे हैं आप तामसिक भोजन पानी लेते हैं या राजसिक या सात्विक, पाँचों इन्द्रियों से आप क्या ग्रहण कर रहे हैं, क्या आपका वातावरण सात्विक क्या आप प्रकृति के करीब हैं जैसे आप जीवन को जी रहे हैं वो आप को बताएगा कि आपके जीवन में कौन सा गुण सक्रीय है।
यहाँ मैं आपको बता दूँ कि सत्व जीवन में ध्यान के गहरे अनुभव में सहायक है इसीलिए जब आप ध्यान के शिविर में जाते हैं तो वहां पाँचो इन्द्रियों से सत्व ग्रहण करने की व्यवस्था होती है इसलिए ऐसी जगह की उर्जा बहुत हाई होती है, आगे आपको प्रक्रति ध्यान में किस तरह सहयोग करती है के बारे में अपना अनुभव बताउंगी।
ध्यान का इतिहास
इतिहास की द्रष्टि से यह व्यक्त करना अत्यंत कठिन है कि ध्यान का अविर्भाव कब, कैसे और कहाँ हुआ, यदि हम प्राचीन प्राचीन ग्रंथो पर नजर डालें तो ध्यान विद्या का उल्लेख वेदों और महर्षि पतंजलि के योग सूत्र में मिलता है इसलिए ये तो तय है कि ध्यान की परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है
प्राचीन काल में कोई भी विद्या आचार्य और गुरुओं द्वारा लिखकर नहीं अपितु मौखिक रूप से दुसरे शिष्यों को, और आचार्यों को प्रदान की जाती रही है, जैसे विपश्यना ध्यान के इतिहास में भी हम ये पढ़ सकते हैं, प्राचीन काल में ऋषि, मुनि अपने जप-तप से प्राप्त विद्याओं को एक से दुसरे को मौखिक रूप से प्रदान करते रहे हैं, ताकि से संसार से लुप्त ना हो जाएँ।
फिर वैदिक काल में इन विद्याओं को लिपिबद्ध किये जाने का कार्य आरम्भ हुआ, जिसमें हिन्दू धर्म के वेद, पुराण और दर्शन लिखे गये इन्हीं में महर्षि पतंजलि में अष्टांग योग के बारे में पढने को मिलता है, अष्टांग योग आठ अंगों का है – यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधी इसमें पहले पांच शारीरिक स्तर की क्रियाएं हैं और बाकि तीन मानसिक और अध्यात्मिक स्तर पर कार्य करती हैं।
ध्यान विज्ञान या कला
ध्यान को कला और विज्ञान दोनों के रूप में देखा जा सकता है, और इसका माध्यम और उद्देश्य पर निर्भर करता है।
कला (Art): ध्यान को कला के रूप में देखने वाले लोग मानते हैं कि यह एक आध्यात्मिक अभ्यास है जिसमें व्यक्ति अपने मानसिक स्थिति को सुधारने के लिए विशेष प्रक्रियाओं और तकनीकों का उपयोग करते हैं। इस दृष्टिकोण से, ध्यान को एक प्रकार की आध्यात्मिक कला के रूप में देखा जाता है जिसमें मानसिक शांति, साकारात्मकता, और सुख का अनुभव किया जाता है।
विज्ञान (Science): ध्यान को विज्ञान के रूप में देखने वाले लोग मानते हैं कि यह एक मानसिक प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति मानसिक और शारीरिक प्रक्रियाओं का अध्ययन करते हैं और इन प्रक्रियाओं के विज्ञानिक दृष्टिकोण को समझते हैं। इस दृष्टिकोण से, ध्यान को मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका तंतु से जुड़े एक विज्ञानिक अध्ययन के रूप में देखा जाता है, जिसका उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य को सुधारना और सांत्वना प्राप्त करना होता है।
कई ध्यान के तरीके और प्रयोगों को योग, मानसिक ध्यान, त्राण मानसिक ध्यान, और विपश्याना मानसिक ध्यान जैसे विभिन्न शैलियों में प्रकट किया जाता है, और इनमें से कुछ कला के रूप में और कुछ विज्ञान के रूप में देखे जाते हैं।
ध्यान के नियम
ध्यान करने के नियम विभिन्न ध्यान प्रक्रियाओं और ध्यानिक अभ्यासों के आधार पर अलग-अलग हो सकते हैं। लेकिन आमतौर पर, ध्यान करने के कुछ मूल नियम निम्नलिखित होते हैं:
- स्थिर और शांत जगह: ध्यान करने के लिए एक सुखद और शांत जगह चुनें, जिसमें कोई अवाघात नहीं हो।
- आसन: आसन का चयन करें जो सुखद और स्थिर होता है, जैसे कि पद्मासन, सुखासन, या वज्रासन।
- सामग्री: ध्यान करते समय एक आसान और सुखद कपड़ा पहनें और अगर आपको यह सही लगे तो माला या जपमाला का उपयोग करें।
- समय: एक निश्चित समय और आवश्यकता के आधार पर ध्यान का समय निर्धारित करें, जैसे कि दिन के सुबह या शाम।
- उचित पोषण: ध्यान करते समय हल्का और सांत्वना परम आहार लें, ताकि आपका ध्यान बिचरण में न जाए, तामसिक भोजन से बचें।
- श्वासायामा: ध्यान करते समय श्वास की गहराई को ध्यान में ले आएं, जिसे “श्वासायामा” कहा जाता है।
- मानसिक सुधार: मानसिक विचारों को सुधारने का प्रयास करें, जैसे कि आत्मानुभव, शांति, और संयम के विचार।
- ध्यान का विचार: ध्यान का विचार करने के लिए किसी विशेष विषय या आध्यात्मिक मंत्र का उपयोग करें।
- नियमितता: ध्यान को नियमित रूप से करें, इसे दिन के कुछ समय के लिए अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाएं।
- धैर्य और निष्ठा: ध्यान में धैर्य और निष्ठा बनाए रखें, क्योंकि इसमें प्राप्ति में समय लग सकता है।
ध्यान का उद्देश्य मानसिक शांति, साकारात्मकता, और आत्मा के साथ संवाद का अनुभव करना होता है, और उपरोक्त नियमों का पालन करके इस अभ्यास को प्राप्त किया जा सकता है।
ध्यान कैसे करें
ध्यान करने के लिए निम्नलिखित आसान ध्यान तकनीकों का प्रयास कर सकते हैं:
- ठीक से बैठें: एक सुखद और स्थिर स्थान पर बैठें। यदि आप अध्यात्मिक आसन जैसे पद्मासन में बैठने का योग्य हैं, तो वही बेहतर होगा।
- आंखें बंद करें: ध्यान करते समय आंखों को बंद करें ताकि आप बाहरी दुनिया से बाहर कर सकें।
- श्वास साधें: गहरी और नियमित श्वास लें। श्वास को ध्यान में लेने से आपका मन साकारात्मक रूप से केंद्रित रहेगा।
- मंत्र या विचार: आप एक आध्यात्मिक मंत्र का उपयोग कर सकते हैं जैसे “ओम” या “शांति”। आप भी किसी आत्मिक विचार को चुन सकते हैं और उसे ध्यान में ले सकते हैं।
- मन को नियंत्रित करें: मन के आवागमनों को ध्यान से नोट करें, लेकिन उनमें न खो जाएं। मन का संवाद सुधारने का प्रयास करें और ध्यान को स्थिर रूप से विचारने की कोशिश करें।
- ध्यान का समय: आप ध्यान को दिन के किसी भी समय कर सकते हैं, लेकिन सुबह और शाम ध्यान करने का समय बेहतर हो सकता है। (खाना खाने के दो घंटे बाद करें, हमारा शरीर भोजन को पचाने की क्रिया में होता है जिससे ध्यान में बाधा पड़ती है)
- नियमितता: ध्यान को नियमित रूप से करने का प्रयास करें। यह आपके मानसिक स्वास्थ्य और आंतरिक शांति के लिए अधिक फायदेमंद होगा।
- धैर्य: ध्यान में सफलता पाने के लिए धैर्य रखें, क्योंकि इसमें प्राप्ति में समय लग सकता है।
समापन: ध्यान के समापन पर ध्यानिक अभ्यास की निम्नलिखित चरणों का पालन करें:
- ध्यान को संवाद की स्थिति में स्वीकार करें।
- आंखें धीरे-धीरे खोलें।
- अपने ध्यान के अनुभवों को ध्यान में अंतररूप से लेने का प्रयास करें।
- ध्यान के द्वारा आप अपने मन को शांत करके आत्मा के साथ संवाद करने का अनुभव कर सकते हैं और इससे मानसिक और आत्मिक सुख में सुधार हो सकता है।
ध्यान के फायदे
ध्यान करने के कई शारीरिक, मानसिक, और आत्मिक फायदे हो सकते हैं. निम्नलिखित कुछ महत्वपूर्ण ध्यान के फायदे हैं:
- मानसिक शांति: ध्यान करने से मानसिक चिंताओं और स्ट्रेस को कम किया जा सकता है, जिससे आपकी मानसिक शांति बनी रहती है।
- स्थिरता और संयम: ध्यान व्यक्ति को स्थिरता और संयम की शक्ति प्रदान करता है, जिससे वह अपने मन को नियंत्रित कर सकता है और उचित निर्णय ले सकता है।
- विचारशक्ति और स्पष्टता: ध्यान से आपकी विचारशक्ति और स्पष्टता में सुधार हो सकता है, जिससे आप जीवन के मुद्दों को सही तरीके से समझ सकते हैं।
- साकारात्मकता: ध्यान करने से आपकी साकारात्मकता में वृद्धि हो सकती है, जिससे आप अपने आत्मा के साथ जुड़ सकते हैं और अपनी अंतरात्मा को समझ सकते हैं।
- स्वास्थ्य लाभ: ध्यान करने से ब्लड प्रेशर कम हो सकता है, सांत्वना बढ़ सकती है, और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार हो सकती है।
- निरोगी दिमाग: ध्यान करने से मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है, जिससे दिमाग की निरोगीता बढ़ सकती है।
- उच्च समर्पण: ध्यान आपकी दृढ़ समर्पण क्षमता को बढ़ा सकता है, जिससे आप अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में मदद मिल सकती है।
- बेहतर नींद: ध्यान करने से नींद में सुधार हो सकता है, जिससे आपके दिनचर्या में सुधार होता है और आपका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य बेहतर हो सकता है।
- संवाद आत्मा के साथ: ध्यान के माध्यम से आप अपने आत्मा के साथ संवाद कर सकते हैं, जिससे आपकी आत्मा के मार्गदर्शन में मदद मिलती है।
यह सभी फायदे ध्यान के नियमित अभ्यास के परिणामस्वरूप हो सकते हैं। ध्यान को अपने जीवन का हिस्सा बनाने से आप अपने मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य में सुधार देख सकते हैं।
ध्यान के लक्षण
ध्यान की स्थिति को पहचानने के लिए आप निम्नलिखित लक्षणों का ध्यान देने का प्रयास कर सकते हैं:
- ध्यान केंद्रितता: ध्यान की स्थिति में व्यक्ति का मन एक ही स्थिति, विचार या विचार के लिए केंद्रित होता है, और वह अपने बाहरी जगह की चिंताओं को भूल जाता है।
- शांति: ध्यान की स्थिति में व्यक्ति को मानसिक शांति का अनुभव होता है। उनका मन साकारात्मक और तनावमुक्त रहता है।
- साकारात्मकता: ध्यान करने के दौरान, व्यक्ति को आत्मा के साथ संवाद का अनुभव होता है। वे अपने आत्मा को जानने और समझने का प्रयास करते हैं।
- धैर्य: ध्यान करने में व्यक्ति का धैर्य होता है। वे अपने मन को नियंत्रित करने में समर्थ होते हैं और चिंताओं के बावजूद ध्यान में बने रहते हैं।
- आनंद: ध्यान की स्थिति में व्यक्ति को आत्मा के साथ संवाद करने से आनंद मिलता है। वे आत्मा की गहराई को अनुभव करते हैं और इससे आनंदित होते हैं।
- नियमित श्वास: ध्यान करते समय, व्यक्ति का श्वास गहरा, नियमित, और ध्यानपूर्ण होता है, जिससे उनका मन साकारात्मक रूप से केंद्रित रहता है।
- आंतरिक शांति: ध्यान की स्थिति में व्यक्ति को आंतरिक शांति का अनुभव होता है, जिससे उनका जीवन सांत्वना और सुख से भर जाता है।
- समर्पण: ध्यान की स्थिति में व्यक्ति अपने कार्य में दृढ़ समर्पित रहता है और उसके प्रति अधिक संवादशील होता है।
- विचारशक्ति: ध्यान के माध्यम से व्यक्ति की विचारशक्ति और स्पष्टता में सुधार होता है, जिससे वह अपने मानसिक प्रक्रियाओं को समझने और सुधारने के लिए सक्षम होता है।
ध्यान की स्थिति को पहचानने में समय लग सकता है, और यह अभ्यास में नियमितता के साथ होता है। ध्यान को धीरे-धीरे बढ़ाते जाने के साथ ही आपको इसके लक्षणों का अधिक साक्षर होने लगेगा।
ध्यान से मोक्ष
ध्यान का मुख्य उद्देश्य मोक्ष या मुक्ति प्राप्ति नहीं होता है, लेकिन यह आध्यात्मिक अभ्यास आत्मा के अध्ययन और समझ में मदद कर सकता है, जो कुछ धार्मिक दर्शनों में मोक्ष के प्राप्ति का एक माध्यम माना जाता है।
मोक्ष धार्मिक अनुष्ठानों और दर्शनों के साथ-साथ ध्यान के रूप में विभिन्न तरीकों से प्रतिपादित किया जाता है, और यह उन्हें आत्मा की उद्धारण और आत्मा के साथ ब्रह्मन (या परमात्मा) का मिलन का साधना करने का माध्यम माना जाता है।
मोक्ष की परिभाषा और उसका माध्यम विभिन्न धार्मिक परंपराओं के आधार पर अलग-अलग होते हैं। उदाहरण स्वरूप, हिन्दू धर्म में मोक्ष को आत्मा का परमात्मा के साथ एकता के रूप में प्राप्ति माना जाता है, जबकि बौद्ध धर्म में मोक्ष को दुख से मुक्ति के रूप में प्रतिपादित किया जाता है।
ध्यान एक प्राचीन अभ्यास है जिसमें मन को शांति और साकारात्मकता की दिशा में मोद्धृत किया जाता है, और यह धार्मिक अनुष्ठानों में अपने मार्ग पर बढ़ने के लिए एक माध्यम के रूप में उपयोग हो सकता है। ध्यान के माध्यम से व्यक्ति अपने आत्मा को और उसके आत्मिक स्वरूप को समझने का प्रयास कर सकता है, जो कुछ धार्मिक दर्शनों में मोक्ष के प्राप्ति की एक प्रक्रिया मानी जाती है।
लेकिन यह जरूरी है कि ध्यान का प्रैक्टिस सही गुरु के मार्गदर्शन में किया जाए ताकि व्यक्ति सही दिशा में बढ़ सके और अपने आध्यात्मिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए उपयोगी हो सके।
मोक्ष कैसे प्राप्त करें
मोक्ष प्राप्त करने के लिए विभिन्न धार्मिक परंपराओं और दर्शनों में विभिन्न मार्ग होते हैं, लेकिन इसके बावजूद कुछ मुख्य आदर्श मार्ग निम्नलिखित हो सकते हैं:
- भक्ति मार्ग: इस मार्ग में व्यक्ति भगवान के प्रति श्रद्धा और भक्ति में लिपटकर मोक्ष की प्राप्ति का प्रयास करता है। भक्ति मार्ग के अनुयायी अपने भगवान के प्रति समर्पण और प्रेम में विश्वास करते हैं।
- ज्ञान मार्ग: इस मार्ग में व्यक्ति ज्ञान की प्राप्ति के लिए अपने मानसिक और आत्मिक अभ्यास करता है। यह मार्ग आत्मा की स्वाभाविक शुद्धि और आत्मा के ब्रह्मन (या परमात्मा) के साथ एकता का साधना करता है।
- कर्म मार्ग: इस मार्ग में व्यक्ति कर्मों के माध्यम से मोक्ष की प्राप्ति की ओर बढ़ता है। यहां पर कार्यों को निष्काम कर्म के रूप में किया जाता है, जिसका मतलब है कि व्यक्ति कर्मों के फल की आकांक्षा नहीं रखता है।
- ध्यान मार्ग: इस मार्ग में व्यक्ति ध्यान या मेडिटेशन के माध्यम से मोक्ष की प्राप्ति का प्रयास करता है। यह मार्ग आत्मा के साथ संवाद और आत्मा के अद्वितीय ध्यान की दिशा में होता है।
अधिकांश धार्मिक परंपराएँ मोक्ष को आत्मा की उद्धारण और आत्मा के साथ ब्रह्मन (या परमात्मा) का मिलन की प्राप्ति के रूप में मानती हैं। मोक्ष के लिए व्यक्ति को अपने दुखों को छोड़ना, अहम् (अहंकार) को छोड़ना, और आत्मा के अद्वितीय स्वरूप का समझने का प्रयास करना होता है।
इन मार्गों में से किसी एक का अनुसरण करने से मोक्ष की प्राप्ति संभव है, लेकिन यह भी अहम है कि व्यक्ति अपने आदर्शों और धार्मिक परंपराओं के आधार पर अपने मार्ग को चुने और उस पर निरंतर अभ्यास करें।
पुराने समय से योगी, मुनि, ऋषि द्वारा ध्यान के माध्यम से समाधि को प्राप्त करने में भारत, पुरे विश्व में एक अलग स्थान रखता है, जहाँ हम रह रहे हैं उसी धरती पर महात्मा बुद्ध, महर्षि पतंजलि, ओशो रजनीश, श्री श्री रवि शंकर जैसे महान लोग हुए, जो आज भी ध्यान और योग को वैश्विक स्तर पर प्रचार-प्रसार कर लोगों के जीवन को शारीरिक, मानसिक और आध्यातिम्क तौर पर बेहतर और सफ़ल बनाने में अपना योगदान दे रहे हैं, निर्वाण, समाधि, परमात्मा, मोक्ष, ये सभी शव्द इक ही ओर इशारा करते हैं जो ध्यान के द्वारा प्राप्त होता है।
ध्यान में प्रकृति का सहयोग
प्रकृति की निकटता (यानि वातावरण में समय बिताना) ध्यान करने के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है क्योंकि यह ध्यान को सुखद, स्थिर और प्राकृतिक बना सकता है। यहां कुछ कारण दिए गए हैं:
- शांति और सुकून: प्रकृति में समय बिताने से व्यक्ति अपने आत्मा को शांति और सुकून की अनुभव कर सकता है। प्राकृतिक वातावरण में अपने आत्मा को समर्पित करने से मन शांत होता है और ध्यान करने के लिए अधिक सहायक होता है।
- स्वास्थ्य और शारीरिक लाभ: प्रकृति में समय बिताने से आपके शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है। यह शांत और प्राकृतिक वातावरण आपके तनाव को कम कर सकता है और मानसिक स्वास्थ्य को भी बेहतर बना सकता है।
- संवाद आत्मा के साथ: प्रकृति में वक्त बिताने से आप अपने आत्मा के साथ संवाद करने का अवसर प्राप्त कर सकते हैं। यह आपको आत्मा के अद्वितीय ध्यान की ओर ले जा सकता है और ध्यान को प्राकृतिक तरीके से अनुभव करने में मदद कर सकता है।
- ध्यान के लिए स्थान: प्रकृति में स्थिति ध्यान के लिए आदर्श हो सकती है। यहां वातावरण में कुछ विशेष शांति और सौंदर्य होता है जो ध्यान के लिए सहायक हो सकता है।
- ध्यान की साधना: प्रकृति में समय बिताने से आप ध्यान की साधना कर सकते हैं। ध्यान को प्राकृतिक वातावरण में करने से यह अधिक आनंददायक और अरामदायक हो सकता है।
पुराने बुद्ध और अन्य महान आध्यात्मिक गुरुओं ने प्रकृति के साथ निकटता को अपने आध्यात्मिक अभ्यास का महत्वपूर्ण हिस्सा माना है और इसे ध्यान और आध्यात्मिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण तरीके से उपयोग किया है। निम्नलिखित हैं कुछ तरीके जिनसे प्रकृति के साथ निकटता ध्यान और आध्यात्मिक उन्नति में मदद करता है:
वनवास और वनप्रस्थ आश्रम: पुराने बुद्ध और अन्य आध्यात्मिक गुरु ने अकेले वनवास (जंगलों में बसना) और वनप्रस्थ आश्रम (आध्यात्मिक साधना के लिए समर्पित जीवन) के दौरान प्रकृति के साथ निकटता बढ़ाया। यह उनके आध्यात्मिक अभ्यास को प्रकृतिक वातावरण में समृद्ध किया और उन्हें आत्मा के साथ संवाद का अवसर प्रदान किया।
मेडिटेशन और योग: बुद्ध ने ध्यान और योग को आत्मा के साथ संवाद करने के उपाय के रूप में उपयोग किया। वे आपसी सम्मिलन के लिए प्रकृति के खुले मंजर में ध्यान करते थे और योग के माध्यम से मानसिक शांति और समझ प्राप्त करते थे।
वात्सल्य और सहानुभूति: धार्मिक गुरुओं ने प्रकृति के प्रति वात्सल्य और सहानुभूति की भावना विकसित की है। यह उनके आध्यात्मिक अभ्यास के दौरान प्रकृति के साथ एक एकता और संवाद की भावना को बढ़ावा देता है।
प्राकृतिक प्रतिभगीता: प्रकृति के साथ निकटता व्यक्ति को प्राकृतिक दुनिया की उपायुक्तता और प्रतिभगीता का अवसर प्रदान करता है, जिससे वह अपने आध्यात्मिक अभ्यास में सहयोग कर सकता है।
मौन और शांति: प्रकृति के बीच समय बिताने से व्यक्ति को शांति, चैतन्यकता और आत्मिक स्वरूप के साथ संवाद का अवसर मिलता है।
सारांश रूप से, प्रकृति की निकटता ध्यान को साकारात्मक और प्राकृतिक बना सकती है, जिससे ध्यान का अनुभव और प्राप्ति में मदद मिलती है।
इस प्रकार, प्रकृति के साथ निकटता आध्यात्मिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है, और यह आध्यात्मिक गुरुओं और पूर्वजों के अभ्यासों का हिस्सा रहा है। यह एक अंतरात्मा के साथ ज्यादा संवाद की दिशा में मदद कर सकता है और आध्यात्मिक जीवन को गहरा और सात्त्विक बना सकता है।
मैंने नदियों, झीलों, पेड़ों, पर्वतों और प्रकृति के करीब काफी वक़्त बिताया है, इसके अलावा जब भी मुझे किसी ध्यान शिविर में जाने का मौका मिलता है तो ज्यादातर वह स्थान प्राकृतिक सौन्दर्य से घिरा होता है, इसका मुख्य कारण है कि आपकी पाँचों इन्द्रियाँ सत्व में रहती है और आनंद आप में बहने लगता है, ध्यान यहाँ सहज़ हो जाता है, सात्विक हवा, पानी, भोजन और वातावरण से आपके विचार शुद्ध होने लगते हैं और गहरे ध्यान में मदद मिलती है। किसी भी प्रश्न के लिए हमें लिखें।