आज़ की औरत हूँ
पुरानी रिवायतों के बीच से, एक नया आगाज़ हूँ मैं,
दबायी जा रही चीख़ों में, एक पुरजोर आवाज़ हूँ मैं।
क्यूं सवाल है तुमको, मेरी खिलखिलाती हंसी पर,
कोई क़ैद ए मुज़रिम नहीं, हसरत- ए- परवाज़ हूँ मैं।
महज़ गुनगुनाहट नहीं, तेरे हुक्म- ए- तामील की,
ख़ुद से ख़ुद में थिरकता, एक मुकम्मल साज़ हूँ मैं।
निज़ाम हूं ना अस्बाब, कोई ऐशो- ओ- आराम का,
ख़ुदा की फुरसत से तराशी, निगाह-ए-नाज़ हूँ मैं।
रिवाज, ख़िलाफ़ ए ख़ानुम के, रोंन्द कर पैरों तले,
पाकिज़ा ओ बे-खौफ, मिस्ल-ए-रूह का आज़ हूँ मैं।
एहतराम – ए- हक़दारी में, जिरह की गुन्जाईश नहीं,
नाज़ो से पाली गयी, अपने वालिदैन का नाज़ हूँ मैं।
इस दोगले समाज़ का, फ़कत एक एतराज़ हूँ मैं,
इनकी नाजायज़ ख्व़ाहिशों का फटा लिबास हूँ मैं।
आज़ की औरत हूँ , इस बहरे समाज की आवाज़ हूँ मैं,
इन्क़िलाब हूँ मैं, इन्क़िलाब हूँ मैं, इन्क़िलाब हूँ मैं !!
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’
शब्द – अर्थ
आगाज़ -शुरुआत
परवाज़ – उड़ान
हुक्म -आज्ञा
तामील – पालन
निज़ाम – प्रबंध
अस्बाब – चीज, वस्तु, सामान
निगाह-ए-नाज़ – प्रेम भरी दृष्टी, स्नेह भारी दृष्टि
रिवाज़ -समाज में प्रचलित कोई परंपरा या रूढ़ि, प्रथा, रीति, परंपरा, चलन
ख़ानुम – औरत
पाकीज़ा – पवित्र, शुद्ध
मिस्ल-ए-रूह – आत्मा के समान
एहतराम – सम्मान
एतराज़ – विरोध, आपत्ति
इन्क़िलाब- बदलाव, क्रांति