उदास तुम ही नहीं हो हयात है शायद, थकी थकी से कहीं काएनात है शायद।

रुकी रुकी सी ये साँसें झुकी झुकी सी निगाह, उस एक बात में इक और बात है शायद।

मैं तुम को जीत रहा हूँ तुम्हें पता ही नहीं, ये और बात कि मेरी ही मात है शायद।

कहाँ का इश्क़ मगर उस को कौन समझाए, परी-ख़िसाल फ़रिश्ता-सिफ़ात है शायद।

ज़मीन जागी हुई है ज़माना जागा हुआ, कि आज रात कोई वारदात है शायद।

हर एक गाम पे रौशन करो दिए से दिया, तुलू-ए-सुब्ह से पहले नजात है शायद।

अभी तो शम्अ से शबनम बनेगी आँख 'सना', अभी तो एक पहर और रात है शायद।