उसकी बेवफाई पे भी फ़िदा होती है जान अपनी, अगर उस में वफ़ा होती तो क्या होता खुदा जाने।

किसी बेवफा की खातिर ये जूनून कब तक, जो तुम्हे भूल चूका है उसे तुम भी भूल जाओ।

मिल ही जायेगा कोई न कोई टूट के चाहने वाला, अब शहर का शहर तो बेवफा हो नहीं सकता।

रोज़ ढलता हुआ सूरज ये कहता है मुझसे, आज उसे बेवफा हुए एक दिन और बीत गया।

फिर से निकलेंगे तलाश ए जिन्दगी में, दुआ करना इस बार कोई बेवफा न मिले।

कुछ अलग ही करना है तो वफ़ा करो, बेवफाई तो सबने की है मज़बूरी के नाम पर।

रुसवा क्यों करते हो तुम इश्क को ऐ दुनिया वालो, महबूब तुम्हारा बेवफा है तो इश्क का क्या गुनाह।

सिखा दी बेवफाई भी तुम्हें ज़ालिम ज़माने ने, तुम जो भी सीख लेते हो हम ही पे आजमाते हो

वफ़ा निभा के वो हमें कुछ ना दे सके , पर बहुत कुछ दे गए जब बेवफा हुए।

वो कहते हैं की मजबूरियाँ है बहुत, साफ़ लफ़्ज़ों में खुद को बेवफा नहीं कहते।

कुछ नहीं बदला मोहब्बत में यहाँ, बस बेवफाई आम हो गयी है।

तेरी बेवफाई पे लिखूंगा गजलें, सुना है हूनर को हूनर काटता है।