जाते हो ख़ुदा-हाफ़िज़ हाँ इतनी गुज़ारिश है, जब याद हम आ जाएँ मिलने की दुआ करना

मैं क्या करूँ मिरे क़ातिल न चाहने पर भी, तिरे लिए मिरे दिल से दुआ निकलती है।

दुआ को हाथ उठाते हुए लरज़ता हूँ, कभी दुआ नहीं माँगी थी माँ के होते हुए।

मुझे ज़िंदगी की दुआ देने वाले, हँसी आ रही है तिरी सादगी पर।

कोई चारह नहीं दुआ के सिवा, कोई सुनता नहीं ख़ुदा के सिवा।

दुआ करो कि मैं उस के लिए दुआ हो जाऊँ, वो एक शख़्स जो दिल को दुआ सा लगता है।

मरज़-ए-इश्क़ जिसे हो उसे क्या याद रहे, न दवा याद रहे और न दुआ याद रहे।

दुआएँ याद करा दी गई थीं बचपन में, सो ज़ख़्म खाते रहे और दुआ दिए गए हम

माँगी थी एक बार दुआ हम ने मौत की, शर्मिंदा आज तक हैं मियाँ ज़िंदगी से हम।

न चारागर की ज़रूरत न कुछ दवा की है, दुआ को हाथ उठाओ कि ग़म की रात कटे।