अब कौन से मौसम से आस लगाए, बरसात में भी उन्हें जब याद ना हम आए।

कहीं फिसल न जाऊं जरा संभल के चलना, मौसम बारिश का भी है और मोहब्बत का भी।

ये हुस्न-ए-मौसम ये बारिश ये हवाएं,   लगता है....... मोहब्बत ने आज किसी का साथ दिया है।

इन बारिशों से अदब -ए -मोहब्बत सीखो, अगर यह रूठ भी जाए तो बरसती बहुत है।

बारिश और मोहब्बत दोनों ही यादगार होते हैं, बारिश में जिस्म भीगता है और मोहब्बत में आंखें।

बारिश हुई तो घर के दरीचे  से लगे हम, चुपचाप सोगवार तुम्हें सोचते रहे।

रोज आते हैं बादल अब्र- ए- रहमत लेकर, मेरे शहर के आमाल उन्हें बरसने नहीं देते।

कई रोग दे गई हैं नए मौसम की बारिश, मुझे याद आ रहे हैं मुझे भूल जाने वाले।