तेरी निगाह में एक रंग – ए- अजनबियत था, किस ऐतबार पे हम खुल कर गुफ्तगू करते ।

पास जब तक वो रहे दर्द थमा रहता है, फैलता जाता है फिर आँखों के काजल की तरह ।

सौ सौ उम्मीदें बंधती है एक एक निगाह पर, मुझको न प्यार से देखा करे कोई  ।

रात बड़ी मुश्किल से खुद को सुलाया मैंने, अपनी आँखों को तेरे ख्व़ाब का लालच देकर ।

फ़रियाद कर रही है तरसती हुई निगाहें, देखे हुए किसी को बहुत दिन गुज़र गए ।

देखा है मेरी नज़रों ने, एक रंग छलकते पैमाने का यूँ खुलती है आँखें किसी की जैसे खुले दर मैखाने का ।

मुस्कुरा के देखा तो कलेजे में चुभ गए, खंजर से भी तेज़ लगती है आँखें जनाब की ।

अगर कुछ सीखना है तो आँखों को पढना सीख लो, वरना लफ्ज़ के मतलब तो हजारों निकाल लेते हैं ।

कभी बैठा के सामने पूछेंगे तेरी आँखों से, किसने सिखाया है इन्हें हर दिल में उतर जाना ।

ये जो नज़रों से तुम मेरे दिल पर वार करते हो, करते तो जुल्म हो मगर कमाल करते हो ।

क्या कहें क्या क्या किया तेरी निगाहों ने सुलूक, दिल में आई दिल में ठहरी दिल में पैकान हो गई ।