सुबकती रही रात अकेली तन्हाइयों के आगोश में, और वो दिन के उजालों से मोहब्बत कर बैठा।

एहतियातन देखता चल अपने साए की तरफ़, इस तरह शायद तुझे एहसास ए तन्हाई ना हो।

कहने लगी है अब मेरी तन्हाई भी मुझसे, कर लो मुझसे मोहब्बत मैं तो बेवफा भी नहीं।

कुछ इसलिए भी रात भर जागते हैं हम, चांद को कहीं एहसास ए तन्हाई ना हो जाए।

इतनी फिक्र है कुदरत को मेरी तन्हाई की, जागते रहते हैं रात भर सितारे मेरे लिए।

तनहाइयां कुछ इस तरह से डराने लगी हमें, हम आज अपने पैरों की आहट से डर गए।

मेरी है वह मिसाल के जैसे कोई दरख़्त, चुपचाप आंधियों में भी तन्हा खड़ा हुआ।

ख्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है, ऐसी तन्हाई के मर जाने को जी चाहता है।

मेरा और उस चाँद का मुकद्दर एक जैसा है, वो तारों में तन्हा है, मैं हजारों में तन्हा हूँ ।

मेरी तन्हाई को मेरा शौक ना समझना,  बहुत प्यार से दिया है ये तोहफा किसी ने।