कुछ नज़र आता नहीं उस के तसव्वुर के सिवा, हसरत-ए-दीदार ने आँखों को अंधा कर दिया।

कौन ताक़ों पे रहा कौन सर-ए-राहगुज़र, शहर के सारे चराग़ों को हवा जानती है।

अब दिल की तमन्ना है तो ऐ काश यही हो, आँसू की जगह आँख से हसरत निकल आए।

आरज़ू हसरत और उम्मीद शिकायत आँसू, इक तिरा ज़िक्र था और बीच में क्या क्या निकला।

ख़्वाब, उम्मीद, तमन्नाएँ, तअल्लुक़, रिश्ते, जान ले लेते हैं आख़िर ये सहारे सारे।

क़रार दिल को सदा जिस के नाम से आया, वो आया भी तो किसी और काम से आया।

नाम होंटों पे तिरा आए तो राहत सी मिले, तू तसल्ली है दिलासा है दुआ है क्या है।

न जाने कौन सी मंज़िल पे इश्क़ आ पहुँचा, दुआ भी काम न आए कोई दवा न लगे।

उस के चेहरे की चमक के सामने सादा लगा, आसमाँ पे चाँद पूरा था मगर आधा लगा।

हर एक रात को महताब देखने के लिए, मैं जागता हूँ तिरा ख़्वाब देखने के लिए।