अपनी तबाहियों का मुझे कोई ग़म नहीं, तुम ने किसी के साथ मोहब्बत निभा तो दी ।

ले दे के अपने पास फ़क़त इक नज़र तो है, क्यूँ देखें ज़िंदगी को किसी की नज़र से हम

तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम, ठुकरा न दें जहाँ को कहीं बे-दिली से हम।

ग़म और ख़ुशी में फ़र्क़ न महसूस हो जहाँ, मैं दिल को उस मक़ाम पे लाता चला गया

कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया, बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया

कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त, सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया।

जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िंदगी ने भर दिए, तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया।

हज़ार बर्क़ गिरे लाख आँधियाँ उट्ठें, वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं।