चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है, मैं ने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है।
किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई, मैं घर में सब से छोटा था मिरे हिस्से में माँ आई।
जब भी कश्ती मिरी सैलाब में आ जाती है, माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है।
चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है, मैं ने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है।
कल अपने-आप को देखा था माँ की आँखों में,
ये आईना हमें बूढ़ा नहीं बताता है।
तेरे दामन में सितारे हैं तो होंगे ऐ फ़लक, मुझ को अपनी माँ की मैली ओढ़नी अच्छी लगी।
मुनव्वर माँ के आगे यूँ कभी खुल कर नहीं रोना, जहाँ बुनियाद हो इतनी नमी अच्छी नहीं होती।
ये सोच के माँ बाप की ख़िदमत में लगा हूँ,
इस पेड़ का साया मिरे बच्चों को मिलेगा
।
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270+Ishq Shayari In Hindi | इश्क़ शायरी
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