Gray Frame Corner

इश्क़ इक 'मीर' भारी पत्थर है, कब ये तुझ ना-तवाँ से उठता है।

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राह-ए-दूर-ए-इश्क़ में रोता है क्या, आगे आगे देखिए होता है क्या।

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कोई तुम सा भी काश तुम को मिले, मुद्दआ हम को इंतिक़ाम से है।

आग थे इब्तिदा-ए-इश्क़ में हम, अब जो हैं ख़ाक इंतिहा है ये।

हम हुए तुम हुए कि 'मीर' हुए, उस की ज़ुल्फ़ों के सब असीर हुए।

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नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए, पंखुड़ी इक गुलाब की सी है।

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बारे दुनिया में रहो ग़म-ज़दा या शाद रहो, ऐसा कुछ कर के चलो यहाँ कि बहुत याद रहो।

याद उस की इतनी ख़ूब नहीं 'मीर' बाज़ आ, नादान फिर वो जी से भुलाया न जाएगा।

फूल गुल शम्स ओ क़मर सारे ही थे, पर हमें उन में तुम्हीं भाए बहुत।

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दिल की वीरानी का क्या मज़कूर है, ये नगर सौ मर्तबा लूटा गया।

रोते फिरते हैं सारी सारी रात, अब यही रोज़गार है अपना।

'मीर' साहब तुम फ़रिश्ता हो तो हो, आदमी होना तो मुश्किल है मियाँ।