अब तो ख़ुशी का ग़म है न ग़म की ख़ुशी मुझे,
बे-हिस बना चुकी है बहुत ज़िंदगी मुझे।
ऐ मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया,
जाने क्यूँ आज तिरे नाम पे रोना आया।
आज तो दिल के दर्द पर हँस कर, दर्द का दिल दुखा दिया मैंने ।
कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी, सुनते थे वो आएँगे सुनते थे सहर होगी।
इश्क़ से तबीअत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया, दर्द की दवा पाई दर्द-ए-बे-दवा पाया ।
बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता, जो बीत गया है वो गुज़र क्यूँ नहीं जाता।
दोस्तों को भी मिले दर्द की दौलत या रब, मेरा अपना ही भला हो मुझे मंज़ूर नहीं।
दर्द ऐसा है कि जी चाहे है ज़िंदा रहिए, ज़िंदगी ऐसी कि मर जाने को जी चाहे है।
जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िंदगी ने भर दिए, तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया ।
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