वो चाँद कह के गया था कि आज निकलेगा, तो इंतिज़ार में बैठा हुआ हूँ शाम से मैं ।

चाँद से तुझ को जो दे निस्बत सो बे-इंसाफ़ है, चाँद के मुँह पर हैं छाईं तेरा मुखड़ा साफ़ है।

चाँद में तू नज़र आया था मुझे, मैंने महताब नहीं देखा था।

रुस्वा करेगी देख के दुनिया मुझे 'क़मर', इस चाँदनी में उन को बुलाने को जाए कौन।

रात को रोज डूब जाता है, चांद को तैरना सिखाना है मुझे।

न चांद चाहिए न फलक चाहिए, मुझे बस तेरी एक झलक चाहिए।

रात में एक टूटता तारा देखा बिल्कुल मेरे जैसा था, चांद को कोई फर्क नहीं पड़ा बिल्कुल तेरे जैसा था।

मोहब्बत में झुकना कोई अजीब बात नहीं चमकता सूरज भी तो ढल जाता है चांद के लिए।

मुंतज़िर हूं के सितारों की जरा आंख लगे, चांद को छत पे बुला लूंगा इशारा कर के।

चांद भी हैरान, दरिया भी परेशानी में है, अक्स किस का है यह इतनी रोशनी पानी में है।