और 'फ़राज़' चाहिएँ कितनी मोहब्बतें तुझे, माओं ने तेरे नाम पर बच्चों का नाम रख दिया ।

उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ, अब क्या कहें ये क़िस्सा पुराना बहुत हुआ।

आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा, वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा ।

ज़िंदगी से यही गिला है मुझे, तू बहुत देर से मिला है मुझे

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ, आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ।

अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें, जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें।

किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम, तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ।

हुआ है तुझ से बिछड़ने के बा'द ये मा'लूम, कि तू नहीं था तिरे साथ एक दुनिया थी।

ग़ज़ल शायरी | अहमद फ़राज़