प्रकृति पर कविताएं : मोनिका वर्मा ‘मृणाल’
शाम उतरी रहती हैदरीचे में मेरेसूरज मेहमानों की तरहकभी कभी आता हैबहती है एक शीतल नदी यहीं नज़दीकसामने से गिरता झरना नज़र आता हैदरखत ध्यास्थ खड़े हैं चारों तरफआसमां परिंदों की अठखेलियों सेखिलखिलाता हैचाँदनी रात भर नाचती है आँगन मेंचाँद फलक पर मंद-मंद मुस्कुराता हैप्रकृति लुटा रही है खुले हाथों सेमेरी रुह मेरा बदन तमाम … Read more