मैं फूल हूं
मेरी भी अपनी इक किस्मत है
कभी प्रेम के इज़हार को डाली से तोड़ी जाऊंगी
स्वीकार हुई तो बरसों तक क़िताबों को महकाऊंगी
कोई देख-देख मुस्कायेगा मुझको
उसके प्रेम संग मैं भी प्रेम हो जाऊंगी
अन्यथा ज़मीन पर पैरों तले रौंदी जाऊंगी।
मैं फूल हूं
मेरी भी अपनी इक किस्मत है
कभी आस्था का प्रतीक बन डाली से तोड़ी जाऊंगी
जगह पाऊंगी ईश्वर के चरणों में मंदिर को महकाऊंगी
कोई प्रसाद में पा हो जायेगा कृतार्थ मुझे
उसकी आस्था स्वरूप मैं भी पूजी जाऊंगी
अन्यथा ज़मीन पर पैरों तले रौंदी जाऊंगी।
मैं फूल हूं
मेरी भी अपनी इक किस्मत है
कभी विवाह बन्धन को डाली से तोड़ी जाऊंगी
समारोह की सजावट बन माहौल को महकाऊंगी
नवीन जोड़े के गले का बन जाऊंगी हार
उनके एक हो जाने की मैं साक्षी बन जाऊंगी
अन्यथा ज़मीन पर पैरों तले रौंदी जाऊंगी।
मैं फूल हूं
मेरी भी अपनी एक किस्मत है
कभी मातम को शोक को डाली से तोड़ी जाऊंगी
कभी मय्यत पर सजूंगी लाशों पर बिखेरी जाऊंगी
चिता पर अग्नि संग हो जाऊंगी कुन्दन
साथ मैं भी परलोक को सिधार जाऊंगी
अन्यथा ज़मीन पर पैरों तले रौंदी जाऊंगी।
मैं फूल हूं
मेरी भी अपनी एक किस्मत है
कभी सुगंध कभी औषधि को डाली से तोड़ी जाउंगी
कभी कैद होंगी इत्र बन कभी रोग को मिटाऊंगी
बदन पर बिखर कर महका दूंगी सांसें
निरोग करके काया कभी अमृत कहलाऊंगी
अन्यथा ज़मीन पर पैरों तले रौंदी जाऊंगी।
मैं फूल हूं
मेरी भी अपनी एक किस्मत है
कभी बनूंगी सम्मान की अभिव्यक्ति, अभिवादन
कभी शोक प्रकट करने का जरिया बन जाऊंगी
कभी हो जाउंगी प्रेम होठों से चूमी जाऊंगी
कभी चित्रों पर लटक ख़ुद भी मृत हो जाउंगी
अन्यथा ज़मीन पर पैरों तले रौंदी जाऊंगी।
मैं फूल हूं
मेरी भी अपनी एक किस्मत है !!
-मोनिका वर्मा ‘मृणाल’