दर्शन शास्त्र क्या है ? Philosophy

दर्शन शास्त्र दो शब्दों से मिलकर बना है दर्शन + शास्त्र , दर्शन का शाब्दिक अर्थ देखना, द्रष्टि, द्रश्य से सम्बंधित है और संस्कृत में  शास्त्र का शाब्दिक अर्थ है शिक्षा देना, दिशा निर्देश, शिक्षण, शास्त्र किसी भी विषय पर गहन ज्ञान, सिद्धांत और दर्शन का संग्रह होता है, जो जीवन के विभिन्न सिद्धांतों को लोक कल्याण के लिए स्थापित करता है।

दर्शनशास्त्र (Philosophy) वह विद्या है जो अस्तित्व, ज्ञान, नैतिकता, चेतना, और तर्क पर विचार करती है। यह मानव चिंतन की सबसे प्राचीन शाखाओं में से एक है और विभिन्न सभ्यताओं में इसकी जड़ें पाई जाती हैं। दर्शनशास्त्र हमें यह समझने में सहायता करता है कि हम कौन हैं, हम इस ब्रह्मांड में कहाँ खड़े हैं, और हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है जीवन, जगत और जगत में स्वयं का वास्तविक स्वरूप क्या है। इनकी खोजें सत्य, सिद्धांत, ब्रह्मांड, आत्मा, ईश्वर, तत्वमीमांसा और ज्ञान के लिए हैं।

विश्व के सबसे प्राचीन दर्शन की खोज हमें उन सभ्यताओं की ओर ले जाती है, जिन्होंने ज्ञान, सत्य, और आत्मबोध की यात्रा प्रारंभ की। भारतीय, यूनानी, चीनी और मिस्र की सभ्यताओं में दर्शन का विकास हुआ, लेकिन भारतीय दर्शन को विश्व का सबसे पुराना और व्यवस्थित दर्शन माना जाता है। यह दर्शन केवल बौद्धिक जिज्ञासा तक सीमित नहीं रहा, बल्कि मानव जीवन के समग्र उत्थान का साधन भी बना।

दर्शन शास्त्र क्या है Philosophy (1)
दर्शन-शास्त्र

Table of Contents

दर्शन में भारतीयों की परिभाषाएँ

भारतीय दर्शन प्राचीन काल से ही मानव जीवन, ब्रह्मांड, आत्मा, और परम सत्य के मूलभूत प्रश्नों का उत्तर खोजने का प्रयास करता रहा है। विभिन्न दार्शनिक प्रणालियों और ऋषियों ने इसे अलग-अलग रूपों में परिभाषित किया है। भारतीय दर्शन का मूल उद्देश्य आत्मज्ञान, मोक्ष, और सत्य की प्राप्ति रहा है। इस लेख में हम भारतीय दर्शन की प्रमुख परिभाषाओं का विस्तृत अध्ययन करेंगे।


1. महर्षि व्यास की परिभाषा (वेदांत दर्शन)

“सर्वं खल्विदं ब्रह्म” (छांदोग्य उपनिषद 3.14.1)
इस परिभाषा के अनुसार, संपूर्ण जगत ब्रह्म स्वरूप है, और दर्शन का उद्देश्य उस ब्रह्म को जानना है। महर्षि व्यास ने वेदांत सूत्र की रचना की, जिसमें ब्रह्म (सर्वोच्च सत्ता) और आत्मा के संबंध पर विचार किया गया है। वेदांत के अनुसार, आत्मा और ब्रह्म में कोई भेद नहीं है, बल्कि वे एक ही हैं।


2. महर्षि गौतम की परिभाषा (न्याय दर्शन)

“तत्त्वज्ञानाद् अपवर्गः”
इस परिभाषा का अर्थ है कि तत्वों (सत्य) के ज्ञान से मोक्ष की प्राप्ति होती है। न्याय दर्शन मुख्य रूप से तर्क और प्रमाण पर आधारित है। महर्षि गौतम ने सत्य को जानने के लिए चार प्रमाणों को स्वीकार किया:

  1. प्रत्यक्ष (प्रत्यक्ष अनुभव)
  2. अनुमान (तर्क पर आधारित निष्कर्ष)
  3. उपमान (तुलना द्वारा ज्ञान)
  4. शब्द (शास्त्रों का प्रमाण)

3. महर्षि कणाद की परिभाषा (वैशेषिक दर्शन)

“धर्मो यतः अभ्युदय निःश्रेयस सिद्धिः”
अर्थात्, धर्म के द्वारा अभ्युदय (सांसारिक उन्नति) और निःश्रेयस (आध्यात्मिक मुक्ति) की सिद्धि होती है। वैशेषिक दर्शन पदार्थों और परमाणुओं की प्रकृति पर विचार करता है और इसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाला दर्शन माना जाता है।


4. पतंजलि की परिभाषा (योग दर्शन)

“योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः” (योगसूत्र 1.2)
इसका अर्थ है कि योग चित्त की वृत्तियों का निरोध (नियंत्रण) है। योग दर्शन आत्मा और ब्रह्म के मिलन की प्रक्रिया पर बल देता है। योग के माध्यम से व्यक्ति अपने मन, शरीर और आत्मा को संतुलित कर सकता है और आत्मज्ञान प्राप्त कर सकता है।


5. महर्षि जैमिनि की परिभाषा (मीमांसा दर्शन)

“धर्मो ज्ञानार्थ प्रतिष्ठितः”
अर्थात्, धर्म का उद्देश्य ज्ञान प्राप्ति है। मीमांसा दर्शन वेदों के कर्मकांड और अनुष्ठानों पर बल देता है। यह वेदों की व्याख्या पर आधारित है और इसमें वेदों को सर्वोच्च प्रमाण माना गया है।


6. आदि शंकराचार्य की परिभाषा (अद्वैत वेदांत)

“ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या, जीवो ब्रह्मैव नापरः”
इसका अर्थ है कि ब्रह्म ही सत्य है, जगत माया है, और जीवात्मा स्वयं ब्रह्मस्वरूप है। शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत की स्थापना की, जिसमें कहा गया कि आत्मा और ब्रह्म में कोई भेद नहीं है, और मोक्ष की प्राप्ति आत्मा को ब्रह्म से एकाकार करने से होती है।


7. भगवान बुद्ध की परिभाषा (बौद्ध दर्शन)

“सर्वं दुःखं, सर्वं अनित्यं, सर्वं अनात्मन्”
बुद्ध दर्शन के अनुसार, यह संसार दुःखमय, अनित्य (नाशवान) और अनात्मा (निराकार) है। भगवान बुद्ध ने चार आर्य सत्य प्रतिपादित किए:

  1. दुःख (संसार में सभी कष्टमय हैं)
  2. दुःख समुदय (दुःख के कारण हैं)
  3. दुःख निरोध (दुःख का अंत संभव है)
  4. दुःख निरोध मार्ग (आष्टांगिक मार्ग से मुक्ति संभव है)

8. महावीर स्वामी की परिभाषा (जैन दर्शन)

“अनेकांतवादः सत्यं”
अर्थात्, सत्य अनेक रूपों में होता है, और किसी भी वस्तु को एक ही दृष्टिकोण से नहीं देखा जा सकता। जैन दर्शन अहिंसा, सत्य, और अपरिग्रह पर आधारित है और इसमें कहा गया कि आत्मा की शुद्धि ही मोक्ष का मार्ग है।


9. रामानुजाचार्य की परिभाषा (विशिष्टाद्वैत वेदांत)

“जीव, ईश्वर और प्रकृति तीनों का अस्तित्व सत्य है”
रामानुजाचार्य ने विशिष्टाद्वैत वेदांत का प्रतिपादन किया, जिसमें उन्होंने कहा कि ब्रह्म ही परम सत्य है, लेकिन आत्मा और प्रकृति भी उसकी विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ हैं। उनके अनुसार, भक्ति मार्ग से मोक्ष संभव है।


10. माध्वाचार्य की परिभाषा (द्वैत वेदांत)

“जीव और ब्रह्म सदा अलग-अलग हैं”
माध्वाचार्य ने द्वैतवाद की स्थापना की, जिसमें उन्होंने कहा कि ईश्वर (ब्रह्म) और जीवात्मा (जीव) हमेशा अलग रहते हैं। उनके अनुसार, भक्ति और भगवान की कृपा से ही मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।


11. निंबार्काचार्य की परिभाषा (द्वैताद्वैत वेदांत)

“जीव और ब्रह्म एक ही हैं, फिर भी अलग हैं”
निंबार्काचार्य ने द्वैताद्वैत वेदांत की स्थापना की, जिसमें उन्होंने कहा कि आत्मा और ब्रह्म न तो पूरी तरह अलग हैं और न पूरी तरह एक हैं।


भारतीय दर्शन की परिभाषाएँ विभिन्न दार्शनिक प्रणालियों के आधार पर भिन्न-भिन्न हैं, लेकिन सभी का लक्ष्य आत्मा, ब्रह्म, मोक्ष, और सत्य की खोज है। भारतीय दर्शन केवल बौद्धिक चिंतन नहीं, बल्कि जीवन को दिशा देने वाली आध्यात्मिक और व्यावहारिक ज्ञान प्रणाली है। यह दर्शन तर्क, अनुभव, और आत्मसाक्षात्कार के आधार पर विकसित हुआ है, जो इसे अद्वितीय बनाता है।

1. विश्व का सबसे प्राचीन दर्शन: भारतीय दर्शन

भारतीय दर्शन विश्व के प्राचीनतम दर्शन में से एक है, जिसकी शुरुआत वेदों से होती है। वेदों में न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक विचार हैं, बल्कि ब्रह्मांड, आत्मा, ज्ञान और मोक्ष जैसे गूढ़ विषयों पर गहन चर्चा भी है। भारतीय दर्शन को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है:

1.1 आस्तिक (वैदिक) दर्शन

आस्तिक दर्शन वेदों की प्रमाणिकता को स्वीकार करता है। इसमें छह प्रमुख दर्शनों का समावेश है जिन्हें षड्दर्शन (छः दर्शन) कहा जाता है :

  1. सांख्य दर्शन – महर्षि कपिल द्वारा प्रतिपादित, यह प्रकृति (प्रकृति) और आत्मा (पुरुष) के द्वैतवाद पर आधारित है।
  2. योग दर्शन – महर्षि पतंजलि द्वारा प्प्रतिपादित, इसमें ध्यान और आत्मसंयम के माध्यम से मोक्ष प्राप्ति का मार्ग बताया गया है।
  3. न्याय दर्शन – महर्षि गौतम द्वारा प्रतिपादित, इसमें तर्क, प्रमाण और युक्ति पर बल दिया गया है।
  4. वैशेषिक दर्शन – महर्षि कणाद द्वारा प्रतिपादित, इसमें परमाणु सिद्धांत और पदार्थ की प्रकृति पर चर्चा की गई है।
  5. पूर्व मीमांसा – महर्षि जैमिनि द्वारा प्रतिपादित, यह वेदों के कर्मकांड और अनुष्ठानों पर आधारित है।
  6. उत्तर मीमांसा (वेदांत) – महर्षि बादरायण व्यास द्वारा प्रतिपादित, यह ब्रह्म और आत्मा के अद्वैतवाद पर बल देता है।

1.2 नास्तिक (अवैदिक) दर्शन

नास्तिक दर्शन वेदों की प्रमाणिकता को स्वीकार नहीं करता। इसके अंतर्गत प्रमुख विचारधाराएँ हैं:

  • चार्वाक दर्शन – यह भौतिकवादी दृष्टिकोण पर आधारित था और केवल प्रत्यक्ष अनुभव को ही सत्य मानता था।
  • बौद्ध दर्शन – महात्मा बुद्ध द्वारा प्रतिपादित, इसमें अहिंसा, निर्वाण और चतुर्वार्य सत्यों का उल्लेख है।
  • जैन दर्शन – महावीर स्वामी द्वारा प्रतिपादित, इसमें अनेकांतवाद, अहिंसा और कर्म सिद्धांत पर बल दिया गया है।

2. यूनानी दर्शन: पश्चिमी दर्शन का आधार

पश्चिमी दर्शन का आरंभ यूनान में हुआ। यूनानी दार्शनिकों ने तर्क, विज्ञान और राजनीति के माध्यम से दर्शन को विकसित किया। प्रमुख यूनानी दार्शनिक हैं:

2.1 सुकरात (Socrates) (469-399 ईसा पूर्व)

सुकरात ने नैतिकता और ज्ञान को परिभाषित किया। उनके अनुसार, “स्वयं को जानो” (Know Thyself) सबसे महत्वपूर्ण दर्शन है। उन्होंने संवाद पद्धति (Socratic Method) के माध्यम से प्रश्न पूछने की परंपरा स्थापित की।

2.2 प्लेटो (Plato) (427-347 ईसा पूर्व)

वे सुकरात के शिष्य थे। उन्होंने “रिपब्लिक” नामक ग्रंथ लिखा, जिसमें उन्होंने न्याय, राजनीति और आदर्श राज्य की अवधारणा प्रस्तुत की। उनका विचार था कि हमारे आसपास की दुनिया केवल वास्तविकता की छाया है।

2.3 अरस्तू (Aristotle) (384-322 ईसा पूर्व)

वे प्लेटो के शिष्य थे और उन्होंने तर्क, विज्ञान, नैतिकता और राजनीति में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने वैज्ञानिक पद्धति की नींव रखी और जीव विज्ञान, भौतिकी और तर्कशास्त्र को व्यवस्थित किया।


3. चीनी दर्शन: नैतिकता और समाज का मार्गदर्शन

चीन में दर्शन मुख्यतः नैतिकता, सामाजिक व्यवस्था और आध्यात्मिकता पर केंद्रित था। प्रमुख चीनी दार्शनिक हैं:

3.1 कन्फ्यूशियस (Confucius) (551-479 ईसा पूर्व)

उन्होंने नैतिकता, अनुशासन और परिवार की भूमिका पर बल दिया। उनका दर्शन समाज में सद्भाव और व्यवस्था स्थापित करने पर केंद्रित था।

3.2 लाओत्से (Lao Tzu) और ताओवाद

उन्होंने “ताओ ते चिंग” नामक ग्रंथ लिखा, जिसमें प्राकृतिक जीवन और समरसता का संदेश दिया गया है। उनके अनुसार, सादगी और सहजता जीवन के आदर्श गुण होने चाहिए।


4. मिस्र और मेसोपोटामिया का दर्शन

मिस्र और मेसोपोटामिया की प्राचीन सभ्यताओं में भी दार्शनिक विचारधाराएँ विकसित हुईं। इन सभ्यताओं ने धर्म, आत्मा और जीवन के उद्देश्य पर गहराई से विचार किया। मिस्रवासियों का मानना था कि मृत्यु के बाद भी आत्मा का अस्तित्व बना रहता है। मेसोपोटामिया में भी ज्योतिष, गणित और दैवीय तत्वों पर आधारित दर्शन का विकास हुआ।


5. मध्यकालीन दर्शन: धार्मिक एवं आध्यात्मिक उन्नति

मध्यकालीन दर्शन मुख्य रूप से धर्म और ईश्वरवाद पर आधारित था। इस काल में इस्लामी, ईसाई और हिंदू विचारधाराओं का प्रभाव बढ़ा। प्रमुख विचारक इस प्रकार हैं:

  • सेंट ऑगस्टाइन – ईसाई धर्मशास्त्र और यूनानी दर्शन का समावेश।
  • अल-फरबी और अवेरेस – इस्लामी दर्शन और यूनानी तर्कशास्त्र का मेल।
  • आदि शंकराचार्य – अद्वैत वेदांत के प्रणेता, जिन्होंने ब्रह्म की एकता पर बल दिया।

6. आधुनिक दर्शन: वैज्ञानिक दृष्टिकोण और मानवतावाद

आधुनिक दर्शन में वैज्ञानिक और तार्किक विचारधारा का उदय हुआ। प्रमुख दार्शनिकों में शामिल हैं:

  • रेने देकार्त (René Descartes) – “मैं सोचता हूँ, इसलिए मैं हूँ” का प्रतिपादन।
  • इमैनुएल कांट (Immanuel Kant) – नैतिकता और विवेक की भूमिका।
  • कार्ल मार्क्स (Karl Marx) – भौतिकवाद और साम्यवाद का सिद्धांत।
  • स्वामी विवेकानंद – भारतीय वेदांत और योग को पश्चिम में प्रचारित किया।

विश्व का सबसे प्राचीन दर्शन भारतीय दर्शन है, जो वेदों से प्रारंभ होकर आधुनिक काल तक निरंतर विकसित हुआ। यूनानी, चीनी और अन्य सभ्यताओं के दर्शन भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। दर्शन ने न केवल जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझने में सहायता की, बल्कि यह समाज, विज्ञान और राजनीति के विकास में भी सहायक रहा। आज भी दर्शनशास्त्र जीवन के मूल प्रश्नों के उत्तर खोजने में सहायक है।

दर्शनशास्त्र का अंग्रेजी शब्द philosophy दो ग्रीक शब्दों “फिलो” (Philo) जिसका अर्थ “प्रेम” है और “सोफिया” (Sophia) जिसका अर्थ “ज्ञान” है, से मिलकर बना है। इसका शाब्दिक अर्थ है “ज्ञान का प्रेम।”

दर्शनशास्त्र की शाखाएँ

दर्शनशास्त्र को कई प्रमुख शाखाओं में विभाजित किया जा सकता है:

1. मीमांसा (Metaphysics)

मीमांसा दर्शनशास्त्र की वह शाखा है जो अस्तित्व, वास्तविकता, और ब्रह्मांड की प्रकृति का अध्ययन करती है। यह प्रश्न करती है कि:

  • वास्तविकता क्या है?
  • आत्मा का अस्तित्व है या नहीं?
  • पदार्थ और चेतना का संबंध क्या है?

2. ज्ञानमीमांसा (Epistemology)

यह शाखा ज्ञान की उत्पत्ति, स्वरूप और सीमाओं का अध्ययन करती है। यह प्रश्न पूछती है:

  • हम कैसे जानते हैं कि कोई चीज़ सच है?
  • ज्ञान और विश्वास में क्या अंतर है?
  • क्या हमें किसी चीज़ का पूर्ण ज्ञान हो सकता है?

3. नैतिक दर्शन (Ethics)

नैतिकता से संबंधित यह शाखा यह निर्धारित करने का प्रयास करती है कि क्या सही है और क्या गलत। यह प्रश्न उठाती है:

  • नैतिकता का आधार क्या है?
  • क्या नैतिकता सार्वभौमिक है या सापेक्षिक?
  • क्या मनुष्य को स्वतंत्र इच्छा प्राप्त है?

4. तर्कशास्त्र (Logic)

यह विचारों और तर्क के सही और गलत स्वरूप को निर्धारित करने में सहायक है। इसमें शामिल प्रश्न हैं:

  • सत्यापन और प्रमाण क्या हैं?
  • उचित तर्क किस प्रकार निर्मित होता है?
  • कुतर्कों को कैसे पहचाना जाए?

5. राजनीतिक दर्शन (Political Philosophy)

यह राज्य, सरकार, न्याय और स्वतंत्रता के मूलभूत विचारों पर केंद्रित है। यह प्रश्न करता है:

  • सबसे अच्छा शासन तंत्र कौन सा है?
  • स्वतंत्रता और समानता में संतुलन कैसे बनाएँ?
  • क्या राज्य को नैतिक रूप से हस्तक्षेप करना चाहिए?

6. सौंदर्यशास्त्र (Aesthetics)

यह कला और सौंदर्य के स्वरूप का अध्ययन करता है। यह पूछता है:

  • सुंदरता क्या है?
  • कला का उद्देश्य क्या है?
  • क्या सौंदर्य वस्तुनिष्ठ है या व्यक्तिनिष्ठ?

भारत में दर्शनशास्त्र के अलावा अन्य शास्त्र

भारत एक प्राचीन सभ्यता है, जिसने विभिन्न क्षेत्रों में गहन अध्ययन और अनुसंधान किए हैं। दर्शनशास्त्र के अलावा, भारत में कई अन्य शास्त्र हैं, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं को परिभाषित और निर्देशित करते हैं। भारतीय ज्ञान परंपरा में शास्त्रों का महत्व अत्यधिक रहा है, क्योंकि वे न केवल आध्यात्मिक और धार्मिक विषयों पर आधारित हैं, बल्कि सामाजिक, राजनीतिक, चिकित्सा, कला, विज्ञान और संगीत से भी संबंधित हैं। इस लेख में हम दर्शनशास्त्र के अलावा भारत में प्रचलित अन्य प्रमुख शास्त्रों का विस्तृत अध्ययन करेंगे।


1. वेद और वेदांग शास्त्र

(क) वेद

वेद भारतीय ज्ञान परंपरा के मूल आधार हैं और चार वेदों में विभाजित हैं:

  1. ऋग्वेद – स्तुति और प्रार्थनाओं का संकलन।
  2. यजुर्वेद – यज्ञ और अनुष्ठानों से संबंधित ज्ञान।
  3. सामवेद – संगीत और छंद से संबंधित शास्त्र।
  4. अथर्ववेद – औषधि, चिकित्सा, तंत्र और रहस्यमय विद्या।

(ख) वेदांग

वेदों के सही अध्ययन के लिए छह वेदांग स्थापित किए गए हैं:

  1. शिक्षा – उच्चारण और ध्वनि विज्ञान।
  2. कल्प – यज्ञ और अनुष्ठानों के नियम।
  3. व्याकरण – संस्कृत भाषा का अध्ययन।
  4. निरुक्त – शब्दों की व्याख्या।
  5. छंद – काव्य और छंद विज्ञान।
  6. ज्योतिष – खगोलशास्त्र और भविष्यवाणी।

2. स्मृति शास्त्र

स्मृति शास्त्रों में धार्मिक, सामाजिक और नैतिक नियमों को संकलित किया गया है। इनमें प्रमुख हैं:

  1. मनुस्मृति – सामाजिक व्यवस्था और न्याय प्रणाली।
  2. याज्ञवल्क्य स्मृति – धर्म, राजनीति और दंड विधान।
  3. नारद स्मृति – कानून और सामाजिक न्याय।
  4. पराशर स्मृति – गृहस्थ जीवन और कृषि के नियम।

3. अर्थशास्त्र

चाणक्य द्वारा रचित ‘अर्थशास्त्र’ भारतीय राजनीति, अर्थव्यवस्था, शासन व्यवस्था और कूटनीति का महान ग्रंथ है। इसमें राज्य संचालन, कर प्रणाली, युद्धनीति और विदेश नीति का विस्तार से वर्णन है।


4. नाट्यशास्त्र

भरतमुनि द्वारा रचित ‘नाट्यशास्त्र’ भारतीय नृत्य, संगीत, नाटक और रंगमंच का सबसे प्राचीन ग्रंथ है। इसमें अभिनय के विभिन्न अंग, रस सिद्धांत और नाट्यकला के नियमों का वर्णन है।


5. कामशास्त्र

वात्स्यायन द्वारा रचित ‘कामसूत्र’ प्रेम, विवाह और मानव संबंधों पर आधारित सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ है। इसमें काम, दांपत्य जीवन और समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण का अध्ययन किया गया है।


6. आयुर्वेद शास्त्र

भारतीय चिकित्सा विज्ञान का आधार आयुर्वेद है। इसके प्रमुख ग्रंथ निम्नलिखित हैं:

  1. चरक संहिता – आचार्य चरक द्वारा लिखित, आंतरिक चिकित्सा और शरीर विज्ञान।
  2. सुश्रुत संहिता – आचार्य सुश्रुत द्वारा रचित, शल्य चिकित्सा (सर्जरी) का विवरण।
  3. अष्टांग हृदयम – आचार्य वाग्भट द्वारा, संपूर्ण चिकित्सा प्रणाली का संकलन।

7. ज्योतिष शास्त्र

भारतीय ज्योतिष शास्त्र खगोलशास्त्र और भविष्यवाणी पर आधारित है। इसके प्रमुख अंग हैं:

  1. सिद्धांत ज्योतिष – ग्रहों और नक्षत्रों की गणना।
  2. होरा शास्त्र – जन्म कुंडली और भविष्यवाणी।
  3. संहिता ज्योतिष – मौसम, राजनीति और सामाजिक घटनाओं की भविष्यवाणी।

8. धर्मशास्त्र

धर्मशास्त्र हिंदू समाज में नैतिकता, कर्तव्यों और सामाजिक व्यवस्था को स्थापित करने के लिए लिखे गए हैं। इनमें प्रमुख हैं:

  1. मनुस्मृति – सामाजिक और धार्मिक नियम।
  2. याज्ञवल्क्य स्मृति – न्याय और कानूनी व्यवस्था।
  3. कौटिल्य अर्थशास्त्र – राज्यशासन और राजनीति।

9. योगशास्त्र

योगशास्त्र आत्मा, शरीर और मन के संतुलन को प्राप्त करने की विद्या है। इसके प्रमुख ग्रंथ हैं:

  1. पतंजलि योगसूत्र – योग के सिद्धांत और ध्यान विधियाँ।
  2. हठयोग प्रदीपिका – शारीरिक और मानसिक योगाभ्यास।
  3. गोरक्ष संहिता – योग साधना की विशेष विधियाँ।

10. संगीत शास्त्र

भारतीय संगीत शास्त्र में राग, ताल और नाद पर विशेष ध्यान दिया गया है। इसके प्रमुख ग्रंथ हैं:

  1. नाट्यशास्त्र (भरतमुनि) – संगीत और नृत्य का प्रारंभिक ग्रंथ।
  2. संगीत रत्नाकर (शारंगदेव) – राग, स्वर और ताल का विस्तृत अध्ययन।
  3. स्वरमेलाकलानिधि – दक्षिण भारतीय संगीत पर आधारित ग्रंथ।

11. तंत्रशास्त्र

तंत्रशास्त्र रहस्यमय विद्याओं, मंत्रों और साधनाओं पर आधारित है। इसके प्रमुख ग्रंथ हैं:

  1. कालिका पुराण – देवी उपासना और तांत्रिक विधियाँ।
  2. तंत्रसार – मंत्र और यंत्र विज्ञान।
  3. रुद्रयामल तंत्र – शिव और शक्ति की साधना।

12. वास्तुशास्त्र

वास्तुशास्त्र भवन निर्माण और वास्तुकला से संबंधित प्राचीन भारतीय विद्या है। इसके प्रमुख ग्रंथ हैं:

  1. मयमतम् – मंदिर और भवन निर्माण के नियम।
  2. मानसार शिल्पशास्त्र – भवन निर्माण और शिल्पकला।
  3. वास्तु रत्नाकर – वास्तु के सिद्धांत।

13. नीति शास्त्र

नीति शास्त्र में जीवन को सही ढंग से जीने के लिए मार्गदर्शन दिया गया है। प्रमुख ग्रंथ हैं:

  1. पंचतंत्र – नीति और व्यवहारिक ज्ञान की कहानियाँ।
  2. हितोपदेश – नैतिक शिक्षा और राजनीति।
  3. चाणक्य नीति – शासन और व्यक्तिगत विकास की नीति।

भारत का ज्ञान वैभव केवल दर्शनशास्त्र तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें विज्ञान, कला, साहित्य, चिकित्सा, संगीत, राजनीति और आध्यात्मिकता से जुड़े अनेक शास्त्र सम्मिलित हैं। ये शास्त्र न केवल भारतीय संस्कृति की समृद्धि को दर्शाते हैं, बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए भी मूल्यवान हैं। भारतीय शास्त्रों का अध्ययन हमें जीवन के हर क्षेत्र में संतुलन और सफलता प्राप्त करने की दिशा में प्रेरित करता है।

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Parveen Shakir Shayari Nasir Kazmi Shayari